बात पुरानी है। पटना में अपने घर बैठे रामविलास पासवान लोगों से मिल रहे थे। उसी घर के दूसरे कमरे में बेटे चिराग लोजपा के कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग कर रहे थे। तब रामविलास ने बड़े गर्व से कहा- भई 'चिराग ने तो सब संभाल लिया है।' जब लोग बोले आपका बेटा शहरी दिखता है, जबकि आप जमीनी नेता दिखते हैं। तब मुस्कुराते हुए रामविलास ने कहा- 'वो दिल्ली में पढ़ा है न। जब चिराग का जन्म हुआ, तब पिता रामविलास लोकसभा के सदस्य थे। बचपन से ही घर पर राजनीतिक माहौल था। उनकी स्कूली पढ़ाई दिल्ली में हुई और झांसी की बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में बीटेक किया।
पढ़ाई के बाद न तो राजनीति में आए और न ही किसी टेक कंपनी में नौकरी करने गए। उन्होंने बॉलीवुड का रुख किया। साल 2011 में कंगना रनौत के साथ उनकी फिल्म आई थी, 'मिले न मिले हम'। ये फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई थी। फिल्म के प्रमोशन के दौरान जब उनसे पूछा गया कि राजनीति की बजाय उन्होंने बॉलीवुड को क्यों चुना? तो इस पर चिराग ने जवाब दिया, 'राजनीति एक ऐसी चीज है, जो मेरी रगों में बहती है। राजनीति से न मैं कभी दूर था, न हूं और न कभी रह सकता हूं। फिलहाल मैंने फिल्मों को अपना पेशा चुना है, क्योंकि मेरा बचपन से सपना था कि मैं अपने आप को बड़े पर्दे पर देखूं।' 28 अक्टूबर 2000 को रामविलास पासवान ने अपनी लोक जनशक्ति पार्टी बनाई।
चिराग पासवान बॉलीवुड में कामयाब नहीं हो सके, तो उन्होंने अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालने का फैसला लिया। 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त चिराग राजनीति में एक्टिव हुए। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जब नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गए थे, तो चिराग के कहने पर ही लोजपा एनडीए का हिस्सा बनी। उस चुनाव में चिराग जमुई से खड़े हुए और जीते और पिता के अचानक चले जाने पर 2020 बिहार विधानसभा का चुनाव पूरी तरह से चिराग के कंधे पर है। लोगों की निगाहें टिकी हैं कि पिता की तरह चिराग राजनीति में माहिर खिलाड़ी निकलते हैं या फिल्मों की तरह फ्लाप! चिराग सांसद हैं। लोजपा की पूरी बागडोर उनके कंधे पर है। बिहार चुनाव में खूब मेहनत कर रहे हैं।