"शिवाजी की आरती मत्त उतारो..."
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छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के उन महानायकों में से एक हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता, स्वाभिमान और स्वराज्य की भावना को जन-जन तक पहुँचाया। वे केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि एक कुशल प्रशासक, रणनीतिकार और लोकनायक भी थे। आज जब हम उनकी जयंती या किसी अन्य अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, तो यह आवश्यक है कि हम केवल उनकी आरती उतारने तक सीमित न रहें, बल्कि उनके कार्यों और आदर्शों को अपनाकर उनके "पावड़ा" (यशगान) को गाने की परंपरा को आगे बढ़ाएँ।
आरती उतारना बनाम पावड़ा गाना
हम भारतीयों में देवताओं और महापुरुषों की आरती उतारने की परंपरा रही है। यह हमारी भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। लेकिन शिवाजी जैसे महापुरुषों की आरती उतारने की बजाय, उनके विचारों को अपनाना और उनके संघर्षों से सीखना अधिक महत्वपूर्ण है।
"पावड़ा गाना" का अर्थ है उनकी वीरता, शौर्य और पराक्रम का गुणगान करना, ताकि उनकी गाथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रेरणा देती रहे। शिवाजी महाराज का जीवन केवल भक्ति का विषय नहीं है, बल्कि यह कर्म, साहस और कर्तव्य का पाठ भी पढ़ाता है।
शिवाजी की विरासत और हमारी ज़िम्मेदारी
शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की स्थापना के लिए संघर्ष किया, मुगलों, आदिलशाही और अन्य आक्रांताओं से लोहा लिया, और एक न्यायसंगत तथा जनहितकारी प्रशासन की नींव रखी। आज हमें उनके योगदान को केवल मूर्ति पूजा तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि उनके सिद्धांतों को अपनाना चाहिए:
स्वराज्य की भावना: शिवाजी का स्वराज्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं था, बल्कि यह सामाजिक न्याय, धार्मिक सहिष्णुता और सुशासन का भी प्रतीक था।
शासन और प्रशासन: उन्होंने सुशासन की जो मिसाल पेश की, वह आज भी अनुकरणीय है। उनकी नीति "रयतेचा राजा" (जनता का राजा) होने की थी।
महिलाओं का सम्मान: शिवाजी महाराज ने महिलाओं की रक्षा और सम्मान के लिए सख्त कानून बनाए। आज भी हमें उनके इस आदर्श से प्रेरणा लेनी चाहिए।
धर्मनिरपेक्षता और सौहार्द: शिवाजी ने सभी धर्मों का सम्मान किया और अपने प्रशासन में मुस्लिम सेनानायकों को भी महत्वपूर्ण पद दिए।
स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता: उन्होंने विदेशी शासकों पर निर्भर न रहकर स्वदेशी ताकतों को मजबूत किया।
निष्कर्ष
यदि हम सच में शिवाजी महाराज को सम्मान देना चाहते हैं, तो हमें केवल उनकी मूर्तियों के सामने आरती उतारने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसके बजाय, हमें उनके विचारों को अपनाना चाहिए, उनके दिखाए मार्ग पर चलना चाहिए और उनकी गाथा, उनके संघर्ष और उनके सिद्धांतों को "पावड़ा" के रूप में गाना चाहिए। यही उनकी सच्ची आराधना होगी, और यही भारत के उज्ज्वल भविष्य की कुंजी भी।