Corona vaccine खरीदने के लिए धनी देशों में होड़, तो क्या गरीब मुल्क पीछे छूट जाएंगे?

Update: 2020-11-24 03:30 GMT
फाइल photo

नई दिल्ली। इस समय मॉडर्ना, फाइजर व गेमेलिया की कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण परिणामों की अंतरिम रिपोर्ट सामने आई है, विकसित देश किसी भी कीमत पर वैक्सीन खरीदने में सक्षम हैं। विकासशील देश भी उसे हासिल करने की क्षमता रखते हैं, परगरीब देश काफी पिछड़ जाएंगे। देशों के बीच वैक्सीन पाने की होड़ कई अन्य विसंगतियों को भी जन्म देगी। परीक्षण के अंतरिम परिणाम बताते हैं कि दो कोरोना वैक्सीन काफी असरदार साबित हो सकती हैं। हालांकि, किसी भी वैक्सीन को अभी हरी झंडी नहीं मिली है, लेकिन देशों के बीच इनकी खुराक की खरीद की होड़ लग गई है। उत्तरी कैरोलिना स्थित यूएस-ड्यूक यूनिवर्सिटी का एक अहम शोध केंद्र देशों व कंपनियों के बीच के सौदों पर नजर रख रहा है। इसका मानना है कि भरोसेमंद वैक्सीनों की 6.4 अरब खुराक पहले ही बिक चुकी है, जबकि 3.2 अरब खुराक के लिए बातचीत चल रही है।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से संबंधित ग्लोबल हेल्थ पॉलिसी की असिस्टेंट प्रोफेसर क्लेयर वेनहाम का कहना है कि दवा उद्योग में अग्रिम खरीदारी का प्रचलन है। इससे उत्पाद के तेजी से विकास व परीक्षण के लिए फंड जुटाने में मदद मिलती है। वेनहाम कहती हैं कि जो शुरुआती दौर में उत्पाद के लिए निवेश करेगा, वैक्सीन पर उसका दावा ज्यादा होगा। इस क्रम में उच्च आय वाले विकसित देश आगे निकल जाएंगे, क्योंकि उन्होंने काफी निवेश कर रखा है। कुछ मध्यम आय वाले देश भी वैक्सीन की खरीदारी में सक्षम हैं। ब्राजील व मेक्सिको जैसे देश जिन्होंने क्लीनिकल ट्रायल की मेजबानी की है, वे वैक्सीन की खरीद में लाभ उठाएंगे। उदाहरण के लिए, सीरम इंस्टीट्यूट इसके लिए प्रतिबद्ध है कि वह कोरोना वैक्सीन की जितनी खुराक का उत्पादन करेगी, उनमें से आधी का वितरण देश के भीतर करेगी।

इसी प्रकार इंडोनेशिया ने चीनी वैक्सीन के साथ करार कर रखा है, जबकि ब्राजील का यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड व एस्ट्राजेनेका के साथ समझौता है। अभी तक यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि कौन सी वैक्सीन कारगर साबित होगी, इसलिए कुछ देश कई विकल्पों पर हाथ रखे हुए हैं। हालिया आंकड़ों के अनुसार, भारत, यूरोपीय यूनियन, अमेरिका, कनाडा व ब्रिटेन ऐसे देश हैं, जिन्होंने भरोसेमंद वैक्सीन की ज्यादा खुराक आरक्षित कर रखी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि नेता अपनी जनता को प्राथमिकता देना चाहते हैं, क्योंकि वे अपनी जनता के प्रति जवाबदेह हैं।

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