मेरा मकान खाली है, कोई किराएदार बताना
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कोरोना संक्रमण ने व्यापार जगत को तगड़ा झटका दिया है। देश में लाखों लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। इसके चलते बड़े शहरों में बसी-बसाई गृहस्थी चौपट हो गई। वहीं जान बचाने के लिए भागकर गांवों में जाना पड़ा। प्रवासियों ने इस उम्मीद के साथ गांवों का रूख किया था कि घर पहुंचकर कोई रोजी-रोजगार कर खुशहाल जीवन जीएंगे। लेकिन गांवों में रोजगार के साधनों के अभाव ने प्रवासियों की उम्मीदों पर पानी फेरने का काम किया। ऐसे में उनके लिए घर-परिवार चलाना दूभर होता जा रहा है।
कोरोना महामारी से पूरे देश का बुरा हाल है। मजदूरों के पलायन करने से मुंबई स्लम क्षेत्रों व इमारतों में तमाम कमरे घर खाली पड़े हैं। कोई किराएदार नहीं मिल रहा है। हर मकान मालिक चलते रास्ते में किसी से भी कहता है मेरा रुम खाली है। कोई किराएदार बताना सस्ते दर मकान दे दूंगा। लोअर परेल इलाके में पूरे देश की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों का मुख्यालय है. न्यूज चैनल, कॉर्पोरेट, प्रोडक्शन हाउस सब इस इलाके में हैं। बात सीधी सी है कि यहां के फ्लैट महंगे किराए के बावजूद हमेशा डिमांड में रहते हैं.
लाकडाउन की वजह से यहां के कई फ्लैट खाली पड़े हैं। यहां के पुरानी रहिवासी राकेश शर्मा का घर है, जो खाली पड़ा है। वह किराए के पैसे पर पूरी तरह से डिपेंड रहते थे, अब वह परेशान हैं। मुंबई के कई फ्लैट खाली हैं। कोरोना लॉकडाउन लगाते वक्त भारत सरकार ने मकान-मालिकों से किराया ना लेने की अपील की थी. कई लोगों ने किराया नहीं लिया तो कुछ ने अपनी मजबूरी का हवाला देते हुए किराये की मांग की. लेकिन कोविड-19 के आने से अन्य सेक्टरों पर पड़ा प्रभाव अब रियल इस्टेट सेक्टर को भी रुला रहा है. लॉकडाउन के कारण इनमें से ज्यादातर लोगों का या तो काम बंद हो गया, या फिर उन्हें घर से ही काम करने को बोला गया.
चेंबूर में रहने वाले सुनील गोस्वामी की नौकरी जाने के कारण अपने गांव आजमगढ़ जाना पड़ा. उनका कहना है कि मकान मालिक से उनके रिश्ते अच्छे थे, लेकिन किराया ना दे पाने की स्थिति में उन्हें डर था कि उनके ऊपर मुसीबतें बढ़ जाएंगी. उनके मुताबिक सरकार के 3 महीने किराया न मांगने के फैसले से किरायदारों का सरदर्द कम नहीं बल्कि बढ़ता है. एक साथ कैसे दे पाउंगा? ऐसी हालत में जब काम ठप्प है और नौकरियां मिल नहीं रहीं, तो मुंबई में रहने का क्या फायदा."
किराये पर रहने वाले कई लोग या तो अब अपने राज्य यूपी-बिहार, झारखड में ही काम ढूंढ रहे हैं, या फिर वो कोरोना की मुसीबत टलने तक शहर आने को तैयार नहीं. छात्रों को भी स्कूल या कॉलेज खुलने तक अपने घर वापस बुला लिया गया है. मुंबई-दिल्ली जैसे बड़े शहरों में हर कॉलेज के आस-पास कई पीजी या हॉस्टल होते हैं जहां उन शहरों में पढ़ने छात्र कम किराये और बेहतर सुविधाओं के लिए रुकते हैं. कोरोना के असर से अब भी लगभग खाली पड़े हैं।