एएसआई ने परियोजना मौसम – जलधिपुरायात्रा : हिंद महासागर रिम देशों के बहु-सांस्कृतिक संबंधों की खोज पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया
इनमें मौसम विज्ञानी, पुरातत्वविद्, इतिहासकार और जलवायु परिवर्तन, पानी के भीतर की खोज और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात विशेषज्ञ शामिल थे।
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स्पेशल डेस्क, मैक्स महाराष्ट्र, नई दिल्ली: मानसूनी हवाओं और अन्य जलवायु कारकों तथा जिस प्रकार से इतिहास के विभिन्न अवधियों में इन प्राकृतिक तत्वों पर प्रभाव पड़ा, उसे समझने के प्रयास में हिंद महासागर क्षेत्र में विभिन्न देशों के बीच बातचीत की परियोजना 'प्रोजेक्ट मौसम' भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा 2014 में दोहा, कतर में आयोजित यूनेस्को की 38वीं विश्व विरासत समिति की बैठक में आरंभ की गई थी। वर्तमान में, परियोजना का संचालन एएसआई द्वारा किया जा रहा है। भविष्य में अनुसंधान को बढ़ावा देने और इस विषय के बारे में हमारी समझ को व्यापक बनाने के उद्देश्य से, एएसआई ने 7 और 8 अक्टूबर, 2022 को नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। इस "जलधिपुरायात्रा: हिंद महासागर रिम देशों के बीच बहु-सांस्कृतिक संबंधों की खोज'' सम्मेलन में समुद्री आदान-प्रदान और परस्पर संवाद के कई पहलुओं को शामिल किया गया।
सम्मेलन का उद्घाटन संस्कृति और संसदीय मामले राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और संस्कृति तथा विदेश राज्य मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी द्वारा किया गया। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री गोविंद मोहन और हिंद महासागर के कई क्षेत्रीय देशों के राजदूत, जो वर्तमान में दिल्ली में तैनात हैं, ने सम्मेलन में भाग लिया।
Delighted to chair an Interactive Session with H.E. Ambassadors on Day-2 of National Conference on Project Mausam-'Jaladhipurayatra', which explores the cross-cultural linkages along the Indian Ocean Rim Countries.
— Meenakashi Lekhi (@M_Lekhi) October 8, 2022
Discussed the ancient cultural linkages shared by our countries. pic.twitter.com/TLWwnlLwxS
एएसआई के अपर महानिदेशक (विश्व धरोहर और संरक्षण) जान्हविज शर्मा ने औपचारिक रूप से गणमान्य व्यक्तियों और अतिथियों का स्वागत किया। गोविंद मोहन की रोचक बातचीत भारत के आर्थिक इतिहास के कई अल्पज्ञात पहलुओं से संबंधित थी। श्रोताओं को संबोधित करते हुए श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने अन्य देशों के साथ भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों के कई पहलुओं पर निष्पक्ष शोध की आवश्यकता पर जोर दिया।अर्जुन राम मेघवाल ने अपने संबोधन में अन्य देशों के साथ भारत के संपर्कों से संबंधित कई रोचक ऐतिहासिक प्रसंग साझा किए। इस अवसर पर भारत की समुद्री विरासत की संक्षिप्त रूपरेखा और भारत की विश्व धरोहर संपत्तियों की एक विषय सूची के साथ मौसम परियोजना के उद्देश्यों और दायरे पर एक विवरणिका जारी की गई।
सम्मेलन में एक पूर्ण सत्र शामिल था जिसके बाद छह शैक्षणिक सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें से प्रत्येक भारत के सामुद्रिक संवाद के एक विशेष पहलू से संबंधित थे। एक सत्र विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्न देशों में स्थित ऐतिहासिक स्थलों और संरचनाओं की पहचान के विशेष संदर्भ के साथ विश्व धरोहर संपत्तियों से संबंधित मुद्दों पर आधारित था जिसमें अंतर्देशीय संबंधों का उदाहरण दिया गया और इस प्रकार यूनेस्को की विश्व विरासत प्रमाणन के लिए अंतरराष्ट्रीय नामांकन के लिए अर्हता प्राप्त की गई। इसके बाद एक अलग से सत्र हुआ जिसमें विभिन्न हिंद महासागर क्षेत्रीय देशों के प्रतिनिधियों और राजदूतों ने क्षेत्र के अंतर्देशीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं तथा विश्व धरोहर दर्जा के लिए क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थलों के अंतरराष्ट्रीय नामांकन पर चर्चा की।
दूसरे दिन हिंद महासागर रिम देशों के प्रतिष्ठित राजदूतों के साथ एक संवाद सत्र का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता संस्कृति और विदेश राज्य मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने की जिसमें राजदूतों के साथ विशेष रूप से वस्त्र, मसाले और मसालेदार व्यंजन, वास्तुकला और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के अन्य पहलुओं से संबंधित अंतर्देशीय लिंक से जुड़े परियोजना मौसम के मुद्दों पर चर्चा हुई। सम्मेलन के अकादमिक सत्रों में भारत के विभिन्न हिस्सों के बीस से अधिक विद्वानों ने भाग लिया। इनमें मौसम विज्ञानी, पुरातत्वविद्, इतिहासकार और जलवायु परिवर्तन, पानी के भीतर की खोज और अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात विशेषज्ञ शामिल थे।