CBI
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मुंबई। मायानगरी में सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के बाद सीबीआई चर्चा में है। जानते है किन परिस्थितियों सीबीआई जांच करती है और क्यों हर केस सीबीआई को नहीं सौंपा जाता है। कौन तय करता है कि किन मामलों में जांच सीबीआई करेगी। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान युद्ध से संबंधित खरीदी में रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए ब्रिटिश भारत के युद्ध विभाग में 1941 में एक विशेष पुलिस संगठन (एसपीई) का गठन किया गया था। 1963 में इसका नाम एसपीई से बदलकर सीबीआई यानी सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन रख दिया गया। इसके संस्थापक निदेशक डीपी कोहली थे।
उन्होंने 1963 से 1968 तक अपनी सेवाएं दी थी। सरकार में रक्षा से संबंधित गंभीर अपराधों, उच्च पदों पर भ्रष्टाचार, गंभीर धोखाधड़ी, गबन और सामाजिक अपराध, विशेषकर जमाखोरी, काला-बाजारी और मुनाफाखोरी जैसे मामलों की जांच के लिए भारत सरकार ने सीबीआई की स्थापना की थी। सीबीआई में दो शाखाएं होती हैं। एक शाखा भ्रष्टाचार निरोधी डिविजन और दूसरी स्पेशल क्राइम डिविजन। सीबीआई निदेशक की नियुक्ति एक कमिटी करती है। कमिटी में प्रधापनमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या उनके द्वारा सिफारिश किया गया सुप्रीम कोर्ट का कोई जज शामिल होते हैं।
सीबीआई की जांच से जुड़ी सुनवाई विशेष सीबीआई अदालत में ही होती है। पहले सीबीआई सिर्फ घूसखोरी और भ्रष्टाचार की जांच तक सीमित थी, लेकिन 1965 से हत्या, किडनैपिंग, आतंकवाद, वित्तीय अपराध आदि की जांच भी सीबीआई के दायरे में आ गई। सीबीआई इन तीन स्थितियों में कोई प्रकरण अपने हिस्से में ले सकती है। पहला है अगर राज्य सरकार खुद केंद्र से सिफारिश करे, दूसरा राज्य सरकार सहमति दे, तीसरा सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट सीबीआई जांच का आदेश दें। सीबीआई सिर्फ उन अपराधों की जांच करता है जो केंद्र सरकार सरकार द्वारा अधिसूचित है। सीबीआई को जांच की अनुमति तभी दी जाती है, जब कुछ खास स्थितियां पैदा हो जाए और लंबे समय से स्थानीय पुलिस से कोई केस सॉल्व न हो या पुलिस की जांच पर सवालिया निशान हो।