गुजरात एटीएस ने मुंबई से किया तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार, गुजरात के लिए लेकर एटीएस हुई रवाना
लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति न्याय की परिधि से बाहर नहीं होता- गृह मंत्री अमित शाह
मुंबई: गुजरात ATS की ने एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को हिरासत में लिया है। उनके झूठे आरोपों की गुजरात एटीएस जांच करेगी। गुजरात दंगों पर 2002 में दायर याचिका शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कोई तथ्य और आधार नहीं होने पर खारिज कर दी थी। गुजरात एटीएस ने एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को उनके मुंबई के जुहू तारा रोड सांताक्रुज के घर से हिरासत में लिया है और उन्हें मुंबई के सांताक्रूज पुलिस स्टेशन ले जाया जहां से उनको हिरासत में लेने की डायरी करने और पुलिस को जानकारी देने के बाद गुजरात के लिए लेकर तीस्ता सितलवाड रवाना हो गई।
गुजरात पुलिस ने तीन आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
1) पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट
2) पूर्व आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार
3) एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़
गुजरात दंगों के बारे में गलत और झूठी जानकारी देने का इन तीनो पर आरोप है। आरोपी ने जकिया जाफरी के माध्यम से कई याचिकाएं अदालत में डाली और एसआईटी प्रमुख को झूठी जानकारी और अन्य आयोग को झूठी जानकारी दी। जांच में पाया गया है कि याचिका के जरिए गलत जानकारी दी गई। इन सभी लोगों पर अदालत में फिर से मामला दर्ज कर गुजरात सरकार को जांच का आदेश दिया था। तीस्ता सीतलवाड़ को मुंबई से हिरासत में ले लिया गया है गुजरात में एटीएस गिरफ्तारी दर्ज करेगें। बाकि लोगों को भी इस मामले हिरासत में लेने की तैयारी जारी है।आईआईटी मुंबई के छात्र रहे संजीव भट्ट ने साल 1988 में गुजरात काडर से आईपीएस ज्वाइन किया था. उन्हें साल 2011 में बिना इजाज़त नौकरी से ग़ैरहाज़िर रहने और सरकारी गाड़ी के कथित दुरुपयोग के मामले में नौकरी से सस्पेंड किया गया था और फिर 2015 में नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया गया। गुजरात सरकार में रहकर भट्ट की सरकार से कभी नही बनी।
कौन हैं तीस्ता सीतलवाड़?
तीस्ता सीतलवाड़ एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार हैं। वह सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस या सीजेपी नामक संगठन के सचिव भी हैं। इस संगठन की स्थापना 2002 में गुजरात में सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए की गई थी। सीजेपी एक सह-याचिकाकर्ता है जो 2002 के गुजरात दंगों में शामिल होने के लिए नरेंद्र मोदी और 62 अन्य सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग कर रही है। वहीं तीस्ता सीतलवाड़ का संगठन भाजपा की नजर में नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिए कांग्रेस द्वारा स्थापित करके चलाया जा रहा था।
गौरतलब हो कि गुजरात एटीएस की टीम तीस्ता सितलवाड को गुजरात लेकर जा रही है। शनिवार की दोपहर को गुजरात एटीएस की टीम ने अचानक में तीस्ता सीतलवाड़ के घर पर धावा बोला।। तीस्ता सीतलवाड़ घर पर ही थी उनको सीआईएफ की सुरक्षा भी प्रदान थी। वो हैं जिनकी गुजरात दंगों को लेकर याचिका शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एक बार फिर नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी। लेकिन एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को लेकर जांच की जरूरत बताई थी। जकिया जाफरी ने मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 64 लोगों को एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती दी थी। जकिया ने एसआईटी रिपोर्ट के खिलाफ उनके आवेदन को खारिज करने के 5 अक्टूबर, 2017 के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 9 दिसंबर को याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
SIT की रचना में अफसरों का चयन हमने नहीं देश के सर्वोच्च न्यायालय ने किया था, और जिन अफसरों का चयन हुआ वो भाजपा शासित राज्यों से नहीं केंद्र सरकार से लिए गये थे। और तब तक केंद्र में UPA की सरकार बन चुकी थी।
— Amit Shah (@AmitShah) June 25, 2022
इसलिए SIT की जाँच को प्रभावित करने का सवाल ही खड़ा नहीं होता। pic.twitter.com/4zffv7CyhI
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि जाकिया जाफरी किसी और के निर्देश पर काम करती थी। एनजीओ ने कई पीड़ितों के हलफनामे पर हस्ताक्षर किए और उन्हें पता भी नहीं है। सब जानते हैं कि तीस्ता सीतलवाड़ यह एनजीओ की आड ये सब कर रही थी। उस समय की केंद्र यूपीए सरकार ने तीस्ता के एनजीओ की काफी मदद की थी।
भाजपा विरोधी राजनीतिक दल, कुछ ideology के लिए राजनीति में आये पत्रकार और NGOs ने मिलकर मोदी जी पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें बड़े पैमाने पर प्रचारित किया।
— Amit Shah (@AmitShah) June 25, 2022
और उनका इकोसिस्टम इतना मजबूत एवं व्यापक था कि धीरे-धीरे लोग इस झूठ को ही सच समझने लगे pic.twitter.com/e0tF7oUfUY
गुजरात में हमारी सरकारी थी लेकिन केंद्र में यूपीए की सरकार ने एनजीओ की मदद की थी। सब जानते हैं कि ये केवल तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि खराब करने के लिए किया गया था। बीजेपी विरोधी राजनीतिक पार्टियां, कुछ विचारधारा के लिए राजनीति में आए पत्रकार और सामाजिक संगठनों ने मिलकर आरोपों का इतना प्रचार इतना भ्रामक था कि लोग इनको ही सत्य मानने लगे।