तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति में हिंदुत्व के सहारे क्या सेंध लगा पाएगी भाजपा
तमिलनाडु अभी भी भाजपा के लिए कठिन बना हुआ है। तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति में भाजपा अकेले या सहयोगियों के दम पर खुद को खड़ी कर पाने में कामयाब नहीं हुई। लेकिन पार्टी की बागडोर जिन हाथों में है, वे कभी हार नहीं मानते हैं। आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व के सहारे राज्य में अपनी पैठ बनाने की कोशिशों में है। सही मायने में अमित शाह के तमिलनाडु दौरे से पहले ही भाजपा की विधानसभा चुनावों की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। नेताओं, पूर्व नौकरशाहों एवं समाज के प्रबुद्ध लोगों की पार्टी में भर्ती का अभियान चल रहा है। अगले एक सप्ताह के भीतर करीब डेढ़ सौ लोगों को पार्टी में शामिल होने की संभावना है।
पार्टी राज्य में सूचना प्रौद्यौगिकी के जरिये केंद्र सरकार के कामकाज को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जमीनी स्तर पर अभियान छेड़े हुए है। पार्टी ने हिन्दुत्व के मुद्दे पर जनता के बीच जाने के लिए वेत्रीवेल यात्रा शुरू की है, जिसे लेकर सहयोगी अन्नाद्रुमक सहज नहीं है। इस मुद्दे पर खटपट यहां तक है कि कहा जा रहा है कि शायद ही भाजपा और अन्नाद्रमुक मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ें। दोनों तरफ से गठबंधन जारी रहने की बातें भी कही जा रही हैं। लेकिन हाल में भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष वनती श्रीनिवासन ने स्पष्ट कहा कि द्रविड़ राजनीति ने हिन्दुत्व को सही मायने में नुकसान पहुंचाया। राज्य में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा को 12-20 लाख तक वोट मिले हैं।
यदि प्रतिशत में देखें तो 2016 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को 2.86 फीसदी वोट मिले लेकिन सीट नहीं जीत पाई। 2014 के लोकसभा चुनावें में 5.5 फीसदी वोट मिले और एक सीट जीती। जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में वोट 3.66 फीसदी मिले लेकिन सीट नहीं जीती। लेकिन सूबे में भाजपा के खाते में कुछ उपलब्धियां भी हैं। 2001 में भाजपा ने विधानसभा की चार और उससे पहले 1996 में एक सीट जीती। हाल में निकाय चुनावों में भाजपा के 80 उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे। राज्य भाजपा का दावा यहां तक है कि आगामी विधानसभा चुनावों में वह ठीक से तैयारी करे तो कम से कम 60 सीटें हासिल कर सकती है।