ग्राउंड रिपोर्ट: मुंबई में रेलवे स्टेशन से क्यों निकलती है, अंतिम संस्कार यात्रा?
कहा जाता है कि मरने के बाद इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए हम मौत के बाद उनकी राह को आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में ये सफर भी आसान नहीं है. आज हम मंगल ग्रह पर जा रहे हैं, लेकिन मुंबई में अंतिम संस्कार के जुलूस को कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए रेलवे फुट ब्रिज का इस्तेमाल करना पड़ता है। ऐसा क्यों है जानने के लिए पढ़ें हमारे संवाददाता शुभम पाटील की ग्राउंड रिपोर्ट
मौत के डर से गूंगा रहा,
जीते जीते मरता रहा,
मरने के बाद हाल सहा न जाए,
शरीर की विकृति को देखता रहा...
मुंबई: कुर्ला रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म से जनाजा गुजरता नजर आया तो अचानक मेरे मन मे यह पंक्तियां आयी। मौजूदा प्रतिस्पर्धी दौर में रहने वाले हर मुंबईकर की यही स्थिति है। अपनी व्यस्त जिंदगी जीने वाला हर मुंबईकरों अपने परिवार के लिए भागदौड़ कर रहा है। इस हड़बड़ी में वह समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भूल जाता है। अपने अधिकारों के लिए लडना तो उसे जैसे याद ही नहीं रहता। इसलिए उसे जीवन भर ऐसी कठिनाई के साथ रहना पड़ता है। मै ऐस क्यु कह रहा हुँ यह आप इस खबर को पढकर ही जान पाएँगे।
ऑफिस से घर जाते समय कुर्ला स्टेशन पर मैं हमेशा की तरह प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतजार कर रहा था। इस बीच मुस्लिम समुदाय का जनाजा विपरीत दिशा से गुजरता नजर आया। जिस क्षण मैंने इसे देखा, मुझे एक जबरदस्त झटका लगा। ट्रेन से यात्रा करने के इतने वर्षों के दौरान, मैंने कभी भी इस तरह रेलवे स्टेशन से जनाजे को जाते नहीं देखा था। उस जनाजे में लगभग 150 से 200 लोग शामिल हुए थे। जनाजा प्लेटफॉर्म से सटे पैदल पुल के ऊपर से गुजर रहा था। उस पुल पर चढ़ते समय वह शव को कंधे पर झुकाकर सीढ़ियां चढ़ रहे थे। जब पार्थिव शरीर को लेकर वो सीढ़ियों पर चढ़ रहे थे, अगर इस भीड़ में कोई दुर्घटना हो जाती और भगदड़ मच जाती, तो क्या होता? क्योंकि प्रभा देवी (तब एलफिंस्टन) स्टेशन पर मची भगदड़ की यादें अभी भी ताजा है। इसलिए मैंने इस पूरी बात की जड़ तक जाने का फैसला किया। तो एक साधारण पूछताछ में चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई।
कुर्ला स्टेशन से ऐसे जनाजे पिछले कई सालों से इस तरह से निकल रहे हैं। कुर्ला पश्चिम के निवासियों को कुरैशी नगर में कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए रेलवे यात्री पुल का उपयोग करना पड़ता है, जो कुर्ला पूर्व में स्थित है। इतना ही नहीं कुर्ला पूर्व के स्थानीय लोगों को सीधे हार्बर लाइन के रेलवे प्लेटफार्म से जनाजा लेकर जाना पड़ता है। इस हार्बर लाइन पर पहले से ही एक प्लेटफॉर्म पर अप और डाउन ट्रेन यात्रियों की भीड़ लगी रहती है और उसी समय भारी भीड लेकर जनाजा इसी प्लेटफॉर्म से गुजरता है। उस जनाजे में कम से कम 200 से 300 नागरिक शामिल होते हैं। ऐसे में रेलवे प्लेटफॉर्म पर किसी बड़े हादसे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
