क्या महाराष्ट्र की सरकार गिरेगी? ड्रग्ज कांड के पीछे क्या है राज और क्या है राजनीति - रवींद्र आंबेकर
शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान का ड्रग्ज मामले में गिरफ्तार होने के बाद महाराष्ट्र की राजनीति भी गरमा गई है। हांलाकि शाहरूख खान ने अन्य बॉलीवूड सितारों की तरह राजनितीक गलियारों में चक्कर नहीं काँटे. फिर भी शाहरूख खान के बेटे पर कारवाई के अपने कई राजनितीक मायने है। हम ये भूल नहीं सकते की, शाहरूख खान और काँग्रेस के सबसे शीर्ष नेता राहुल गांधी अच्छे मित्र है। हम ये भूल नहीं सकते की शाहरूख खान भाजपा या नरेंद्र मोदी कैम्प से हमेंशा ही दूर रहे है। सलमान खान ने नरेंद्र मोदी से हात मिलाया लेकिन शाहरूख उचित दूरी बनाकर बैठे थे।
शाहरूख खान के बेटे की गिरफ्तारी के राजनितीक मायने यहीं पर खत्म नहीं होते है। शाहरूख खान के बेटे की गिरफ्तारी पर केंद्र की साजीश के तौर पर भी सवालियां निशान लग चुका है। क्या शाहरूख खान से फिरौती मांगने तक ही ये मामला सीमित है, या फिर शाहरूख खान के बेटे को जानबूझकर फँसाया गया है, इन सवालों के अब तक जवाब नहीं मिले है। कौन सी जाँच एजन्सी अब इसपर से राज का पर्दा हटाएगी? क्या क्रूझ पार्टी का सच कभी सामने आएगा? फिलहाल इस स्टोरी में कई एंगल है। इसमें राजनिती का तडका लग चुका है। महाराष्ट्र के वरिष्ठ मंत्री नवाब मलिक ने इस पुरे मामले को अपहरण और फिरौती का मामला बताया है, जबकि भाजपा की तरफ से मैदान में उतरें मोहित भारतीय ( कंभोज ) ने भी पुरी साजीश के तार एनसीपी से जुडे होने का आरोप लगाया है। फिलहाल, मुंबई में बीच समुंदर एक ड्रग्ज पार्टी का आयोजन किया जाता है।
आम तौर पर अगर आपको समुंदर में पार्टी करनी है तो पोर्ट ट्रस्ट से एक पार्टी लायसन्स हासिल करना होता है, जो केंद्र की सरकार के अधीन होता है, पार्टी की जानकारी मुंबई पुलिस को देना अनिवार्य होता है, जो कि राज्य सरकार के अधीन है। पोर्ट ट्रस्ट के नियमों के अनुसार पार्टी में शामील होने वाले सभी के नामों का पास बनता है। और इसी में से गिने चुने नाम एनसीबी की लिस्ट के तौर पर व्हायरल हो जाते है। आर्यन खान की गिरफ्तारी या कब्जा प्रायवेट लोग करते है। शाहरूख खान से पैसे मांगे जाते है, एक हप्ता उठाया जाता है, फिर उसपर से बवाल खडा हो जाता है, NCB की कस्टडी में सेल्फी लिए जाते है, आरोपी की परिवार वालों से बात कराई जाती है। ये सारा फिल्मी घटनाक्रम से कम नहीं है।
आखिर ये किसकी साजीश है, पार्टी का मुख्य आयोजक, ड्रग्ज सप्लायर कौन है, ये टीप देने वालों की टोली और समीर वानखेडे का क्या संबंध है, इन बातों पर अभी रौशनी पडना बाकी है।
