प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 75वीं सालगिरह 17 सितंबर 2025 को है, और इसको लेकर कई तरह की अटकलें और चर्चाएँ मीडिया और राजनीति में तेज़ी से चल रही हैं। कुछ का कहना है कि वह 75 की सीमा (age rule) के बाद अपने पद से हट जाएंगे, वहीं कुछ इसे सिर्फ़ अफवाह या राजनीतिक हथियार मानते हैं। आइए देखें तर्क, तथ्य, और संभावनाएँ।
दावों के स्रोत और उनका सच
RSS प्रधान मोहन भागवत का बयान
भाजपा का कोई आधिकारिक नियम नहीं
पार्टी के नेताओं ने कई बार कहा है कि भाजपा के स्व-संविधान या नियमों में 75 की उम्र के बाद पद छोड़ने या सेवानिवृत्ति का कोई प्रावधान नहीं है।
उदाहरण के लिए, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि 75 की सीमा चुनाव टिकट देने या पार्टी की आंतरिक जिम्मेदारियों के लिए निर्णय हो सकता है, लेकिन यह कोई लेखाबद्ध नियम नहीं है।
भागवत ने पिछले महीनों में कहा है कि “75 वर्ष की उम्र एक संकेत हो सकता है कि वक्त है पीछे हटने का, अपनी जगह दूसरों को देने का।”
लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि “मैंने कभी नहीं कहा कि किसी को 75 की उम्र पर सेवानिवृत्त होना चाहिए।”
अपत्तिजनक/फर्जी खबरें भी फैली हुई हैं
एक viral ग्राफिक देखा गया है जिसमें दावा किया गया कि मोदी ने “16 सितंबर 2025” को अपना अंतिम दिन बताकर सेवानिवृत्ति की घोषणा की है। BOOM, Quint और अन्य fact-checkers ने यह साबित किया है कि वह पूर्वोक्त ग्राफिक नकली है, और कोई आधिकारिक स्रोत ने ऐसा कुछ नहीं कहा है।
राष्ट्रीय राजनीति और विरोधी दलों की टिप्पणी
विपक्ष की पार्टियों ने मौकों का उपयोग करते हुए इस “75-साल की सीमा” की अवधारणा को उठाया है, यह प्रश्न करते हुए कि नियम यदि है तो मोदी पर क्यों लागू न हो।
भाजपा सहयोगी दलों और अति वरिष्ठ नेताओं ने स्पष्ट बयान दिए हैं कि मोदी 2029 तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे और कोई ऐसी घोषणा नहीं की गई है कि वह 75 वर्ष की उम्र पर पद छोड़ेंगे।
वर्तमान स्थिति: क्या संभव है?
तथ्य यह है कि:
संविधान या सरकारी कानून में ऐसा कोई स्पष्ट नियम नहीं है जो प्रधानमंत्री या अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे किसी व्यक्ति को 75 वर्ष की आयु पर ज़रूर पद छोड़ने को बाध्य करे।
पार्टी स्तर पर “उम्र आधारित विराम” या “75 वर्ष से अधिक उम्र न हो उम्मीदवार” का निर्णय कभी-कभी चुनावी रणनीति के हिस्से के रूप में लिया गया है, लेकिन इसे पार्टी के संविधान में दर्ज नियम के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है।
संभावित असर और मायने
यदि मोदी या भाजपा इस “75 की सीमा” को लागू करते हैं, तो राजनीतिक दृष्टि से यह विरोधियों को बरसी पुरानी आरोपों के आधार पर रिकॉर्ड तुलना का अवसर देगा।
इसके अलावा, जनता में यह प्रश्न उठेगा कि क्या नियम सभी नेताओं पर समान रूप से लागू होगा, या सिर्फ़ कुछ चुनिंदा नेताओं के लिए।
यह चर्चा पार्टी आंतरिक संरचना, नेतृत्व उत्थान, उत्तराधिकार (succession) की रणनीति और प्रधानमंत्री के बाद की भूमिका तथा पार्टी के भविष्य को लेकर राजनीतिक महत्व रखती है।