आत्महत्या के कगार पर किसान… कहां भरोगे यह पाप?

शिवसेना ने एक फिर अपने मुखपत्र सामना के जरिए सरकार पर हल्ला बोल किया है किसानों की आत्महत्या को सामने रखते हुए सामना में लिखा है है कि ‘सूखे’ मुआयना दौरे और खोखली घोषणाओं में मग्न राज्य की सरकार है। 

Update: 2022-08-22 04:48 GMT

महाराष्ट्र में फिलहाल बरसात के साथ-साथ सत्ताधारियों की घोषणाओं की बारिश भी रोज ही हो रही है। किसानों के नाम पर भी क्या वर्तमान सरकार ने कम घोषणाएं की? परंतु घोषणाओं की बारिश और उनको अमल में लाने के मामले में सूखा कुल मिलाकर ऐसी अवस्था है। इसलिए भारी बारिश से बर्बाद हुए किसान मदद के बगैर सूखे ही हैं तथा हताश होकर मौत को गले लगा रहे हैं। वर्धा जिले के सावंगी (मेघे) के पास स्थित पढे गांव में तो गणेश माडेकर नामक युवा किसान ने सीधे प्रवाहित बिजली का तार ही मुंह में पकड़कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। गणेश के वृद्ध माता-पिता, पत्नी और दो बच्चे अब वैâसे जिएंगे? ऐसी सब भयंकर अवस्था है। परंतु इससे भी ज्यादा भयंकर सिर्फ  'सूखे' मुआयना दौरे और खोखली घोषणाओं में मग्न राज्य की सरकार है। 



गणेश को सरकारी नुकसान भरपाई समय पर मिली होती तो शायद उन्होंने यह अप्रत्याशित कदम नहीं उठाया होता, परंतु ऐसा हुआ नहीं। इसलिए कई अतिवृष्टि से बाधित गरीब किसान मौत को गले लगा रहे हैं। गणेश माडेकर जैसे हालात के मारे युवा किसान पर मुंह में बिजली के तार पकड़कर आत्महत्या करने की नौबत क्यों आई? साढ़े छह एकड़ खेत में उसने उत्साह के साथ अरहर, सोयाबीन और कपास की बुआई की थी। फसल अच्छी अंकुरित भी हुई। लेकिन भदाड़ी नदी की बाढ़ में खेत की पूरी फसल तबाह हो गई। हमेशा की तरह मंत्री-संत्रियों के, सरकार और अधिकारियों के दौरे हुए, फसल के नुकसान का मुआयना आदि किया गया। परंतु आगे कुछ नहीं हुआ। सरकारी मदद की घोषणाओं के बुलबुले हवा में ही लुप्त हो गए और अतिवृष्टि ने फसल के साथ एक कमाऊ बेटा, पति और पिता को उसके परिवार से छीन लिया। 



महाराष्ट्र में आज ऐसे कई 'गणेश माडेकर' हताश और उदास होकर सरकारी मदद की ओर, सत्ताधारियों के आश्वासनों की पूर्तता की ओर आस लगाए बैठे हैं। लेकिन सरकार सिर्फ घोषणा करके हाथ बांधे बैठी है। एक तरफ अतिवृष्टि की मार तो दूसरी तरफ घोषणाबाज सरकार की 'गुप्त मार'। इसलिए भविष्य अंधकारमय है। इस उलझन में किसानों का दम घुट रहा है और वह मौत को अपनाकर अपनी रिहाई कर रहा है। शिंदे-फडणवीस सरकार ने बीते सप्ताह अतिवृष्टि से बाधित किसानों को प्रति हेक्टेयर १३ हजार ६०० रुपए के हिसाब से तीन हेक्टेयर तक मदद देने का निर्णय तो बड़े जोर-शोर से कर दिया। यह मदद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के आकलन से दोगुना है। लगभग १५ लाख हेक्टेयर क्षेत्र को इस निर्णय से लाभ होगा, ऐसा ढोल भी पीटा गया। प्रत्यक्ष रूप में दोगुना नुकसान भरपाई का सपना झांसा और किसानों की आंख में धूल झोंकने वाला सिद्ध हुआ है। अतिवृष्टी बाधित किसानों के दामन में सरकारी मदद का एक छदाम भी नहीं आया। 

मंत्री आए और गए, सरकारी अधिकारी आए और फसल के नुकसान का मुआयना करके गए। परंतु आगे कुछ भी नहीं हुआ। सभी सिर्फ  जुबानी जमा खर्च और कागजी घोड़े। इसलिए बर्बाद हुए किसानों का संयम टूटेगा नहीं तो क्या होगा? आत्महत्या इस पर उपाय और विकल्प नहीं है। किसान भाई इसे न अपनाएं, यह सब सत्य है। लेकिन सत्ताधारी सिर्फ  दौरों की धूल उड़ाते सूखी मदद की धूल झोंकते रहेंगे तो हताश और उदास किसान हिम्मत किसके दम पर करे? उस पर हर तरफ ही अतिवृष्टि है ऐसा नहीं है। कई जगहों पर बारिश कम हुई फिर भी बांध टूटने से फसल बह गई। कई जगहों पर बारिश के विराम न लेने से तैयार फसल बर्बाद हो गई। मुख्यमंत्री-उप मुख्यमंत्री से कृषि मंत्री तक ऐसी जगहों पर पंचनामा करें, एक भी प्रभावित किसान मदद से वंचित न रहे, ऐसे गुब्बारे हवा में छोड़े गए। लेकिन सब कहने के लिए भात और कहने के लिए ही कढ़ी साबित हुई। 

किसानों के नुकसान का पंचनामा होने के बावजूद प्रत्यक्ष आर्थिक मदद यदि किसानों के दामन में नहीं आती होगी तो वह जिए कैसे? परिवार को कैसे  जिलाए? हुए नुकसान को सहकर अगले मौसम के लिए दृढ़तापूर्वक खड़ा कैसे  रहे? हताश किसानों को आपके दौरे नहीं चाहिए, आर्थिक मदद की जरूरत है व कब देनेवाले हैं, इतना बताओ। बाकी आपका 'हवा बाण' अपने पास ही रखो। 'एनडीआरएफ' से ज्यादा मदद की डींग मारे न। फिर अब वह देते समय हाथ क्यों तंग है? प्रति हेक्टेयर ५० हजार से डेढ़ लाख तक की मदद की आवश्यकता होने के दौरान किसी तरह साढ़े तेरह हजार रुपए आपने घोषित किए, उस पर वह भी आप नहीं देते होंगे तो यह पाप है। इसलिए हताश हुए कई 'गणेश माडेकर' आज राज्य में आत्महत्या के छोर पर हैं। यह दूसरा पाप है। कहां भरोगे यह पाप? 



घोषणा जोरदार, सरकार कोमा में और किसान मृत्यु की चौखट पर ऐसी भयंकर अवस्था महाराष्ट्र की कभी भी नहीं हुई थी। दौरे नहीं चाहिए, घोषणा नहीं चाहिए, अधिकृत मदद तुरंत दें यह राज्य के अतिवृष्टि से प्रभावित किसानों एवं उनके परिवार का आक्रोश है। घोषणाबाजी में मग्न शासकों को यह सुनाई दे रहा है क्या, यही वास्तविक सवाल है।

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