सामना संपादकीय : मानसून सत्र का 'उठाव' गुलाम और मालिक!

विधानसभा सत्र के पहले शिवसेना का मुखपत्र सामना के जरिए सरकार पर फिर हमला। विभाग बंटवारे के बाद शिंदे गुट में नाराजगी के भीगे पटाखे फूटने लगे। इसका मतलब पहले यह गुट ठाकरे सरकार पर नाराज था और अब नई व्यवस्था पर नाराज है।

Update: 2022-08-17 02:46 GMT

विधानसभा का मानसून सत्र बुधवार से शुरू हो रहा है। महाराष्ट्र पर मूसलाधार बारिश और महाप्रलय का साया है। खेती, घर, मवेशियों का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। लोग बह गए। घर-संसार भी बह गया। लेकिन शिंदे, फडणवीस गुट की जो सरकार स्थापित हुई है, वह राज्य की चिंता की बजाय खुद की चिंता से ग्रसित है। स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाया गया लेकिन इस महोत्सव में महाराष्ट्र के हिस्से अमृत के दो कण तो छोड़िए, महाराष्ट्र लाचारी और गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा नजर आ रहा है। शिंदे गुट भालू बन गया और मदारी श्री फडणवीस महोदय हैं, यह जो विभाग बंटवारा वगैरह हुआ, उससे स्पष्ट हो रहा है। भाजपा द्वारा फेंके  गए टुकड़ों और खोखे पर उन्हें इसके आगे गुजारा करना पड़ेगा। विभाग बंटवारे के बाद शिंदे गुट में नाराजगी के भीगे पटाखे फूटने लगे। इसका मतलब पहले यह गुट ठाकरे सरकार पर नाराज था और अब नई व्यवस्था पर नाराज है। 


आखिर में 'लेन-देन' के व्यवहार से कोई सरकार बनती है तो दूसरा क्या होगा? शिंदे देना बैंक हैं, ऐसा कुछ विधायक बोल रहे थे। शिंदे ने खुद के लिए मुख्यमंत्री पद हासिल किया, लेकिन यह क्षणिक साबित होगा। इस बारे में महाराष्ट्र के मन में संदेह नहीं है। गृह, वित्त, राजस्व, लोक निर्माण, वन, पर्यावरण, मेडिकल शिक्षा, विधि व न्याय जैसे महत्वपूर्ण विभाग भाजपा ने अपनी जेब में रखे, इसमें हैरानी क्या है? पूरा शिंदे गुट उन्होंने खरीदकर, धाक दिखाकर अपनी जेब में रखा, वहां विभागों का क्या? नगर विकास मुख्यमंत्री का 'खाते-पीते' पसंदीदा विभाग छोड़ दें तो शिंदे गुट के नसीब में अकाल ही है। नगर विकास विभाग मुख्यमंत्री अपने पास रखते हैं। लेकिन उद्धव ठाकरे ने वह विभाग शिंदे को विश्वास के साथ बहाल किया था। साधारण तौर पर मुख्यमंत्री के पास सार्वजनिक प्रशासन, विधि व न्याय विभाग होता है। न्याय व्यवस्था भाजपा ने अपनी मुट्ठी में रखा है। चंद्रकांत पाटील, सुधीर मुनगंटीवार विभाग बंटवारे के धक्के से क्या संभल गए हैं? 


यह विधानसभा में दिखाई देगा। इन दोनों की अवस्था एकांकी हो गई है। विधानमंडल के सत्र में कई चेहरे बेनकाब होंगे और मुखौटे गल कर गिर जाएंगे। चेहरे पर झूठी मुस्कान लाकर उन दुखी लोगों को सामने आना ही होगा। विधानसभा में अजितदादा पवार और विधान परिषद में अंबादास दानवे नेता प्रतिपक्ष पद पर विराजमान हो गए हैं और वे इस गुटीय सरकारी मुर्गी को छीलकर रहेंगे। पचास दिन बीत जाने के बाद भी इस सरकार का काम शुरू नहीं हुआ है। शिंदे गुट तो विभाग बंटवारे के चक्रव्यूह में फंस  गया है। एक-दो मंत्रियों को आबकारी, उद्योग जैसे विभाग मिले। बाकी तो सूखे ही हैं। अब्दुल सत्तार राज्य के कृषि मंत्री बने और केसरकर शिक्षा मंत्री हुए। अब केसरकर राणे के स्कूल जाएंगे कि राणे केसरकर की क्लास लगाएंगे? लेकिन खुद को राजहंस समझनेवालों को भाजपा ने बगुला बना दिया है और उन बगुलों की फड़फड़ाहट शुरू हो गई है। शिंदे गुट के कुछ उतावले विधायक यह राज्य यानी बाप का राज्य होने जैसा बर्ताव करने-बोलने लगे हैं। शिवसैनिकों का हाथ नहीं तोड़ पाए तो पैर तोड़ेंगे, ऐसी भाषा विधायक प्रकाश सुर्वे ने बोली है। शिंदे गुट और उनके लोग यानी रेंगनेवाले प्राणी हैं क्या? क्या उनके पास अंग और इंद्रियां नहीं हैं? 


