शरद पवार का मोदी सरकार पर अटैक,मनमोहन सिंह के साथ लाना चाहते थे कृषि क्षेत्र में सुधार, मगर..

दिल्ली में बैठकर खेती के मामलों से नहीं निपटा जा सकता

Update: 2020-12-29 14:54 GMT

मुंबई। NCP अध्यक्ष और पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने मंगलवार को आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने राज्यों से विचार विमर्श किए बिना ही कृषि संबंधी तीन कानूनों को थोप दिया। दिल्ली में बैठकर खेती के मामलों से नहीं निपटा जा सकता क्योंकि इससे सुदूर गांव में रहने वाले किसान जुड़े होते हैं। दिल्ली की सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के दूसरे महीने में प्रवेश करने और समस्या का समाधान निकालने के लिए पांच दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के बीच शरद पवार ने किसान संगठनों के साथ बातचीत के लिए गठित तीन सदस्यीय मंत्री समूह के ढांचे पर सवाल उठाया और कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी को ऐसे नेताओं को आगे करना चाहिए जिन्हें कृषि और किसानों के मुद्दों के बारे में गहराई से समझ हो। शरद पवार ने इंटरव्यू में कहा कि सरकार को विरोध प्रदर्शनों को गंभीरता से लेने की जरूरत है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किसानों के आंदोलन का दोष विपक्षी दलों पर डालना उचित नहीं है।

एक तरह से सरकार ने इन तीन कृषि कानूनों को थोपा है

अगर विरोध प्रदर्शन करने वाले 40 यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ अगली बैठक में सरकार किसानों के मुद्दों का समाधान निकालने में विफल रहती है तब विपक्षी दल बुधवार को भविष्य के कदम के बारे में फैसला करेंगे। यह पूछे जाने पर कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दावा किया है कि मनमोहन सिंह अगुआई में यूपीए सरकार में तत्कालीन कृषि मंत्री के रूप में पवार कृषि सुधार चाहते थे पर राजनीतिक दबाव में ऐसा नहीं कर सके, एनसीपी नेता ने कहा कि वे निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में कुछ सुधार चाहते थे लेकिन ऐसे नहीं जिस तरह से भाजपा सरकार ने किया है। उन्होंने सुधार से पहले सभी राज्य सरकारों से संपर्क किया और उनकी आपत्तियां दूर करने से पहले आगे नहीं बढ़े। 'मैं और मनमोहन सिंह कृषि क्षेत्र में कुछ सुधार लाना चाहते थे लेकिन वैसे नहीं जिस प्रकार से वर्तमान सरकार लाई। उस समय कृषि मंत्रालय ने प्रस्तावित सुधार के बारे में सभी राज्यों के कृषि मंत्रियों और क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ चर्चा की थी। दो बार कृषि मंत्रालय का दायित्व संभालने वाले पवार ने कहा कि कृषि ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ा होता है और इसके लिए राज्यों के साथ विचार विमर्श करने की जरूरत होती है।

हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का क्या योगदान नहीं है

पवार ने कहा कि कृषि से जुड़े मामलों से दिल्ली में बैठकर नहीं निपटा जा सकता है क्योंकि इससे गांव के परिश्रमी किसान जुड़े होते हैं और इस बारे में बड़ी जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है। पवार ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने इस बार न तो राज्यों से बात की और विधेयक तैयार करने से पहले राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ कोई बैठक बुलाई। केंद्र सरकार ने कृषि संबंधी विधेयकों को संसद में अपनी ताकत की बदौलत पारित कराया और इसलिये समस्यां उत्पन्न हो गई। एक तरह से सरकार ने इन तीन कृषि कानूनों को थोपा है। अगर सरकार ने राज्य सरकारों से विचार विमर्श किया होता और उन्हें विश्वास में लिया होता तब ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती। किसान परेशान है क्योंकि उन कानूनों से एमएसपी खरीद प्रणाली समाप्त हो जायेगी और सरकार को इन चिंताओं को दूर करने के लिये कुछ करना चाहिए। बातचीत के लिए शीर्ष से भाजपा के उन नेताओं को रखना चाहिए जिन्हें कृषि क्षेत्र के बारे में बेहतर समझ हो। पवार ने कहा, अगर वे कहते है कि विरोध करने वालों में केवल हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान हैं, तब सवाल यह है कि क्या इन्होंने देश की सम्पूर्ण खाद्य सुरक्षा में योगदान नहीं दिया है।

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