हमारी टीम मैक्स महाराष्ट्र हिंदी ने इस सच्चाई को जानने के लिए ज़मीनी हकीकत से रूबरू होने का फ़ैसला किया। हम पहुंचे मुंबई के एक पुराने इलाके में, जहां गटर की सफाई मैनुअली की जाती है – न कोई दस्ताने, न मास्क, न सुरक्षा उपकरण।
बिना सुरक्षा के नरक में उतरना
हम जिस गली में पहुंचे, वहां एक 42 वर्षीय सफाईकर्मी राजू (बदला हुआ नाम) हमें मिले। उनके हाथों में कोई दस्ताना नहीं था, चेहरे पर कोई मास्क नहीं, सिर्फ़ एक पुरानी बनियान और घुटनों तक चढ़ी पैंट। उन्होंने बताया:
“साहब, हर बार कहते हैं कि सुरक्षा किट मिलेगा, लेकिन सालों से सिर्फ झूठ ही मिला है। जो भी कुछ मिलता है, अपने पैसों से खरीदना पड़ता है, लेकिन हमारी मज़दूरी ही क्या है!”
राजू गटर में उतरते हैं, जिसमें बदबू इतनी तेज़ थी कि हमारी टीम के रिपोर्टर को मास्क के बावजूद उल्टी जैसा महसूस होने लगा। गटर के अंदर गंदा पानी, सड़ता हुआ कचरा और चारों ओर मच्छरों का भयानक हमला – सोचिए कि जहां हम एक मिनट भी खड़े नहीं हो सकते, वहां ये लोग घंटों काम करते हैं।
ठेकेदार की धमकियां
राजू और उनके जैसे कई सफाईकर्मी ठेकेदारों के अधीन काम करते हैं। जब हमने ठेकेदार के व्यवहार के बारे में पूछा, तो एक अन्य सफाईकर्मी, मीरा देवी ने कहा:
“अगर बीमार हो जाओ तो काम से निकाल देते हैं। बोलते हैं – ‘तुम्हारे जैसे और बहुत हैं।’ शिकायत करो तो धमकी मिलती है कि नौकरी चली जाएगी।”
इन सफाईकर्मियों को मेडिकल सुविधा तो दूर, कभी-कभी पूरी मजदूरी भी नहीं दी जाती। कई बार बिना किसी सेफ्टी केमिकल के उन्हें गटर में उतार दिया जाता है, जिससे स्किन इंफेक्शन, सांस की बीमारियां और डेंगू जैसी समस्याएं हो जाती हैं।
कानून के बावजूद बेपरवाही
भारत में 2013 में मैनुअल स्कैवेंजिंग को गैरकानूनी घोषित किया गया, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे अलग है। गटर सफाई का काम आज भी मैन्युअली हो रहा है। मशीनों की व्यवस्था कहीं नहीं है, और जहां है भी, वहां उन्हें चलाने के लिए प्रशिक्षण नहीं।
प्रशासन और समाज की चुप्पी
हमारे इस ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान स्थानीय प्रशासन को भी संपर्क किया गया, लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला। समाज का रवैया भी इन सफाईकर्मियों के प्रति उपेक्षापूर्ण है – उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है, जबकि वही लोग हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को साफ-सुथरा बनाए रखते हैं।
निष्कर्ष
इन सफाईकर्मियों की ज़िंदगी में सिर्फ़ गंदगी ही नहीं, बल्कि सिस्टम की बेरुखी, ठेकेदारों की दादागीरी और समाज की चुप्पी भी है। ये लोग हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर एक ऐसा काम करते हैं, जिसे करने से हम सभी घबराते हैं – और वो भी बिना किसी सुरक्षा, बिना इज्ज़त, बिना स्थायीत्व के।
मैक्स महाराष्ट्र हिंदी की टीम मांग करती है कि इन सफाईकर्मियों को उचित सुरक्षा उपकरण, नियमित मेडिकल जांच, स्थायी नौकरी और सामाजिक सम्मान मिले। साथ ही सरकार को इस दिशा में सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है – क्योंकि गटर में उतरने वाला हर इंसान, पहले एक इंसान है।
रिपोर्टर: मैक्स महाराष्ट्र हिंदी