- मुख्यमंत्री केसीआर के अभेद्य किले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगाए ठहाके कहा कि लोग सत्ता परिवर्तन मांग रहे है
- Special Report : अमरावती में उमेश कोल्हे हत्याकांड के बाद क्या हो रहा खबर यही है
- विपक्ष में नहीं बैठना, सत्ता पाने के लिए काम करना है, गुजरात में अरविंद केजरीवाल का शंखनाद
- बैंकिंग फ्रॉड: बैंकों को लगा है 41,000 करोड़ रुपये का चूना
- ईडी ने मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर संजय पांडेय को समन किया जारी
- ऑडी कार के बोनट में मिला एक 10 फीट लंबा धामन सांप, रेस्क्यू करके निकालने में लगे दो घंटे
- खरीफ की बुवाई के लिए किसानों को दें मुफ्त बीज व नकद सहायता !: नाना पटोले
- भाई ने कोयता से करके वार भाई को उतारा मौत के घाट, पुलिस ने 12 घंटे में किया गिरफ्तार
- मध्य रेल ने पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून-2022 के दौरान ₹103.39 करोड़ का रिकॉर्ड टिकट चेकिंग राजस्व दर्ज किया
- अमित ठाकरे ने भी जताई आरे में बन रही मेट्रो कारशेड परियोजना पर आपत्ति, विकास चाहिए लेकिन पर्यावरण से समझौते में नहीं

बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई...
X
राजन दांडेकर
मुंबई। महाराष्ट्र में 16 मार्च को लॉक डाउन लागू हुआ। आज तकरीबन 6 महीने बाद राज्य की आर्थिक व्यवस्था लॉक हो गई है और डाउन भी। लॉक डाउन और कोरोना के चलते चलती फिरती मुंबई के आर्थिक व्यवस्था को धराशायी कर दिया है। आम आदमी की कमर टूट गयी है। गरीब बेबस है, लाचार है. जिन्हें कोरोना हुआ वे अस्पताल के बिल से परेशान हैं. जिन्हें कोरोना नहीं हुआ वे भूख से परेशान हैं. काम नहीं. कमाई का कोई जरीया नही. कितनों की नौकरी छूट गई है। इसका आंकडा पता लगाना मुश्किल है. जाहीर है यह आंकडा करोड़ के नीचे नहीं होगा.
महाराष्ट्र में आम आदमी के संचार पर पाबंदी है. आवागमन के सहज साधन बंद है. घर में पैसा आ नहीं रहा. बाकी पूंजी खत्म होने के कगार पर है. आम इंसान अपना और परिवार का पेट भला कैसे भरे… राज्य और केंद्र सरकार कोरोना के जंजाल में फसी है. दोनो सरकारों को ना कुछ दिखाई दे रहा है ना सुनाई. निजी अस्पताल इस आपत्ति को इष्टापत्ति समझ नोट छापने में लगे है. खान पान और अन्य जरूरी सामग्री के दाम दिन दुनी और रात चौगुनी जैसे बढ रहे है. राशन व्यवस्था में और दवा बाजार में कालाबाजारी जोरों पर है।
जिंदगी, महामारी और रोटी के शिकंजे में फंसी है. राज्य के पुणे और अन्य जगहों से परिवारों के आत्महत्या करने की खबरें आये दिन अखबारों में छप रही है. जिस तरह किसान आत्महत्या कर रहे हैं उसी तरह मध्यम वर्ग में उसी चपेट में आ रहा है। जाहीर है आम आदमी हमेशा सु-शांत ही रहेगा. उसके मौत के कारण भला किसकी शांती भंग होगी. मीडिया और मीडिया कर्मी अपना अलग राग आलाप रहे हैं. इस विपदा में इनके जैसे जमीनी कोई दूसरा नही. बस आम आदमी राम भरोसे जी रहा है. उसका बेमौत मरना तो तय है. कोरोना से या महंगाई से। कोरोना काल में अगर उसकी अर्थी उठ भी गई तो शायद ही राम बोलो भाई राम बोलो का नाद उसके नसीब में होगा. पिछले कई सालों से आऊट डेटेड हुए सत्तर के दशक की रोटी कपडा और मकान फिल्म का यह गाना थोडे फेरबदल से 2020 में फिर से प्रासंगिक हो गया है.
एक फिर हमें जीने की लड़ाई मार गई,
दूसरी तो बिना काम बेकारी मार गई।
तीसरी क्वारंटाईन की तन्हाई मार गई,
चौथी ये कोरोना की कुल्हाडी मार गई,
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई।