लम्पी के चलते डेयरी किसानों को भारी चपत; गलतफहमी के चलते घटी ग्राहकों की संख्या
पशुओं में लम्पी वायरल रोग बढ़ रहा है और राज्य में बड़ी संख्या में गायों और भैंसों की है। इस वायरल बीमारी से संक्रमित होने के बाद लोगों ने दूध पीना बंद कर दिया है। इस बीमारी को लेकर कई नागरिकों में गलतफहमी फैल रही है। नतीजतन, कुछ लोगों ने दूध लेना और पीना बंद कर दिया है और इससे पाली सुधागड और अन्य जिलों के दूध व्यवसायी प्रभावित हुए हैं। जबकि इस लम्पी वायरस से सिर्फ देसी गाय ही प्रभावित होती है लेकिन दूध लेकिन उनके दूध पीने से कोई बीमारी नहीं होती है। क्या है पूरा मामला अपनी रिपोर्ट के जरिए जानकारी दे रहे है हमारे प्रतिनिधि धम्मशील सावंत...
धम्मशील सावंत, मैक्स महाराष्ट्र, सुधागड: लम्पी त्वचा पशुओं का एक वायरल संक्रामक रोग है। गांठ एक वायरल रोग है जो मवेशियों और भैंसों को प्रभावित करता है। इस बीमारी को लेकर कई नागरिकों में गलतफहमी फैल रही है। नतीजा कुछ लोगों ने दूध लेना और पीना बंद कर दिया है और इसका असर पाली सुधागड समेत अन्य जिलों के दूध कारोबारियों पर पड़ा है। दूध से गांठ नहीं फैलती है। पशुपालन विभाग ने इस बात की जानकारी दी है। इसको लेकर अभी भी लोग चिंतित और डरे हुए हैं। नतीजतन कुछ लोगों ने एहतियात के तौर पर दूध का सेवन बंद कर दिया है। कोरोना के चलते गांवों में दूध कारोबारियों की कमर टूट गई है. अब जहां एक बार फिर से यह धंधा पटरी पर लौट रहा था अब फिर से पशुओं में फैली लुम्पी वायरस की बीमारी के कारण फिर से कारोबार पर काले बादल छा गए हैं।
झाप सुधागढ़ के किसान सतीश बोनकर ने कहा कि लम्पी बीमारी को लेकर समाज में भ्रांतियां और अफवाहें हैं, जिससे हजारों पशुपालन संकट में हैं। लोग दूध लेने से मना कर रहे हैं, हमारी आजीविका का मुख्य स्रोत डेयरी व्यवसाय है। कोई दूध नहीं लेगा तो हम कैसे जीवन वहन करके रहेंगे? मेरे पास 3 गायें हैं, दस लीटर दूध सुबह-शाम आता है, हम बेच देते हैं और आठ हजार प्रति माह मिलता है, लेकिन आज यह उत्पादन ठप हो गया है, हम मुसीबत में हैं, लोगों से दूध खरीदने और पीने की उम्मीद करते है। लम्पी बीमारी ने आम जनता में दहशत पैदा कर दी है। लोगों को लगता है कि यह बीमारी दूध से भी फैलती है। इस डर से कई उपभोक्ताओं ने दूध निकालने वाली मशीन बंद कर दी है। इससे कारोबार पर विपरीत असर पड़ा है। इस संबंध में पशुपालन विभाग लोगों को जागरूक कर रहा है। लेकिन इस जागरूकता को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहिए, सुधागढ़ के कोंडागांव के एक दूध व्यवसायी राम तुपे ने कहा।
नि:संकोच दूध पिएं,
गांठ रोग दूध से होने की अफवाह है, इसलिए बिना किसी समझौता के दूध पिएं। लम्मी में जानवरों के शरीर पर गांठ जैसे जैसे कई गांठ निकल जाती है जिससे वो बीमार हो जाती है। संक्रमित जानवर का दूध पिया जा सकता है, हम दूध को 100 डिग्री सेल्सियस पर उबालते हैं। इसलिए इस तापमान पर कोई भी वायरस जीवित नहीं रह सकता है। लम्पी बीमारी के वायरस दूध की गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करती है। डॉ. सविता राठौर, सुधागड तालुका पशुधन विकास अधिकारी,
जिला प्रशासन तैयार
कलेक्टर डॉ. महेंद्र कल्याणकर ने जिले की विभिन्न सरकारी एजेंसियों को अधिनियम 2009 के तहत पशुओं में संक्रामक और संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के तहत प्राप्त शक्तियों का उपयोग अधिनियम के तहत रोकथाम, नियंत्रण और रोकथाम के लिए तत्काल कार्रवाई की पृष्ठभूमि में करने का निर्देश दिया है कि लम्पी रोग को दूर भगाएं।
पशुपालन विभाग द्वारा किए गए उपाय
लम्पी (एलएसडी) जैसे/प्रभावित पशुओं का समुचित उपचार आइसोलेशन, सैंपल कलेक्ट कर तत्काल लेबोरेटरी भेजना, सैंपल पॉजिटिव आने पर 5 किमी के अंदर बीमार पशुओं की रोजाना रिपोर्ट, इलाज, गांव में टीकाकरण व अन्य कार्यान्वयन किए जाने जा रहे हैं। जिले के कर्जत तालुका में 8 लम्पी संक्रमित जानवर पाए गए हैं। उन्हें टीका लगाया गया है और अलग किया गया है। जिले में पांच प्रभावित क्षेत्र हैं। लम्पी रोग देशी गायों में अधिक पाया जाता है। संकरित गायों में नहीं होता है। अभी तक दूध पर कोई असर नहीं पड़ा है। जिले में कुल पशुओं की संख्या 2 लाख 39 है। इनमें गायों की संख्या डेढ़ लाख और शेष 89 हजार (भैंस) जानवर हैं। जिला पशुपालन अधिकारी डॉ. शामराव कदम ने दिया। जिले में 15 तालुकों में संगठित, असंगठित पंजीकृत और अपंजीकृत, खुदरा विक्रेता लगभग 20 से 25 हजार दूध व्यापारी हैं। संभावना है कि लम्पी की गलतफहमी के चलते ग्राहकों द्वारा दूध बंद करने से करीब 10 से 15 फीसदी व्यापारी प्रभावित हों।