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ऑनलाइन पढ़ाई में दम नहीं

ऑनलाइन पढ़ाई में दम नहीं
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भले ही नयी शिक्षा नीति के प्रारूप में विभिन्न माध्यमों से ऑनलाइन स्कूल (online school) पढ़ाई पर जोर दिया गया हो, लेकिन सवाल यह भी है कि जहां इंटरनेट, टीवी और निरंतर बिजली उपलब्ध न हो, वहां बच्चे इन सुविधाओं का कैसे लाभ उठा पायेंगे? डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देना अच्छी बात है, मगर इसके समक्ष बहुत सी चुनौतियां हैं यह मान लिया गया है कि कक्षाओं का विकल्प ऑनलाइन शिक्षा है, लेकिन यह हम सबको समझने की जरूरत है कि यह बदलाव बेहद मुश्किल है और इसमें ढेरों चुनौतियां हैं। कोरोना ने शिक्षा के चरित्र को पूरी तरह बदल दिया है।

कोविड-19 के कारण शिक्षा के स्वरूप में अचानक जो भारी बदलाव आया है, उससे उत्पन्न चुनौतियों पर गंभीर चिंतन नहीं हो रहा है. वर्चुअल कक्षाओं ने इंटरनेट को एक अहम कड़ी बना दिया है। वर्चुअल क्लास रूम की खूब चर्चा हो रही है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग हैं जिनके पास न तो स्मार्ट फोन है, न कंप्यूटर और न ही इंटरनेट की सुविधा है। जाहिर सी बात है कि गरीब तबके पर अपने बच्चों को ये सुविधाएं उपलब्ध कराने का दबाव बढ़ गया है. गरीब तबका इस मामले में पहले से ही पिछड़ा हुआ था, कोरोना ने इस खाई को और चौड़ा कर दिया है. वहीं दूसरी ओर छोटे से मोबाइल के स्क्रीन पर, खराब नेटवर्क क्या सचमुच बच्चे पढ़ाई कर पा रहे हैं।

साधारण परिवार का बच्चा छोटे से घर लॉकडाऊन की वजह से घर में अन्य लोगों की संख्या उनकी रोज की किचकिच घर में अन्य काम से बच्चों का ध्यान भटक जाता है। हां इतना जरूर है कि जिन बच्चों के पास शानदार फ्लैट, आलिशान बेडरूम, दरवाजे बंद कर टेबल पर लॅपटॉप या कम्प्युटर है, तो वह विद्यार्थी तो पढ़ाई कर सकते हैं, मगर साधारण झुग्गी झोपड़ों में रहने वाले बच्चों के लिए आनलाइन पढ़ाई करना टेढ़ी खीर है। गांव में जगह है, तो नेटवर्क की समस्या है, फिर भला कैसे पढ़ाई के साथ बच्चे न्याय कर सकते हैं।

पिछले दिनों खबर आई थी कि हिमाचल प्रदेश में एक गरीब परिवार को स्मार्टफोन खरीदने के लिए गाय को बेचना पड़ा. बाद में जिसकी मदद अभिनेता सूद ने किया। कोरोना के कारण देशभर के स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों में ऑनलाइन कक्षाएं चल रही हैं. इस ऑनलाइन क्लास में शामिल नहीं हो पाने के कारण केरल में 14 साल की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने वाली छात्रा केरल के मालापुरम जिले के सरकारी स्कूल की छात्रा थी। लड़की के माता-पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। इस परिवार के पास कोई स्मार्टफोन नहीं है, जिससे बेटी ऑनलाइन क्लास में शामिल हो पा रही थी.

सबसे ज्‍यादा परेशानी उन गरीब लोगों को हो रही है जिनके पास स्‍मार्टफोन नहीं है. फरहाना ऐसी ही सिंगल मदर हैं जो दिल्‍ली के त्रिलोकपुरी के स्‍लम एरिया में रहती हैं. उनके दो बेटे समीर और शोएब दिल्‍ली के सरकारी स्‍कूल में पढ़ते हैं लेकिन वे बीते पांच माह में एक भी ऑनलाइन क्‍लास अटेंड नहीं कर पाए है. कारण कि परिवार स्‍मार्टफोन तो क्‍या बेसिक फोन का खर्च भी वहन नहीं कर सकता.
इसी तरह यहीं पर आरती की कहानी भी ऐसी ही है. 14 साल की आरती परिवार के छह सदस्‍यों के साथ एक रूम में घर में रहती है. घर में केवल एक फोन है जो उसके पिता के पास रहते है जो माली हैं और लगभग पूरे दिन घर से बाहर रहते हैं. जब भी कुछ घंटों के लिए पिता का फोन घर पर होता है तो उसे 13 और 12 वर्षीय भाई-बहन के साथ शेयर करना पड़ता है.

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के आंकड़ों पर भी गौर करना जरूरी है। इसके मुताबिक केवल 24 फीसदी भारतीय घरों में ही इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है. इसमें ग्रामीण इलाके भारी पीछे हैं। हालांकि शहरों के घरों में यह उपलब्धता 44 फीसदी के आसपास है, जबकि ग्रामीण घरों में यह 15 फीसदी के आसपास ही है. केवल 9 फीसदी घर ऐसे हैं, जहां कंप्यूटर और इंटरनेट दोनों सुविधाएं उपलब्ध हैं। पूरे देश में मोबाइल की उपलब्धता 79 फीसदी के आसपास आंकी गयी है, मगर इसमें भी शहर और गांव के इलाकों में काफी अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में 58 फीसदी लोगों के पास ही अभी तक मोबाइल है।

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Updated : 9 Aug 2020 11:33 AM GMT
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