हिंगोली में संतोष बांगर नामक ढोंगी ने सरकारी अधिकारी और आपूर्तिकर्ता से खुलेआम मारपीट की। क्या इसे ही कानून का राज कहा जाए? विधानसभा में झुंडशाही पर आवाज उठानी ही चाहिए। भारतीय जनता पार्टी व उनके दिल्लीश्वरों को जो चाहिए, वैसा हो रहा है। मराठी लोगों को मराठी लोगों के विरुद्ध, शिवसैनिकों को शिवसैनिकों के खिलाफ लड़ाकर ये बादशाह और उनके सरपरस्त मजे ले रहे हैं। आजादी के अमृत महोत्सव में ठाणे के सांसद राजन विचारे और असंख्य शिवसैनिकों को ध्वजवंदन करने से पुलिस ने रोक दिया। आप शिंदे गुट के या ठाकरे गुट के, ऐसा सवाल पूछते हुए शिवसैनिकों को नोटिस दी। ठाणे के शिवसेना मध्यवर्ती कार्यालय में शिंदे गुट के मुख्यमंत्री आएंगे इसलिए पुलिस ने छावनी का ही रूप ले लिया। शिंदे गुट में आत्मविश्वास नहीं है इसलिए यह कायरता और दमन शुरू है। शिवसेना की वजह से ही एक कार्यकर्ता शाखाप्रमुख, नगरसेवक, विधायक, नेता प्रतिपक्ष, सर्वोच्च मंत्रिपद तक पहुंचा। उसी कार्यकर्ता ने बेईमानी करके मुख्यमंत्री पद हासिल किया। आखिर में यह गुलामी ही है। गुलामों को कभी प्रतिष्ठा नहीं मिलती। 


विधानसभा के मॉनसून सत्र में यह दिखाई देगा। रही बात शिंदे गुट के बेईमान विधायकों की दी जा रही धमकियों का। ये धमकी बहादुर फुसकी बम हैं। अफजल खान, शाहिस्ता खान ने मावलों के साथ चाल खेली और आखिर में बड़ी साजिश करने के बाद भी मर गए। महाराष्ट्र के स्वाभिमान के साथ छल करनेवालों की अंतड़ी बाहर आ गई और उंगलियां छांट दी गईं। शिंदे गुट की उंगलियां छांटी जाएंगी तब गुलामों का मालिक नया घरौंदा ढूंढने के लिए बाहर निकलेगा। बेईमानी करके सरकार तो आपने बना ली लेकिन अब आपको विधानसभा का सामना करना पड़ेगा। तब उंगलियां और अंतड़ी संभालकर सदन में आएं। दरअसल, विभाग बंटवारे में शिंदे गुट की स्थिति 'बूंद से गई पर हौद से नहीं आएगी' जैसी हो गई है। श्री फडणवीस ही सरकार के नेता हैं। शिंदे गुट एक अस्थायी व्यवस्था है। शिंदे गुट को आज 'शिवसेना, शिवसेना' के तौर पर भाजपा अपने सिर पर लेकर नाच रही है। 

महाराष्ट्र और बालासाहेब ठाकरे का यह अपमान है। पहले मुंबई और बाद में विदर्भ को तोड़ने की साजिश का यह हिस्सा है। इस पाप में शिंदे गुट के विधायकों का शामिल होना शिवराय, सह्याद्रि का अपमान है। लेकिन खोखे की भांग से मदमस्त और अंधे हुए लोगों को यह कौन बताए? इनके मामले में जनभावना तीव्र है। डहाणू के कम्युनिष्ट पार्टी के विधायक विनोद निकोले ने एक ज्वलंत सत्य स्वतंत्रता दिन के समारोह में बताया। उन्होंने कहा, 'पचास करोड़ में बिकनेवालों को फिर सदन में मत भेजो।' पचास करोड़ में विधायक बिक जाता है। यह खबर चिंताजनक है। इसके कारण लोगों का राजनीति से विश्वास उठ गया है। यह पचास-पचास करोड़ आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा पर खर्च हुए होते तो कइयों की जान बच जाती। विधानमंडल में इन सब पर 'उठाव' होना चाहिए। 'उठाव' शब्द शिंदे गुट को बहुत प्रिय है, इसे बताने का तात्पर्य बस इतना ही है!

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