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हिंदी तो हिंदुस्तान को जोड़ती है फिर विवाद कैसा

हिंदी तो हिंदुस्तान को जोड़ती है फिर विवाद कैसा
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तमिलनाडु में हिंदी को लेकर बेवजह बखेड़ा किया जा रहा है. द्रमुक सांसद कनिमोझी ने आयुष मंत्रालय के सचिव द्वारा गैर हिंदी भाषी योग शिक्षकों और चिकित्सकों को एक वेबिनार से बाहर निकलने के कथित मामले पर सवाल उठाये हैं. यह सही है कि अगर यह घटना हुई है, तो इसे सही नहीं ठहराया जा सकता है। आयुष मंत्री श्रीपद नाइक को पत्र में लिखा है कि हिंदी को थोपा जा रहा है। हालांकि, आयुष सचिव कोटेचा ने इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए बेबुनियाद बताया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि ऐसा कोई विवाद हुआ ही नहीं है। आयुष मंत्रालय की ओर से किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया। दरअसल बैठक में कुछ लोग बेवजह का हंगामा खड़ा कर रहे थे, जिन्हें म्यूट कर दिया। बाद में इस मुद्दे को भाषाई विवाद का रंग दे दिया गया।

पिछले कुछ दिनों से कनिमोझी लगातार हिंदी का मसला उछाल रही हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें हिंदी नहीं आती. उन्होंने कभी स्कूल में इसका अध्ययन नहीं किया. वहां केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी. पिछले दिनों उपजे भाषाई विवाद में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम और कुमारस्वामी भी कूद पड़े थे। हिंदी को लेकर तमिलनाडु में राजनीति शुरू है. अब द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन ने पूछा कि क्या भारतीय होने के लिए हिंदी जानना ही एकमात्र मापदंड है? यह इंडिया है या हिंदिया है? वहीं भाजपा ने कनिमोझी पर चुनावी फायदे के लिए भाषाई मसला उछालने का आरोप लगाया. भाजपा महासचिव बीएल संतोष ने ट्वीट कर कहा कि विधानसभा चुनाव अभी आठ माह दूर है, लेकिन प्रचार शुरू हो गया है.

तमिलनाडु में हिंदी विरोध की राजनीति काफी पहले से होती आयी है। विदित हो कि तमिल राजनीति में हिंदी का विरोध 1938 के दौरान से ही शुरू गया था और आजादी के बाद भी जारी रहा. सी राजगोपालाचारी ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया, तब भी विरोध हुआ तमिलनाडु के पहले सीएम अन्नादुरई ने तो हिंदी में लिखे साइनबोर्ड हटाने को लेकर एक आंदोलन ही छेड़ दिया था. तमिलनाडु के कई बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत एम करुणानिधि भी शामिल थे.

हाल में घोषित नयी शिक्षा नीति के प्रारूप में महत्वपूर्ण बदलाव है कि अब पाठ्यक्रम में मातृभाषा को प्राथमिकता दी जायेगी, जिससे कि बच्चे क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई कर सकें. बच्चों द्वारा सीखी जानेवाली तीन भाषाएं, राज्यों, क्षेत्रों और छात्रों की पसंद की होंगी. इसके लिए तीन में से कम-से-कम दो भाषाएं भारतीय मूल की होनी चाहिए, लेकिन इसको लेकर भी विरोध शुरू हो गया है, बाद में शिक्षा मंत्री पोखरियाल को सफाई देनी पड़ी।
आइटी की पढ़ाई और नौकरी के लिए उत्तर भारत के राज्यों के बच्चों का और मजदूरों का पलायन दक्षिण भारत की तरफ अब बढ़ रहा है। हम सब जानते हैं कि तमिलनाडु का हिंदी से बैर पुराना है, पर हिंदी पट्टी के क्षेत्रों में भी हम कहां हिंदी पर ध्यान दे रहे हैं? हम हर साल 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाते हैं, पर यह भी कटु सत्य है कि हमारे कथित हिंदी प्रेमियों और सरकारी हिंदी ने हिंदी को भारी नुकसान पहुंचाया है. यह सही है कि भारत अनेक भाषाओं का देश है और सभी का अपना महत्व है, पर पूरे देश में एक भाषा का होना बेहद जरूरी है.

भारत को एकता की डोर में बांधने का काम कोई भाषा कर सकती है, तो वह हिंदी है, लेकिन राजनीतिक कारणों से नेताओं को यह बिल्कुल मंजूर नहीं है। आज के दौर में पूरे देश में एक भाषा का होना बेहद जरूरी है. भारत को एकता की डोर में बांधने का काम हिंदी ही कर सकती है। आखिर दूसरा कोई पर्याय भी तो नहीं है। हिंदी संपर्क भाषा भी है चूंकि एक दूसरे राज्यों में जाने पर कौन सी भाषा में संवाद करें, चूंकि इंग्लिश सबको आती नहीं, हिंदी ही एक जरिया है, देश में हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाती है।

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Updated : 24 Aug 2020 3:46 PM GMT
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