गैंगरेप की शिकार फूलन देवी ने मारी थी 22 लोगों को गोली, रोंगटे खड़ी कर देगी ये कहानी
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10 august 1963, Phoolan Devi Birthday special
उत्तर प्रदेश के जालौन क्षेत्र के पुरवा में 10 अगस्त 1963 को जन्मी फूलन बचपन से ही खूंखार थी। जमीन विवाद में अपने चाचा से ही भिड़ गई थी। कानपुर के पास स्थित इस गांव में फूलन के परिवार को मल्लाह होने के चलते ऊंची जातियों के लोग हेय दृष्टि से देखते थे। इनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया जाता था। फूलन के पिता की सारी जमीन उसके भाई से झगड़े में छिन गई थी। फूलन के पिता जो कुछ भी कमाते वह जमीन के झगड़े के चलते वकीलों की फीस में चला जाता। घरवालों ने करीब 11 साल की उम्र में ही उसकी शादी कर दी। करीब 38 साल बड़े पति ने कई बार उसका रेप किया। कई अत्याचारों का शिकार फूलन डाकुओं की गैंग में शामिल हो गई, मगर एक घटना ने उसकी जिंदगी में पूरी तरह से सैलाब ला दिया।
तकरीबन 20 दिनों तक फूलन के साथ ठाकुरों की गैंग ने बेहमई में रेप किया। बदले की आग में उसने 22 ठाकुरों को कतार में खड़ाकर गोलियों से छलनी कर दिया। फूलनदेवी से दो डाकुओं ने प्यार किया। इन दो डाकुओं का नाम था सरदारबाबू गुज्जर और विक्रम मल्लाह। जब विक्रम मल्लाह को पता चला कि बाबू गुज्जर फूलन पर फिदा है तो विक्रम ने बदूंक उठाई और बाबू गुज्जर को गोली मार दी। फिर फूलन विक्रम के साथ रहने लगी। जब फूलनदेवी ने आत्म सपर्मण किया तो कई नेता और फिल्म मेकर्स जेल में उससे मिलने आते थे। कोई किताब लिखना चाहता था तो कोई उसके ऊपर फिल्म बनाना चाहता था। ग्वालियर जेल में सजा काटने के दौरान फूलन के साथ मलखान सिंह जैसे कई लोग भी सज़ा काट रहे थे, मगर सबसे ज़्यादा लोग फूलन से ही मिलने आते थे। 1996 में शेखर कपूर ने फूलनदेवी पर बैंडिट क्वीन नाम से फिल्म बनाई थी।
11 साल में शादी 15 में सामूहिक बलात्कार
फिल्म में फूलन के किरदार में उन्होंने सीमा बिस्वास को लिया, बोल्ड सीन, गाली गलौज और न्यूड सीन की वजह से यह फिल्म काफी विवादित रही। सेंसर बोर्ड ने कई कट के बाद इस फिल्म को रिलीज करने की अनुमति दी थी। ऐसे में सीमा बिस्वास के लिए काम करना भी कम मुश्किल नहीं रहा। न्यूड सीन के लिए बॉडी डबल का सहारा लिया गया। कुछ सीन इतने ज्यादा न्यूड थे कि शॉट के दौरान डायरेक्टर के अलावा किसी को आने की अनुमति नहीं थी। ये सीन करने के बाद सीमा बिस्वास रात-रातभर रोती थीं। सेट पर सभी लोग फूलनदेवी की यह कहानी सुनकर फूट-फूट कर रोने भी लगते थे। कहा जाता था कि फूलन देवी का निशाना बड़ा अचूक था और उससे भी ज़्यादा कठोर था उनका दिल। ख़ासकर ठाकुरों से उनकी दुश्मनी थी इसलिए उन्हें अपनी जान का ख़तरा हमेशा महसूस होता था। चंबल के बीहड़ों में पुलिस और ठाकुरों से बचते-बचते शायद वह थक गईं थीं इसलिए उन्होंने हथियार डालने का मन बना लिया। लेकिन आत्मसमर्पण का भी रास्ता इतना आसान नहीं था।
फूलन देवी को शक था कि यूपी पुलिस उन्हें समर्पण के बाद किसी ना किसी तरीक़े से मार देगी इसलिए उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के सामने हथियार डालने के लिए सौदेबाज़ी की। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाले और उस समय उनकी एक झलक पाने के लिए हज़ारों लोगों की भीड़ जमा थी। 1994 में जेल से रिहा होने के बाद वे 1996 में सांसद चुनी गईं। वह दो बार लोकसभा के लिए चुनी गईं। लेकिन 2001 में केवल 38 साल की उम्र में दिल्ली में उनके घर के सामने फूलन देवी की हत्या कर दी गई थी। शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्या के बाद दावा किया था 1981 में मारे गए सवर्णों की हत्या का बदला लिया है।