कब जागेगी सरकार यवतमाल में एक सप्ताह में 5 किसानों की आत्महत्या

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यवतमाल में जिस किसान के साथ 2014 में 'चाय पे चर्चा' की थी, उसने भी आत्महत्या कर ली थी। अब तक महाराष्ट्र में अब तक 15,000 से कहीं ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यवतमाल में किसानों की आत्महत्या का दौर जारी है राज्य और केंद्र सरकार दोनों मौन

Update: 2022-09-01 05:01 GMT

यवतमाल: जिले के मारेगांव तहसील में पिछले पांच दिनों में पांच किसानों की आत्महत्या करने से एक बार फिर देखा जा सकता है कि किसानों की ओर सरकार को कोई लक्ष्य नहीं है। कर्ज के बोझ तले और बर्बाद होती फसलों और फिर कर्ज के बोझ तले ऊपर से कोई सरकारी मुआवजे का समय पर न मिलना। मारेगांव में जिसमें दो मंगलवार को दो किसानों की आत्महत्या शामिल हैं।अगस्त महीने में तहसील क्षेत्रों में 6 किसान आत्महत्या  की आत्महत्या से यवतमाल थर्रा उठा है लेकिन सरकार मौन है

स्थानीय किसानों का कहना है कि रामेश्वर, म्हैस दोडका, नरसाला, डंडगांव और शिवनी (धोबे) गांवों में अत्यधिक बारिश के कारण कर्ज में डूबे किसानों ने खुदकुशी की। मंगलवार को हुई दो आत्महत्याओं में एक गांव रामेश्वर निवासी युवा किसान सचिन सुभाष बोधेकर (28) था। वह अविवाहित था, और अपने 2 एकड़ के खेत में अपने पिता की मदद करता था। जब घर में कोई नहीं था तो सचिन ने मंगलवार की शाम कीटनाशक खा लिया। उसे मारेगांव जन स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।

उसी दिन की शुरुआत में एक और किसान हरिदास टोनपे ने सुबह आत्महत्या कर ली। एक छोटे से भूमि धारक किसान टोनपे (48) ने अपने घर में लगभग 10.30 बजे कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली। उनके पास 5 एकड़ वर्षा सिंचित बंजर कृषि भूमि थी। उन पर राष्ट्रीयकृत बैंकों और निजी साहूकारों का फसली ऋण बकाया था। लगातार बारिश से कपास और अरहर की उसकी फसल बर्बाद होने से वह निराश था। वह आगे कर्ज और पारिवारिक देनदारियों को लेकर चिंतित था।

मंगलवार को जब उसकी पत्नी खेत पर गई थी और बच्चे स्कूल में थे, तब हरिदास ने कीटनाशक खा लिया जब वह घर में अकेला था। जहर की मात्रा इतनी अधिक थी कि पत्नी के खेत से लौटने से पहले ही उसने अंतिम सांस ली थी। उनके परिवार में मां, पत्नी, एक बेटी और एक बेटा है। मारेगांव तहसील के विभिन्न गांवों में पिछले पांच दिनों में आत्महत्या करने वाले अन्य किसान तोताराम चिंचोलकर, गजानन मुस्ले और अविनाश मेश का समावेश हैं।


इस आत्महत्या ने मोदी सरकार को लाया था कटघरे में लेकिन सरकार मौन रही

महाराष्ट्र में बरसात और कहीं पर बरसात न होने के कारण किसानों को काफ तकलीफों का सामना करना पडा है विपक्ष ने 5 दिवसीय विधानसभा सत्र के दौरान विधानसभा की सीढिय़ों पर एक ही नारा लगाया कि "ओला दुष्काल जाहिर करा" बाढ प्रभावित और सुखाग्रस्त जिलों को घोषित करने की मांग की। लेकिन सरकार ने एक न सुनी। लोगों को अब तक मदद के नाम पर गाजर दिया गया इस बात को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष की झडप भी सदन के बाहर दिखी अब किसानों की आत्महत्या को लेकर एक बार आवाज उठना लाजमी है।

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