हिंदी की पहचान आज हिंदी पट्टी या देश तक ही सीमित नहीं, बल्कि विदेशों में भी हिंदी बोलने, पढ़ने, समझने और लिखने वालों की बड़ी संख्या है. इस संख्या पर हम समय -समय पर गर्व भी करते रहते हैं. देश की राजनीति भी हिंदी राज्यों के इर्द-गिर्द घूमती है। हिंदी की प्रगति पर हमें गर्व होना चाहिए. विदेशों में जब हिंदी का प्रयोग बढ़ने लगे और इसे दूसरी सबसे बोली-समझे जाने वाली भाषा के तौर पर दर्ज किया जाता है, तो हमें गर्व ही होता है. दुनिया में लगभग सभी देशों में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगभग एक अरब 45 करोड़ के पार पहुंच चुकी है जो कि दुनिया में बोली जाने वाली किसी भी भाषा से अधिक है।
2016 में अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में मतदान पर्ची पर पहली बार हिंदी में मतदाताओं को धन्यवाद दिया गया था. अमेरिका के चुनावी इतिहास में पहली बार हिंदी को अन्य भाषाओं के साथ शामिल किया गया था. यह एक भाषा के बढ़ते दायरे का प्रतीक तो है ही इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर हिंदी की स्वीकार्यता का प्रमाण भी है. लेकिन उत्तर प्रदेश की बोर्ड परीक्षाओं के रिजल्ट में देखा गया. इस परीक्षा परिणाम के बाद ही हिंदी को लेकर फिर से तमाम प्रश्न खड़े हो गए. इस वर्ष घोषित उत्तर प्रदेश बोर्ड के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं में बड़ी संख्या में बच्चे हिंदी में फेल हो गए. हिंदी पट्टी का गढ़ उत्तर प्रदेश है. ऐसे में फिर सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति के पीछे क्या कारण होंगे ? एक ओर जहाँ विदेशों में भी हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ रही है वहीं हिंदी अपनी ही जमीन से कटती क्यों जा रही है ! इस स्थिति को लेकर अभिभावक, स्कूल, समाज और सरकार कितने जिम्मेदार हैं? उच्च शिक्षा में हिंदी की अनिवार्यता का न होना, क्या इस स्थिति का बड़ा कारण है ? इन सारे प्रश्नों पर विचार करना चाहिए. तभी हिंदी की इस स्थिति को समझा जा सकता है. सबको लगता है कि हिंदी में तो पास हो ही जाएंगे.
इस भाव ने हिंदी को कमजोर किया है. मेडिकल व इंजीनियरिंग जैसे विषयों का पठन- पाठन हिंदी में न होना, बड़ा कारण है. इस कारण से स्कूल, अभिभावक और विद्यार्थी सभी आरंभ से ही हिंदी भाषा को लेकर लापरवाह रहते हैं। उसी तरह मुंबई में भी बड़ी संख्या में हिंदी भाषी रहते हैं। अभी 10 वीं का रिजल्ट आया है। मुंबई में हिंदी पट्टी के मूल निवासी छात्रों का भी हिंदी में संतोषजनक अंक नहीं आया है। हिंदी का पूरी दुनिया में बोलबाला बढ़ रहा है। हिंदी बोलने का चलन तेजी से बढ़ा है। हिंदी के दम पर ही मुंबई में इतना बड़ा बालीवुड खड़ा है। हिंदी फिल्मों के जरिये अभिनेताओं को पूरी दुनिया में ख्याति मिलती है, तो हिंदी के लिए अभिभावकों और लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि इसे गंभीरता से लें अन्य विषयों की तरह परीक्षा देते समय हिंदी को भी गंभीरता से लें। हिंदी हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा बोली जाती है इसलिए हमारी राष्ट्रभाषा भी है। साथ-साथ संपर्क भाषा भी है हिंदी ही है जो इसी के जरिए पूरे भारत में हम संवाद कर सकते हैं।