अब इस पुरे मामले के राजनितीक अंग पर बात करते है। इस मामले में एक वरिष्ठ मंत्री को भी पार्टी के लिए बुलाया गया था। ये मंत्र मुसलमान धर्म का है, अगर सोचिए वो मंत्री क्रूझ पर पकडा जाता तो पुरे उत्तरप्रदेश चुनाव का नैरेटीव बदल जाता. इस्लामी ड्रग्ज रैकेट की वजह से हिंदू खतरें में पड जाता, इसमें आतंकवादी एंगल भी आ जाता और क्रूझ पार्टी पर सवार हो कर देश की राजनीति ध्रुवीकरण के दुसरे तट की ओर निकल चुकी होती. आज मौजूदा स्थिती में केंद्र की एजंसिया ये साबीत करने में लगी है, की महाराष्ट्र अंडरवर्ल्ड और ड्रग माफियाओं के हात में है, और वो ही राज्य को चला रहे है। ऐसे में टार्गेट गृहमंत्रालय है, जो NCP के पास है। साथ ही में ड्रग्ज पार्टी के अलावा भी जितने मामले अभी चल रहे है, फिर चाहें वो अनिल देशमुख के १०० करोड उगाही का मामला हो, अजित पवार पर हुई छापेमारी का मामला हो, नवाब मलिक के दामाद पर हुई नार्कोटीक्स डिपार्टमेंट की कारवाई हो, हसन मुश्रीफ पर हुए आरोप हो.. इन तमाम श्रृंखला की हर कडी NCP से संबंधीत है।
भला ऐसे कैसे हो सकता है की केवल एनसीपी ही टार्गेट हो और बाकी पार्टींको सिर्फ सचेत करने के लिए धमकाया जाए। तो इस बात को थोडा संक्षेप में समझ लेते है। फिलहाल महाराष्ट्र की सरकार अपने दो साल का कार्यकाल पुरा कर रहीं है। ऐसे में १०६ विधायकों वाली बीजेपी के लिए सबसे बडी समस्या है की वो अपने विधायकों को सँभाले, क्योंकि इनमें से ज्यादातर विधायक काँग्रेस-राष्ट्रवादी काँग्रेस को छोडकर भाजपा में शामिल हुए थे, वो भी सत्ता की लालच में। अब जब देवेंद्र फडणवीस सत्ता नहीं ला पा रहे है, तो इन विधायकों में हलचल मचना स्वाभावीक है। ऐसे में देवेंद्र फडणवीस को हररोज एक नयी डेडलाइन देनी पडती है। फडणवीस की सरकार अगर बननी है, तो मौजूदा सरकार में से विधायकों को इस्तिफा देकर बाहर निकलना पडेगा। आज के घडी में महाविकास आघाडी सरकार ने अपने विधायकों को धमकी दी हुई है की अगर कोई इस्तिफा देकर बाहर निकलता है, तो तिनों पार्टीयां मिलकर उनके खिलाफ लडेंगी। तो कोई भी विधायक अपनी कुर्सी दांव पर लगाने के लिए तैयार नहीं है। भाजपा को सत्ता बनाने के लिए 39 सीटों की आवश्यकता है। लेकिन इतनें बडे पैमाने पर विधायक चाहिए तो किसी दल को ही सत्ता से बाहर निकालना पडेगा, जो प्रयोग एक बार असफल हो चुका है।
ऐसें में शिवसेना को अगर वापस भुनाना है, तो उसमें वापस ५०-५० फॉर्म्युले को अपनाना पडेगा, जिसमें से दो साल तो कट चुके है। बचे हुए तीन सालों में क्या देवेंद्र फडणवीस ५०-५० करेंगे? मुझे लगता है की अब किसी भी हालत में उध्दव ठाकरे से फडणवीस हात नहीं मिलाएंगे। तीन पहियों के बजाए दो पहियों वाली स्थीर सरकार अगर उद्धव ठाकरे को मिले तो वो फिर कभी देवेंद्र फडणवीस को राज्य की राजनिती में सर उठाने नहीं देंगे, ऐसे में केवल एनसीपी का सहारा भाजपा की नइया पार करा सकता है। फिलहाल एनसीपी के वरिष्ठ नेता रोजरोज के धमकीयों से ऊब चुके है, कई लोग तो डर के आगे जीत का नारा लगा रहे है, भाजपा एनसीपी के नेताओं को नहीं बल्की अंदर के डर को मार रही है। फिर भी अब केवल एनसीपी में ही कुछ हलचल हो सकती है, इसलिए टार्गेट पर एनसीपी बिल्कुल है।
सुशांत सिंह राजपूत ( Sushant Singh Rajput ) केस के बाद महाराष्ट्र की सरकार को बुरी तर हसे घेरा गया. अब आर्यन खान मामले में एक बार फिर सरकार घिर चुकी है, लेकिन एक बात साफ है, जितने हमले होते रहेंगे, महाविकास आघाडी की सरकार और मजबूत होते रहेगी।
परिचय – लेखक मॅक्समहाराष्ट्र के प्रमुख संपादक और वरिष्ठ पत्रकार है।