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Media की आवाज़ दबा रही है, सरकार ! | Vishwas Utagi | Max Hindi

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हाल ही में प्रस्तुत किए गए जन सुरक्षा विधेयक को लेकर पत्रकारों और मीडिया संस्थानों में विरोध की लहर तेज हो गई है। पत्रकारों का कहना है कि इस विधेयक के प्रावधानों से मीडिया की स्वतंत्रता को भारी नुकसान हो सकता है। वे इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर एक गंभीर हमला मानते हैं। यह विधेयक लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि यह मीडिया के कार्यों को सीमित करने और नियंत्रित करने की कोशिश कर सकता है। आइए जानें क्यों पत्रकार इस विधेयक के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं।

मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला

जन सुरक्षा विधेयक में कुछ ऐसे प्रावधान हैं जिनसे मीडिया की स्वतंत्रता को खतरा उत्पन्न हो सकता है। पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्र रूप से सरकार, संस्थाओं और समाज के विभिन्न पहलुओं पर रिपोर्ट करना है। लेकिन यदि इस विधेयक के प्रावधानों को लागू किया जाता है, तो पत्रकारों को डर हो सकता है कि वे स्वतंत्र रूप से अपनी रिपोर्टिंग नहीं कर पाएंगे। इसके चलते सरकारी नीतियों और फैसलों पर सवाल उठाने का अधिकार भी कम हो सकता है, जिससे लोकतंत्र में पारदर्शिता की कमी हो जाएगी।

आलोचना और विरोध को दबाना

इस विधेयक में ऐसे प्रावधान हो सकते हैं, जो पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के खिलाफ कड़ी सजा और जुर्माने का प्रावधान रख सकते हैं, अगर वे सरकार की आलोचना करते हैं या उसके फैसलों पर सवाल उठाते हैं। इस तरह की सजा पत्रकारिता की स्वतंत्रता को चुप कराने के लिए एक रणनीति हो सकती है। यदि पत्रकारों को डराया जाएगा तो वे सरकार की गलत नीतियों को उजागर करने से पीछे हट सकते हैं। यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है, क्योंकि आलोचना करना और सार्वजनिक बहस करना लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का हिस्सा है।

सेंसरशिप और नियंत्रण

एक और गंभीर चिंता यह है कि जन सुरक्षा विधेयक मीडिया पर सेंसरशिप लागू कर सकता है। इससे मीडिया पर सरकार का सीधा नियंत्रण बढ़ सकता है, जिससे स्वतंत्र पत्रकारिता के अधिकार का उल्लंघन होगा। पत्रकारिता की स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है कि सभी पक्षों की आवाज़ सुनी जाए और किसी एक पक्ष की मनमानी न हो। अगर मीडिया पर सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा, तो यह सूचना की स्वतंत्रता को बाधित करेगा और जनता तक सही जानकारी पहुंचने में रुकावट उत्पन्न करेगा।

लोकतंत्र में मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। यह ना केवल सरकारी नीतियों और निर्णयों की समीक्षा करता है, बल्कि समाज के विभिन्न मुद्दों को उजागर करने का कार्य भी करता है। यदि मीडिया को डर और दबाव में काम करना पड़े, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है। प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने से लोकतंत्र में लोगों का विश्वास कमजोर हो सकता है, और इससे चुनावी और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्वतंत्र विचार-मंथन की प्रक्रिया रुक सकती है।

Updated : 31 March 2025 4:29 PM IST
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