इस स्थिति के बारे में जानने के लिए मैंने स्थानीय नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता आसिफ नाईकवाड़ी से बात की। उस समय उन्होंने कहा, "यहां के मुस्लिम समुदाय की बहुत बडी जनसंख्या है और यहां केवल एक ही कब्रिस्तान है जो कुरैशी नगर मे स्थित है। और वहां जाने का कोई सुविधाजनक रास्ता भी नहीं है। पिछले चालीस वर्षों से यहां का मुस्लिम समुदाय स्थानीय पार्षदों, विधायकों, सांसदों और सरकार से इसकी मांग कर रहा है। वर्तमान में, मुंबई नगर निगम ने नए फुटब्रिज के लिए मध्य रेलवे को निधी सौंप दिया है। इस बात को डेढ़ से दो साल हो गए हैं लेकिन अभी भी रेलवे ने काम शुरू नहीं किया है। मुस्लिम समुदाय भी भीड़ के समय प्लेटफार्म से जनाजा ले जाकर यात्रियों को परेशान नहीं करना चाहता है लेकिन हम भी असहाय हैं क्योंकि कोई दुसरा रास्ता नहीं है। हमने इस मामले में रेलवे अधिकारियों से भी बात की लेकिन रेलवे अधिकारी हमें कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। हमें अब तक जवाब मिला है कि हमें फंड मिल गया है और हम करेंगे। लेकिन सवाल यह है कि यह काम अभी तक क्यों नहीं किया गया है।"
हर बार हम एक आम मुंबईकर की किस्मत में ऐसा ही असहायपन देखते हैं। हम पिछले एक साल से आजादी का अमृत महोत्सव का जश्न मना रहे हैं। लेकिन आजादी के 75 साल पूरे कर चुके भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आज भी लोगों को मौत के बाद भी संघर्ष करना पड़ रहा है | लेकिन मैंने इसके बारे में हमारे द्वारा चुने गए लोक प्रतिनिधियों से सवाल पूछने की कोशिश की। कुर्ला के स्थानीय विधायक मंगेश कुडालकर से फोन पर संपर्क किया। समग्र स्थिति के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा, "कुर्ला पूर्व क्षेत्र में कुरैशी नगर क्षेत्र में केवल एक कब्रिस्तान है। कुर्ला पूर्व के अधिकांश नागरिक कब्रिस्तान के लिए प्लेटफार्म नंबर 7 से कुशीनगर तक उनका जनाजा निकालते हैं। इसलिए मैं लगातार इस ब्रीज की मांग कर रहा था और उस मांग को भी स्वीकार कर लिया गया है। मुंबई नगर निगम ने मध्य रेलवे को 9 से 10 करोड़ रुपये की धनराशि दी है। रेलवे इस पैदल पुल का निर्माण संभवत: मानसून के बाद भी अगले कुछ महीनों में शुरू करेगा।"
स्थानीय विधायक मंगेश कुडालकर ने अलग से यह गेंद रेलवे के जाल में फेंकी लेकिन रेलवे का इस पर क्या कहना है? यह जानने के लिए कि इस प्रोजेक्ट के लिए उनकी तैयारी कहां पहुंच गई है इसके लिए हमने मध्य रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी शिवाजी सुतार से संपर्क किया। उस समय उन्होंने हमें बताया कि, ''प्रस्तावित पैदल पुल के टेंडर का काम अभी चल रहा है और अगले 15-20 दिनों में टेंडर प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. टेंडर के तुरंत बाद काम शुरू किया जा सकता है.''
स्थानीय विधायकों और रेल प्रशासन की प्रति क्रियाओं को पढ़ने के बाद, अब आपको समझ आ रहा होगा कि यह स्थिति मुंबईकरों पर क्यों पड़ी है| अब हम जान गए होंगे कि मैंने शुरुआत में क्यों कहा कि मुंबईकर आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। हालांकि, कुछ जागरूक नागरिक क्षेत्र की समस्याओं के बारे में अपनी आवाज उठा रहे हैं। अगर हर मुंबईकर जागरूकता दिखाता है, तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि क्या होगा। उदाहरण के लिए, कुर्ला में यह पैदल पुल पहले बनाया गया होगा और रेलवे प्लेटफार्म से जनाजा निकालने की नौबत नहीं आती।
यदि प्लेटफॉर्म पर निकलते इन जनाजों को रोकना है, तो रेलवे को प्रस्तावित फुटब्रिज के लिए जल्द से जल्द टेंडर जारी करना चाहिए और जल्द से जल्द काम शुरू करना चाहिए। अगर रेलवे इस काम में देरी करता रहता है तो रेलवे परिसर में इन जनाजों के कारण होने वाली भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी लेने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।