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14 सितंबर>हिंदी दिवस की ऐसी है कहानी...

14 सितंबर>हिंदी दिवस की ऐसी है कहानी...
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हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था, विशेषकर हिंदी भाषी प्रदेशों में तो हिंदी दिवस उत्साह के साथ मनाया जाता है। हिंदी दिवस पर हिंदी के महत्व, हिंदी के इतिहास आदि के बारे में ही सुना है मगर 14 सितंबर को ही हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की अनुशंसा पर देश में हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत हुई। राष्ट्रभाषा हिंदी को न केवल देश के हर क्षेत्र में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रसारित करना है।

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने के लिए इसलिए चुना क्योंकि इसी दिन ख्यात साहित्यकार व्यौहार राजेंद्र सिंह का भी जन्मदिन है। हिंदी के इस महान साहित्यकार व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कड़ी मेहनत की। उनके संघर्ष और मेहनत की वजह से हिंदी राष्ट्रभाषा बन सकी। व्यौहार राजेन्द्र सिंह का जन्म 14 सितंबर, 1900 को मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुआ था। संविधान सभा ने उनके अथक प्रयास पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए 14 सितंबर, 1949 को सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि हिंदी ही देश की राष्ट्रभाषा होगी। इस दिन व्यौहार राजेन्द्र सिंह का 50 वां जन्मदिन भी था।

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास की भी अहम भूमिका रही है। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना 1936 में हुई थी और इसका मुख्य केंद्र महाराष्ट्र के वर्धा में था। इस समिति के प्रमुख डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गाँधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, आचार्य नरेन्द्र देव आदि थे। समिति के गठन के चार वर्ष बाद राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने सरकार से 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का अनुरोध किया। इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाने लगा है।

Updated : 12 Sep 2020 2:23 PM GMT
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