लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह बढ़ने की खबर परेशान करने वाली है। चौंकाने वाली बात यह है कि सती-बाल विवाह की प्रथा को रोकने में अगुवाई कर महिलाओं के सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभाने वाले महाराष्ट्र जैसे राज्य में चौंकाने वाली घटना सामने आई है। इस तरह का मामला केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में है। जबकि हम कहते हैं कि दुनिया तरक्की कर रही है, ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि उल्टी गंगा क्यों बह रही है और कोई भी सामाजिक-राजनेता इस पर अपनी भूमिका क्यों नहीं स्पष्ट कर रहा है। महिलाएं आमतौर पर किसी भी मामले की शिकार होती हैं। नस्लीय और आर्थिक असमानता की सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं ही होती हैं।
लॉकडाउन में भी पहला झटका महिलाओं को ही लगा है। लॉकडाउन शुरू होते ही घरेलू हिंसा की खबरें सामने आने लगी हैं। इसके बाद सड़कों पर चेन-मंगलसूत्र की चोरी होने की खबरें आईं और मानव तस्करी और बाल विवाह की कुछ गंभीर खबरें सामने आईं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में करीब 3 करोड़ लड़कियां और महिलाएं इस घटना की शिकार हुई हैं। ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। सभ्य समाज के लिए करारा तमाचा है। ग्रामीण इलाकों में कुछ लोगों से बात करते हुए, मुझे एहसास हुआ कि लॉकडाउन के दौरान काम धंदा ठप्प होने से शादी के समय मेहमानों की संख्या पर प्रतिबंध है । शादी में ५० से अधिक लोगों को नहीं बुलाया जा सकता है, वे मानक के सभी दायित्वों से संरक्षित हैं । कई माता-पिता लॉकडाउन की वजह से शादी में कम खर्च होगा इसलिए वाल विवाह कर दिया। बाल विवाह के कई गंभीर परिणाम एक लड़की के लिए होते हैं। मातृ मृत्यु और बाल मृत्यु दर और स्वास्थ्य से जुड़े कई मामले सामने आते हैं। यह सब कई मानवीय और सामाजिक समस्याओं की ओर ले जाता है।
सोशल मीडिया पर उत्तरपत्रिका कुछ सालों से वायरल हो रही थी। इसमें आखिरी पेज पर लिखा था, ' सर कैसे भी हो मुझे पास कर दो, नहीं तो घर वाले मेरी कही शादी करा देंगे। मुझे अपनी बेटी ही समझो। मुझे आज भी उस लड़की का अस्पष्ट चेहरा दिखता है। बचपन में शादी मतलब लड़की के हर सपने को तबाह कर देती है। बचपन की शादी जो पति लड़की को पसंद नहीं रहता फिर भी उसे जिंदगी भर उसे ढोना पड़ता है। लड़की अपने सारे सपनों को एक तरफ रख देती है । यह हम सभी के लिए बड़ा भयावह है ।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब ८४ प्रतिशत महिलाओं की उनकी इच्छा के खिलाफ शादी होती हैं । लॉकडाउन की वजह से जबरन मजदूरी और यौन शोषण की संख्या में भी इजाफा हुआ है । यह सब हमारे आसपास ही हो रहा है और हम इसे अपनी आंखों से देख रहे हैं । हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। अगर इस तरह की घटनाएं होती हैं तो आवाज उठाएं। यह नए भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। अगर हमारे पास तनिक भी इंसानियत बची है तो हमें इस चुनौती को स्वीकार करना चाहिए । हमें इन बुरी प्रथाओं के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए । अगर आज आप चुप रहेंगे तो इंसान का इतिहास आपको माफ नहीं करेगा। बाल विवाह सामाजिक कुरीति है। इसको रोकने के लिए सभी को सम्मलित प्रयास करते हुए जन जागरूकता संबंधी कार्यक्रम चलाने होंगे और दोषियों पर कार्रवाई कर बाल विवाह पर अंकुश लागाया जा सकता है।
-बाल विवाह की बढ़ती घटनाओं पर रवींद्र आंबेकर का यह लेख