लाकडाउन में मजदूर सड़कों तड़पते रहे और उत्तर भारतीय नेता मदद करने के बजाय निवेदन देते रहे
by मनोज चंदेलिया /मुंबई
कोरोना महामारी की वजह से जिस तरह से मुंबई महाराष्ट्र के उत्तर भारतीय मजदूरों ने भयावहता का सामना किया उसे देख कर हर इंसान की रूह कांप जाती है भूख और लाचारी ने मुंबई से उत्तर प्रदेश बिहार के मजदूरों ने अपने पैरों से पूरे हिंदुस्तान को नाप दिया। ऐसा भयानक नजारा आज तक किसी ने नहीं देखा होगा और ना कभी सुना होगा कि मुंबई पुणे से लोग उत्तर प्रदेश बिहार असम झारखंड पैदल ही निकल पड़े कईयों की जाने गई तो कईयों को गाड़ियों ने कुचल दिया
क्या सोनू सूद से पैसे में कम हैं मुंबई के उत्तर भारतीय नेता?
लॉकडाउन के दौरान जिस तरह से अभिनेता सोनू सूद ने दरियादिली दिखाई उससे प्रसन्न होकर लोगों ने खूब तारीफें की और दुआएं दी, लेकिन मुंबई के उत्तर भारतीय नेता महाराष्ट्र के राज्यपाल को सिर्फ निवेदन देते रहे और अपनी तस्वीरें खिंचवाते रहे, जो संकट के समय जनता के काम ना आए, भला ऐसे उत्तर भारतीय नेताओं का क्या करना?अभिनेता सोनू सूद की तरह क्या उत्तर भारतीय नेता कृपाशंकर सिंह संजय निरुपम नवाब मलिक नसीम खान राजहंस सिंह पारसनाथ तिवारी अबू आसिम आजमी व मुंबई के निर्वाचित उत्तर भारतीय नगरसेवक विधायक व प्रमुख नेताओं ने कितनी बसें उत्तर भारतीय मजदूरों के लिए चलवाई यह सब मुंबई की जनता देख रही थी यह सभी नेता सिर्फ बयान बाजी आश्वासन और निवेदन तक सीमित रहे आगामी समय में मुंबई ठाणे में बसे लाखों उत्तर भारतीय इनसे जरूर जवाब सवाल करेंगे लॉकडाउन के दौरान क्या इन उत्तर भारतीय नेताओं का फर्ज नहीं बनता कुछ बसें चलवा कर कुछ मजदूरों को सकुशल उनके गांव पहुंचाएं यह सवाल आज भी लोगों के जेहन में है कुछ उत्तर भारतीय मजदूरों का मानना है कि कुछ नेताओं ने ₹५ का निवेदन राज्यपाल को देकर ऐसे जताने की कोशिश की कि यही गरीबों की सहायता है।मुंबई में जब-जब लोकसभा-विधानसभा चुनाव आता है। ये उत्तर भारतीय नेता अपने आपको उत्तर भारतीयों का हितैषी मानने का ड्रामा कर कहते हैं वोट हमें ही देना। अभिनेता सोनू सूद का उत्तर भारतीयों से सीधा कोई लेना देना नही है फिर भी उन्होंने उत्तर भारतीय मजदूरों की दिल खोलकर मदद की। दूसरी ओर अगर हम बात करें विनय दुबे की तो जिसको लेकर इतना बवाल हुआ भले ही उसने लोगो को ऐसे माहौल में कुर्ला में इकट्ठा होने के लिए कहा और सरकार को उसने तो खुली चेतावनी भी दी थी, उत्तर भारतीयों को घर पहुंचाने के लिए उस वक्त भी सारे उत्तर भारतीय नेता सो रहे थे। किसी ने यह नही कहा कि विनय दुबे ने गलती की है या नहीं। किसी ने यह नहीं कहा कि हम बस के जरिये अपने पैसों से बेबस लाचार मजदूरों को गांव भेजने को तैयार है। सरकार इसकी व्यवस्था करे।काश, ऐसा कुछ हमारे मुंबई के उत्तर भारतीय नेताओं ने किया होता तो शायद उत्तर भारतीय मजदूरों को ना तो पैदल जाना पड़ता और ना ही कइयो को अपनी जान गंवानी पड़ती। संकट के समय उत्तर भारतीय नेताओं ने मजदूरों से मुह फेर लिया, समय आने पर मुंबई में बसे लाखों उत्तर भारतीय अवसरवादी नेताओं को सबक जरूर सिखाएंगे, मुंबई से १४०० किलोमीटर जो मजदूर पैदल चल कर गांव गए हैं। उनके जख्म अभी भरे नहीं हैं। मुंबई में बसे बड़े-बड़े नामचीन उत्तर भारतीयों नेताओं का इनके सामने नाम लेते ही बसे उन्हे यहीं लाइन याद आती है। हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहा दम था, मेरी किशती थी डूबी जहां पानी कम था
@manojchandeliya