शिवराय का अंश कैसे मिटाओगे? …खोकेवाले दफन होंगे!
शिवसेना उद्धव बाला साहेब ठाकरे ने अपने मुखपत्र सामना संपादकीय के जरिए शिंदे गुट पर हमला बोला है। सामना के जरिए उद्धव ठाकरे ने जमकर शिवसेना से बगावत करने वाले विधायकों और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर हमला बोला है। इन सब के लिए सामना में साजिश का ठीकरा फोडते हुए बीजेपी पर आरोप लगाया है। भारतीय जनता पार्टी ने शिवसेना के मामले में अपना घिनौना खेल खेला
कहा जाता है कि सत्य और हत्या छुपी नहीं रहती है, लेकिन शिंदे-फडणवीस युग में असत्य की भी पोल खुल रही है। चुनाव आयोग ने धनुष-बाण चिन्ह को फ्रीज करके शिवसेना नाम के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी। इस अन्याय के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र का मन धधक उठा है, इस बीच शिंदे गुट के प्रवक्ता और राज्य के शिक्षा मंत्री केसरकर ने चुनाव आयोग के फैसले को सत्य और न्याय की जीत बताया है। दुनिया में न्याय है, ऐसा केसरकर जैसे बजारियों को लगना स्वाभाविक ही है। क्योंकि यह इंसान कभी किसी का नहीं हो सका। कई पार्टियों में घूमकर ये महोदय शिवसेना में आए और मंत्री पद का गाजर दिखते ही मिंधे गुट में शामिल हो गए। इसलिए शिवसेना पर हुआ दिल्ली का हमला यानी महाराष्ट्र पर हमला है, यह स्वाभिमानी विचार उनके मन में आएगा भी नहीं। भारतीय जनता पार्टी और उनके मौजूदा सूत्रधार नामर्द हैं इसलिए उन्होंने सीधे लड़ने की बजाय शिवसेना का अस्तित्व दस्तावेजों से खत्म करने का घिनौना कार्य किया। उन्हें मुंबई पर कब्जा जमाना है। हमने कहा, 'मुंबई महाराष्ट्र की और महाराष्ट्र देश का है। मुंबई पर कब्जा जमाने की बजाय चीन द्वारा निगली गई लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश की जमीन पर कब्जा हासिल करो।' हमने कहा, 'मुंबई देश का पेट और तिजोरी भर ही रही है। मुंबई को लेकर क्या बैठे हो? पहले पाक अधिकृत कश्मीर को कब्जे में लेकर वीर सावरकर के अखंड हिंदुस्थान का सपना साकार करो। आप शिवसेना को पराजित नहीं कर सकते। जनता की विराट सेना हमारे साथ है।' लेकिन उनकी आमने-सामने लड़ने की हिम्मत हुई ही नहीं। उन्होंने मिंधे गुट के बृहन्नला और शिखंडी को आगे करके शिवसेना की पीठ में तीर घोंपा।
इससे महाराष्ट्र चिंतित है। इससे पहले छगन भुजबल, नारायण राणे जैसे नेता शिवसेना से बाहर निकल गए। राज ठाकरे ने भी अपना रास्ता अख्तियार कर लिया। उन्होंने शिवसेना की कार्यशैली और व्यक्तित्व को लेकर हम पर कड़े शब्दों में टिप्पणी की। लेकिन जिस शिवसेना का जन्म प्रबोधनकार ठाकरे के आशीर्वाद से हुआ, जिस प्रबोधनकार ने मराठी लोगों के संगठन को 'शिवसेना' ज्वलंत नाम दिया और जिस शिवसेना के लिए अपने सुपुत्र बाल केशव ठाकरे को महाराष्ट्र की सेवा के लिए अर्पित कर दिया, उस शिवसेना का अस्तित्व मिटाने का अधम और नीच कार्य जैसे एकनाथ शिंदे सुपारीबाज ने किया, वैसा उस मंडली ने नहीं किया। शिवसेना यानी सभी राजनीतिक पार्टियों में मराठी जनों की मां है। इस मां पर हाथ डालने का व्यभिचारी कृत्य जिसने किया, उनका महाराष्ट्र की 12 करोड़ जनता के श्राप से राजनीतिक विनाश हुए बिना नहीं रहेगा, ऐसा रोष महाराष्ट्र के घर-घर से व्यक्त किया जा रहा है। केंद्रीय संस्थाएं और एजेंसियां