Nashik:ओ मेरी मां मैं तेरा लाडला..मां की अंतिम इच्छा पूरा करने बेटे ने इतने पापड़ बेले

Update: 2020-12-19 13:34 GMT

नासिक। मां को पिता के ठीक बगल में दफनाने के लिए बेटे को पौने 3 महीने तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़े। यह घटना नासिक के मनमाड़ की है। बेटे से मां ने कहा था कि उसकी आखिरी इच्छा है कि उसे पति के बगल में ही दफनाया जाए, पर कोरोना की आशंका के चलते यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई। बाद में शव को निकालकर फिर से दफनाया गया। मनमाड़ के डमरे मला इलाके की रहने वाली मंजूलता वसंत क्षीरसागर का 21 सितंबर को निधन हो गया था। डॉक्टर ने मौत की वजह दिल की बीमारी और निमोनिया को बताया।

प्रशासन ने कोरोना की आशंका के चलते संक्रमण का खतरा देखते हुए प्रशासन ने रिपोर्ट आने से पहले ही मंजुलता के शव को क्रिश्चियन रीति-रिवाज से मालेगांव के एक कब्रिस्तान में दफना दिया। 22 सितंबर को जब मंजूलता की रिपोर्ट निगेटिव आई तो उनके बेटे सुहास ने प्रशासन से गुहार लगाई कि मां के शव को कब्र से निकालने की इजाजत दी जाए। सुहास को काफी संघर्ष करना पड़ा। पहले मालेगांव नगर निगम कमिश्नर को पत्र लिखा, पर कोई जवाब नहीं मिला। सुहास लगातार नगर निगम गए। 64 दिनों बाद यानी 23 नवंबर को उन्हें नगर निगम से एनओसी मिली। पर एनओसी पहला फेज था और मालेगांव तहसीलदार से भी मंजूरी चाहिए थी।

25 नवंबर को सुहास ने तहसीलदार को चिट्ठी लिखी। इसके 19 दिन बाद मालेगांव के तहसीलदार चंद्रजीत राजपूत ने मालेगांव में दफनाए शव को मनमाड़ ले जाने की इजाजत दे दी। अब भी सुहास की राह आसान नहीं थी। उन्हें 100 रुपए के बॉन्ड पर नियम और शर्तें पालन करने का एफिडेविट, नगर निगम की एनओसी, मालेगांव कैंप के चर्च से शव ले जाने के लिए एनओसी मनमाड़ क्रिश्चियन मिशनरी की NOC और मेडिकल सर्टिफिकेट जैसे कई दस्तावेज जमा करने पड़े। मालेगांव के तहसीलदार के आदेश के मुताबिक, शव को कई अफसरों और परिजन की मौजूदगी में 17 दिसंबर की सुबह 8 बजे दफनाया गया। सुहास ने बताया कि मां के जाने का दुख है, लेकिन उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने का सुकून है। मालेगांव के तहसीलदार ने बताया कि शव ले जाने की मांग के पीछे मां और बेटे का इमोशनल रिश्ता था।

Tags:    

Similar News