पालना हिला! डोर किसके पास? शिवसेना का सामना के जरिए सरकार पर हमला
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए एक बार फिर महाराष्ट्र सरकार पर हमला बोला है। कल हुए सरकार के 18 मंत्री के शपथ विधि समारोह को लेकर संपादकीय में सरकार के नए मंत्रियों पर जमकर कटाक्ष की है।
आखिरकार ४० दिनों बाद शिंदे-फडणवीस की सरकार के जन्म होने के पेड़े बांटे गए, लेकिन पालने में असल में कौन है? यह समझना आसान नहीं है। भाजपा और शिंदे गुट को मिलाकर १८ मंत्रियों को शपथ दिलाई गई। मंत्रियों को शपथ दिलाते हुए राज्यपाल महोदय का चेहरा खुशी से खिल उठा था। बहुत बड़ा ईश्वरीय कार्य अपने हाथ से संपन्न होने का आविर्भाव उनके चेहरे पर नजर आ रहा था। लेकिन राज्यपाल महोदय ने ४० दिन पहले एक गैरकानूनी सरकार को शपथ दिलाई और अब उसी गैरकानूनी सरकार के मंत्रियों को शपथ दिलाकर संविधान का अपमान किया है। शिंदे और उनके समर्थकों पर दलबदल कानून के कार्रवाई की तलवार लटक रही है। सर्वोच्च न्यायालय में विधायकों की अयोग्यता के मामले में सुनवाई चल रही है, इस दौरान इनमें से कुछ विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाना लोकतंत्र और संविधान की हत्या है। लेकिन ऐसे हत्यारों को वर्तमान में देशभर में खुला छोड़कर उनके जरिए राज्य चलाया जा रहा है।
असल में शिंदे-फडणवीस द्वारा मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार में इतना विलंब क्यों हुआ? अब इस स्थिति और संवैधानिक पेच के बीच इस मंडली ने शपथ ली, तो फिर यह शपथ इन्होंने पहले क्यों नहीं ली? श्री फडणवीस ने दो दिन पहले ही कहा था कि १५ अगस्त के पहले मंत्रिमंडल गठित हो जाएगा। १२ अगस्त को विधायकों की अयोग्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट का 'जजमेंट डे' है। अर्थात फैसला आएगा और उससे पहले यह शपथविधि संपन्न हो रही है। यानी सर्वोच्च न्यायालय का डर नहीं है। सब कुछ मन मुताबिक होगा, ऐसा फाजिल आत्मविश्वास झलक रहा है। यह किसके जोर पर? राधाकृष्ण विखे-पाटील, चंद्रकांत पाटील, सुधीर मुनगंटीवार, गिरीश महाजन, रवींद्र चव्हाण, विजय कुमार गावित, सुरेश खाडे, अतुल सावे, मंगल प्रभात लोढ़ा, इस मंडली ने भाजपा की ओर से शपथ ली। शिंदे गुट की तरफ से संदिपान भुमरे, संजय राठौड, दादा भुसे, गुलाब पाटील, तानाजी सावंत, उदय सामंत, शंभूराज देसाई, दीपक केसरकर के घोड़े गंगा में नहाए, लेकिन क्या गंगा में डुबकी लगाने के बाद उनके विश्वासघात का पाप धुल जाएगा? जिनके कंधों पर मंत्री पद का भार आ गया है, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है लेकिन उनकी यह खुशी क्षणिक साबित होगी, इसका हमें विश्वास है। विश्वासघात की छलांग लगाने के बाद भी उन्हें मंत्री पद नहीं मिला, उनका समाधान कैसे करेंगे? यहां क्या वहां क्या, वे असंतुष्ट ही रहेंगे। इनमें से कई लोग 'ईडी' के डर से चमड़ी बचाने के लिए बेईमान हो गए। उन्हें सिर सलामत रहे, इसी लेन-देन पर दिन निकालने होंगे।
हालांकि उन पर लगा गद्दारी का कलंक कभी धुला नहीं जाएगा, यह वे संज्ञान में लें। खुद मुख्यमंत्री शिंदे की क्या प्रतिष्ठा रह गई है? महीने भर में उन्हें दिल्ली के सात फेरे लगाने पड़े, तभी वे मंत्रिमंडल का विस्तार कर पाए। शिंदे दिल्ली में नीति आयोग की बैठक में शामिल होने गए। बैठक समाप्त होने के बाद 'टीम इंडिया' की तरह प्रधानमंत्री के साथ ग्रुप फोटो प्रकाशित हुआ। वह स्वाभिमानी महाराष्ट्र का सिर शर्म से झुका देने वाली है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ फोटो में हमारे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे तीसरी कतार में खड़े हैं। यह महाराष्ट्र का अपमान है। दिल्ली के दरबार में औरंगजेब बादशाह द्वारा छत्रपति शिवाजी महाराज को पांच हजारी दरबारियों की कतार में खड़ा करते ही छत्रपति का स्वाभिमान जाग उठा और वे तत्काल दरबार से बाहर निकल गए। शिवराय को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन दिल्ली के बादशाह के सामने उनका सिर नहीं झुका। यह इतिहास हम पीढ़ी दर पीढ़ी बताते आए हैं। उस इतिहास के संजोए गए अध्याय को आज के मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है। महाराष्ट्र की खुद की एक गरिमा है। बाकी सभी राज्य हैं। महाराष्ट्र में 'राष्ट्र' है और उस शिवराय के राष्ट्र को दिल्ली ने पिछली कतार में खड़ा करके शिंदे को उनकी औकात से अवगत करा दिया। ऐसे में इस मांडलिक राजा का मंत्रिमंडल सत्ता में हो या न हो, इससे राज्य को क्या फर्क पड़ेगा?
