राज्यपाल न्र पत्र में लिखा है की
आपने अपने पत्र में कहा था कि नियम संविधान के अनुच्छेद 208 के अनुसार बनाए गए हैं। लेकिन आप आधी अधूरी जानकारी दे रहे हैं। वही पैराग्राफ कहता है कि जो कुछ भी विधिमण्डल तय करती है। यह संवैधानिक होना चाहिए। इसकी संवैधानिक प्रक्रिया होनी चाहिए। मैंने संविधान के अनुच्छेद 159 के अनुसार राज्य के संविधान की रक्षा करने की शपथ ली है। विधान सभा के अध्यक्ष के चुनाव के संबंध में नियमों में किए गए परिवर्तन प्रथम दृष्टया असंवैधानिक और अवैध हैं और वर्तमान में स्वीकृत नहीं किए जा सकते हैं।
आपने अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया शुरू करने में 11 महीने का समय लिया है और महाराष्ट्र विधानसभा के नियम 6 और 7 के तहत बड़े संशोधन किए हैं। इन सभी प्रभावों और सुधारों की कानूनी रूप से जांच किए जाने की आवश्यकता है। मैंने सदन के कामकाज पर कभी सवाल नहीं उठाया। हालाँकि, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 208 में कहा गया है, मुझ पर इस प्रक्रिया के लिए सहमति के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता है, जो पहली नज़र में असंवैधानिक और अवैध लगती है।
मैं व्यक्तिगत रूप से आपके पत्र के असंगत स्वर और धमकी भरे लहजे से दुखी हूं। आपका पत्र में राज्यपाल का अपमान है जो संविधान का सर्वोच्च पद है।