मुंबई: सैफ अली ख़ान और करीना कपूर ख़ान ने अपने दूसरे बेटे का नाम पब्लिक कर दिया है। उन्होंने उसका नाम 'जहांगीर अली खान' रखा है। छोटे बेटे का नाम भी बड़े बेटे 'तैमूर' की ही तरह मुगल बादशाह के नाम पर है। नाम सामने आने के बाद सोशल मीडिया यूज़र्स ने सैफ़ और करीना को जमकर ट्रोल किया है।
करीना ने अपनी नई बुक 'प्रेग्नेंसी बाइबल' के प्रमोशन को लेकर करन जौहर के साथ सोशल मीडिया पर लाइव चैट सेशन किया था। इसी दौरान उन्होंने अपनी प्रेग्नेंसी को लेकर कई खुलासे किए। साथ ही छोटे बेटे के नाम से भी पर्दा उठाया। हालांकि, पहले 'जेह अली खान' नाम रखने की खबरें सामने आईं थीं। लेकिन, अब साफ हो गया है कि वो उसका निकनेम है।
सैफ़ीना का मज़ाक उड़ाते हुए एक यूज़र ने लिखा, "करीना-सैफ मुगल शासकों की टीम बनाना चाहते हैं, पहले तैमूर और अब जहांगीर। अगला कौन औरंगजेब होगा?"
एक दूसरे यूज़र ने लिखा, "सैफ अली ख़ान और करीना कपूर अपने बच्चों का नाम तत्कालीन मुगल शासकों के नाम पर रखकर 21वीं सदी के मुगल वंश को चला रहे हैं। तैमूर के बाद अब जहांगीर। मुझे उम्मीद है कि सैफ़ खुद को बाबर नहीं समझेंगे।" तीसरे ने लिखा, "अरे भाई सारा मुग़ल साम्राज्य इसी फेमिली में पैदा कर दोगे क्या..?"
एक अन्य यूज़र ने लिखा, "करीना के बेटे का नाम कलाम, इरफ़ान, जाक़िर, हो सकता था, लेकिन तैमूर और जहांगीर ही क्यों? ये हिंदू और सिखों को नीचा दिखाने की साज़िश है। लगता है जैसे करीना सैफ़ मुग़लों की आईपीएल टीम लॉन्च करना चाहते हैं।" लेकिन कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स सैफ़ और करीना के सपोर्ट में भी दिखे। इससे पहले 2016 में जब तैमूर का नाम सामने आया था, तब भी इसी तरह का विवाद हुआ था।
कौन था जहांगीर?
मुग़ल बादशाह अकबर के बेटे सलीम का ही नाम जहांगीर था। जहांगीर एक पारसी शब्द है, जिसका अर्थ है दुनिया पर राज करने वाला। जहांगीर का असली नाम नूर-उद-दीन मोहम्मद सलीम था। जहांगीर का जन्म 31 अगस्त 1569 को हुआ था। 1605 से 1627 में अपनी मौत होने तक जहांगीर ने भारत की सत्ता संभाली।
जहांगीर ने आगरा के किले शाहबुर्ज और यमुना तट पर स्थित पत्थर के खंबे में एक सोने की जंजीर बंधवाई थीं जिसमें करीब 60 घंटियां भी लटकी हुई थी, जो कि "न्याय की जंजीर" के रुप में प्रसिद्ध हुई। बताया जाता है कि कोई भी फरियादी मुश्क़िल के समय इस जंजीर को पकड़कर खींच सकता था और सम्राट जहांगीर से न्याय की गुहार लगा सकता था। जहांगीर जनता के कष्टों और मामलों को खुद भी सुनता था। उनकी समस्याओं को हल करने और उन्हें न्याय दिलवाने की पूरी कोशिश करता था।
28 अक्टूबर 1627 को लाहौर यात्रा के दौरान उसकी मौत हो गई थी।