महाराष्ट्र को आधा-अधूरा मंत्रिमंडल मिला है, लेकिन उन्हें मंत्री पद नहीं मिला वे कब तक चुप रहेंगे, यही असली सवाल है! जलगांव में गुलाबराव पाटील विरुद्ध चिमण पाटील में 'राड़ा' होना ही है। सावंतवाड़ी में दीपक केसरकर की औकात राणे के पुत्र द्वारा दिखाए जाने के बाद केसरकर मांद में छिप गए थे, लेकिन शिंदे ने मांद से बाहर निकालकर केसरकर को मंत्री पद की शपथ दिलाई। अब सिंधुदुर्ग में राणे विरुद्ध केसरकर के पुराने झगड़े पर नया रंग चढ़ेगा। शिंदे-फडणवीस मंत्रिमंडल में दोनों तरफ के नौ-नौ मंत्रियों को शामिल किया गया। यह दोनों तरफ का 'नाक में दम' करनेवाला मंडल राज्य के हित के लिए असल में क्या करेगा? शिंदे गुट के जो लोग मंत्री हुए हैं, वे महाविकास आघाड़ी में भी मंत्री थे। उनमें से राठौड पर कई गंभीर आरोप भाजपा ने लगाए थे। भाजपा के आरोपों के कारण ही राठौड को मंत्रिमंडल से हटना पड़ा था। फडणवीस और उनके लोगों ने पुणे की एक महिला की आत्महत्या मामले को लेकर राठौड को इधर-उधर भागने को मजबूर कर दिया था। अब वही राठौड़ फडणवीस के पैर से पैर सटाकर बैठेंगे। भाजपा की 'वॉशिंग मशीन' में डालकर उन्हें स्वच्छ किया गया है। गिरीश महाजन के खिलाफ मारपीट, वसूली, घपला जैसे मामले सीबीआई के पास हैं। अर्थात घर की घर में ही जांच शुरू है। अब्दुल सत्तार के परिवार का नाम 'टीईटी' घोटाले में आया है। फिर भी शिंदे ने सत्तार को मंत्री बनाया। नहीं तो सत्तार शिंदे गुट का त्याग करने में आगे-पीछे नहीं देखते। विजय कुमार गावित, सुधीर मुनगंटीवार पर भी घोटाले के आरोप हैं। शिंदे का गुट ही अन्याय व पाप की नींव पर खड़ा है। भ्रष्टाचार, अनैतिकता की दलदल में खुशी से लोटकर हमारे समूह में आकर मंगलमय हो जाओ।
भाजपा की 'वॉशिंग मशीन' में डालकर स्वच्छ कर देंगे। ईडी वगैरह से डरने की जरूरत नहीं। 'ईडी' के चाहे जितने 'केसेस' हों हमारे पास आते ही चैन की नींद आएगी, इसकी गारंटी देंगे। गुणकारी औषधि का लाभ कैसा है, इसकी पुष्टि हर्षवर्धन पाटील जैसे पूरी तरह से ठीक हो चुके मरीज से कर लें, ऐसा कुल मिलाकर शिंदे-फडणवीस सरकार का दावा है। लिहाजा, महाराष्ट्र को तकरीबन चालीस दिनों बाद एक सरकार मिली है और उस सरकार से महाराष्ट्र को बहुत कुछ मिलेगा, ऐसी उम्मीद करना गलत है। असल में इस सरकार के चरित्र और छवि में ही घोटाला है। कीचक ने द्रौपदी का विनयभंग किया, जांघें ठोंककर बारंबार पाप की भाषा बोल रहा था। इसीलिए भीम ने कीचक की जांघ तोड़ दी। श्री फडणवीस की दोनों जांघों पर पापों का ही भार शिंदे गुट ने रखा है और यह पाप महाराष्ट्र के माथे मढ़ने के कार्य को मंत्रिमंडल विस्तार के रूप में आगे बढ़ाया है। यह महाराष्ट्र की बदनामी ही है। दिल्ली के दरबार में महाराष्ट्र पिछली कतार में चला ही गया है। विकास की प्रतियोगिता में तो कम-से-कम आगे रहे, यही ईश्वर के चरणों में प्रार्थना है। क्रांति दिन का मुहूर्त शिंदे-फडणवीस मंत्रिमंडल की शपथ विधि के लिए चुना गया। अब कुछ लोग बेईमानी और विश्वासघात को ही 'क्रांति' कहते होंगे तो शिंदे गुट के मंत्री अपने कार्यालय में लखोबा लोखंडे की तस्वीर लगाएं। महाराष्ट्र की जनता उन्हें माफ नहीं करेगी। उनके क्षणिक मंत्रीपद उन्हीं को लाभदायक साबित हों। मंत्रिमंडल का पालना हिला लेकिन पालने की डोर किसके पास है?