इस देश के समस्त विपक्षी दलों और क्षेत्रीय दलों को समाप्त किया जा रहा है…और मित्र पक्षों को भी… सामना साक्षात्कार के दौरान संजय राउत के प्रशेन उध्दव ठाकरे के जवाब
हां, मित्र पक्षों को भी… यहां आपको कोई षड्यंत्र दिखाई देता है क्या? या बदले की राजनीति…
मुझे लगता है यह अपना-अपना सवाल है, जो बीच में मुख्य न्यायाधीश ने कहा था… मैंने पिछले दिनों पढ़ा था, कि अपने देश के विरोधी दलों को अपना शत्रु मत समझिए। विरोधी दलों को भी जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और सत्ताधारी दल को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए… मैंने मुख्यमंत्री के तौर पर ढाई वर्षों में जो कुछ भी अनुभव किया, मैंने विपक्षी दलों से भी कई बार आवाहन किया… आह्वान नहीं आवाहन किया कि सरकार के रूप में, अगर हम कहीं कमजोर पड़ रहे हों, हमसे कोई चूक हो रही हो तो आप हमारी नजरों में लाओ। यह काम विपक्ष का है। कारण वे भी जनप्रतिनिधि ही हैं, इसलिए मजबूत लोकतंत्र के लिए…
और महाराष्ट्र की परंपरा भी है वो…
विरोधी पक्ष भी उतना ही सुसंस्कृत होना चाहिए, संवेदनशील चाहिए और उतना ही, बल्कि उससे भी अधिक सत्ताधारी पक्ष संवेदनशील और सुसंस्कृत होना चाहिए। आज संवेदनशीलता और सुसंस्कृत परंपरा रसातल में समाती जा रही है।
किसलिए?
पीढ़ियां बदल रही हैं और उस पर सत्ता लोलुपता… अब क्या हो रहा है, फास्ट फूड का जमाना आ गया है, आपने फोन किया कि दस मिनट में, पंद्रह मिनट में या बीस मिनट में पार्सल आ ही जाना चाहिए, वैसे ही मैं पार्टी में आया कि कुछ ही दिनों में मुझे कुछ तो मिलना ही चाहिए। नहीं तो मेरे पास दूसरा तैयार ही है।
इस देश में विपक्ष रहे ही नहीं। फिर राज्य में शिवसेना जैसी क्षेत्रीय पार्टी हो या राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस जैसी पार्टी, उन्हें खत्म करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद…
इससे क्या हासिल होना है?
मतलब केंद्रीय जांच एजेंसियां… ईडी हो, सीबीआई हो…
मैं वही कह रहा हूं, इससे क्या हासिल होगा?
उनका जो दुरुपयोग चल रहा है…
आखिर जनता ही सार्वभौम है और आपने देखा होगा कि जनता के मन के विपरीत कोई निर्णय गया तो जनता थमती नहीं है। वह सड़कों पर उतरती है।