बिहार में का बा, NDA में फूट बा? नीतीश से नाराजगी और मोदी से प्रेम, लोजपा अकेले लड़ेगी चुनाव

Update: 2020-10-04 12:14 GMT

पटना। लोजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला ले लिया है। रविवार को दिल्ली में हुई लोजपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया। अब देखना यह है कि बिहार में लोजपा से अलग होकर एनडीए को कितना फायदा मिलता है। दोनों ही दल (जेडीयू और भाजपा) यह दावा करते रहे हैं कि उनका स्वाभाविक गठबंधन है और दोनों ही दलों की आपसी समझ भी काफी बेहतर है।

एनडीए के दोनों ही प्रमुख दलों को बिहार की जनता भी सिर आंखों पर बिठाती रही है। इस चुनाव में जनता इन्हें या महागठबंधन के दलों पर मेहरबान होती है, यह तो भविष्य बताएगा लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि कि जब-जब ये दोनों दल साथ लड़े जेडीयू का वोट प्रतिशत हर बार बढ़ता चला गया। जदयू का साथ मिलने से 2005 के फरवरी में हुए बिहार विधानसभा के चुनाव से ही भाजपा के भी वोट प्रतिशत में चुनाव-दर-चुनाव इजाफा होता चला गया। वर्ष 1994 में जनता दल (जे) समता पार्टी बनी थी।

1996 के लोकसभा चुनाव से भाजपा और जदयू का बिहार में गठबंधन हुआ। वर्ष 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में दोनों दल पहली बार साथ उतरे। उसके बाद हर चुनाव में दोनों ही दलों को बिहार की जनता का नेह-स्नेह मिलता रहा और बिहार की चुनावी राजनीति में जदयू और भाजपा मजबूत होते चले। 2000 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने 34 सीटें जीतीं। तब उसने 120 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। वहीं भाजपा की झोली में 67 सीटें आईं।

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