महाराष्ट्र:फासले और कम हो रहे हैं,पास से दूर हम हो रहे हैं..क्या MVA का कार्यकाल पूरा होगा?

Update: 2021-01-18 14:09 GMT

महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस NCP ने मिलकर एक नया गठबंधन, महा विकास अघाड़ी बनाकर भाजपा को झटका दे दिया। आज भाजपा के 105 विधायक होने के बावजूद भी वह महाराष्ट्र की सत्ता से महरूम है। सरकार ने अभी हाल ही में एक साल का कार्यकाल पूरा किया है। एक तरफ महाराष्ट्र की राजनीति में जब एक नया अध्याय लिखा जा रहा था, तब कुछ लोग इस गठबंधन को लगातार बेमेल बता रहे थे। इसके बाद भी एमवीए सरकार चल रही है। पर ताजा बयानबाजी को पर गौर करें तो उनके दावे कमजोर साबित हो रहे हैं। सरकार ने भले ही एक साल पूरा कर लिया हो, पर ताजा राजनीतिक बयानबाजी ने महाराष्ट्र की सियासत में एक नए कयास को जन्म दे दिया है।

बीते कुछ समय से तीनों घटक दलों के बीच मनमुटाव की खबरें बीच-बीच में सामने आ रही है। कांग्रेस-एनसीपी से शिवसेना के संबंध में तनाव देखने को मिले हैं। मंत्री Jitendra Awhad ने अप्रत्यक्ष रूप से ठाणे जिले के कल्याण में सड़कों की खराब हालत को लेकर शिवसेना को जिम्मेदार ठहराया और निशाना साधा है। वहीं दूसरी ओर औरंगाबाद शहर का नाम बदलने को लेकर महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी सरकार में शामिल शिवेसना और कांग्रेस के बीच रविवार को तीखी बहस हुई। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे नीत पार्टी ने कहा कि यदि किसी को क्रूर एवं धर्मांध मुगल शासक औरंगजेब प्रिय लगता है तो इसे धर्मनिरपेक्षता नहीं कहा जा सकता है।

कांग्रेस ने शिवसेना और विपक्षी भाजपा पर नाम बदलने को लेकर राजनीति करने का आरोप लगाया और उनसे पूछा कि पिछले पांच वर्षों से महाराष्ट्र में सत्ता में रहने के दौरान उन्हें यह मुद्दा याद क्यों नहीं आया? महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोरात ने कहा कि राज्य में शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस की एमवीए सरकार स्थिर है। सरकार न्यूनतम साझा कार्यक्रम के अनुसार काम करती है और ''भावुकता की राजनीति के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।

राज्य की पूर्ववर्ती सरकार में सहयोगी रहीं शिवसेना और भाजपा औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज, के नाम पर संभाजीनगर रखने के लिए आधार बना रही हैं। अगर बयानबाजी पर नजर डालें तो शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी में सबकुछ ठीक ठाक नहीं दिख रहा है। गठबंधन के नेताओं की बयानबाजी इसके गवाह बन रहे हैं। अगर जल्द ही तीनों घटक दलों के बीच रिश्ते ठीक नहीं हुए तो एमवीए को पांच साल का कार्यकाल पूरा करना कठिन हो जाएगा।

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