दिल्ली के सत्ताधारियों की गुलाम बन गई हैं। सामने से लड़ने की हिम्मत इनमें नहीं है। इसलिए वे चुनाव आयोग जैसी संस्था का उपयोग कर रहे हैं। शिवसेना का कहना सहज और कानून के अनुरूप था। अंधेरी विधानसभा सीट का उपचुनाव है। इस चुनाव में भाजपा का 'रोनेवाला' मिंधे गुट चुनाव नहीं लड़ेगा। लिहाजा, चुनाव चिह्न के बारे में इतनी जल्दबाजी में फैसला लेने की जरूरत नहीं है। अंधेरी उपचुनाव शिवसेना को धनुष-बाण चिह्न पर लड़ने दो, यह सरल मांग चुनाव आयोग ने अस्वीकार कर दी। लेकिन 'शिवसेना' नाम का भी उपयोग न करो, ऐसा प्रतिबंधित आदेश भी लाद दिया।
चुनाव आयोग के राजनीतिक बाप को लगता होगा, इस अड़ियल रवैये से शिवसेना को पराजित किया जा सकता है। शिवसेना थक जाएगी। छी, छी! शिवसेना कोई आपके खोकेवालों जैसा बिकाऊ संगठन नहीं है। स्वाभिमान के मजबूत स्तंभ पर वह 56 से बिना डगमगाए खड़ी है। कई तूफान और हमले झेलकर उसने अपनी गर्जना को बरकरार रखा है। शिवसेना को समाप्त करने के सपने देखने वालों की उपले सोनापुर में सजाकर शिवसेना ने कई अग्नि परीक्षाएं पार की हैं। शिवसेना एक चमत्कार है। ईश्वरीय अवतार का अंश है। भगवान शंकर द्वारा विष प्राशन करते हुए एक बूंद पृथ्वी पर गिरी। उस बूंद से शिवसेना की अग्नि प्रकट हुई। इसलिए सभी तरह के विष पचाकर शिवसेना मजबूती के साथ खड़ी है। जिसने शिवसेना और धनुष-बाण को फ्रीज करने की नीच हरकत की, उसका राजनीतिक अंत शिवसेना के तीर से ही होगा। ऐसे कई शिंदे व मिंधे आते-जाते रहते हैं। गद्दारों के लिए इतिहास में कभी स्थान नहीं होता। वीर गाथाएं तो मर्दों और स्वाभिमानियों की गाई जाती हैं। खोकेबाज मिंधे पर लोग थूकते हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने शिवसेना के मामले में अपना घिनौना खेल खेला। अब आगे क्या? सत्ता का गैर इस्तेमाल, धन का उपयोग करके तुमने जो किया है, वह आखिरी छोर है। उस किनारे पर आज शिवसेना है और उड़ान भरने के लिए पूरा आसमान खुला है। जैसे शिवसेना का पुनर्जन्म होता हम देख रहे हैं। 400 वर्ष पहले शिवराय का जन्म ईश्वरीय अंश था, ईश्वर का पुनर्जन्म था। उस जन्म से महाराष्ट्र के पहाड़, घाटी, नदियां आनंदित हुई। जुल्मी मुगलों के खिलाफ लड़ने का नया बल मिला। मराठा एकजुट हुआ। हिंदुत्व जाग उठा और भवानी तलवार मुगलों के खिलाफ टूट पड़ी। उस तलवार से महाराष्ट्र के दुश्मन और कई सुपारीबाज इसी जमीन में गा़ड़ दिए गए।
आज महाराष्ट्र फिर उसी मोड़ पर और उसी परिस्थिति में खड़ा है। इस परिस्थिति की शरण में नहीं जाएंगे, ऐसा महाराष्ट्र दिल्ली की ओर देखकर गरज रहा है। शिवसेना की आत्मा वही रहेगी, रंग-रूप भी वही रहेगा। वस्त्र बदलेगा, आत्मा कैसे बदलेगी? मिंधे गुट का मुखौटा यानी विचार नहीं है। मुखौटे के पीछे भ्रष्ट, बेईमान गैंडे की खाल है। महाराष्ट्र की जनता ने खोको की चिता जलाई तो गैंडे की खाल भी जल जाएगी। छी, छी! इन्हें जलाएं कैसे? ये तो अफजल खान, औरंगजेब के विचारों की औलाद। महाराष्ट्र के दुश्मनों को दफन करना चाहिए। उनकी कब्र पर केवल इतना ही लिखा जाए, 'यहां महाराष्ट्र के गद्दारों को स्वाभिमानी मराठी जनता ने हमेशा के लिए गाड़ दिया है!' उस कब्र पर आपके नाती-पोते भी थूकेंगे! ये राज्य श्री का है। शिवराय का है। शिवसेना शिवराय का अंश है। वह अंश तुम कैसे मिटाओगे?