अभयारण्य में लौटा 'मालढोक', पक्षी प्रेमी खुश पर्यटकों के देखने के लिए इजाजत के साथ शर्त
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सोलापूर: नान्नज अभयारण्य में एक लुप्तप्राय पक्षी लौट आया है। पिछले दो दिनों से, अभयारण्य में एक मादा 'मालढोक' गोडावण की "ग्रेट इंडियन बस्टर्ड" देखी गई है। इसे दिनों से बनाया गया था। हालांकि, यह पक्षी जुलाई से दिसंबर तक नान्नज अभयारण्य में देखा जाता है। यह पिछले कुछ वर्षों से नहीं देखी गई थी तस्वीर। वर्तमान में देश में केवल 150 मालढोक बचे हैं। राजस्थान में इनकी संख्या सबसे अधिक है। उसके बाद, इस पक्षी का निवास मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक में पाया जाता है। महाराष्ट्र में, यह पक्षी अमरावती, नासिक और सोलापुर जिलों में मौजूद है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, सोलापुर जिले को छोड़कर मालढोक के दर्शन नहीं हुए थे इसलिए चिंता थी, लेकिन अब पक्षी प्रेमी खुशी व्यक्त कर रहे हैं।
इन लुप्तप्राय पक्षी के वापस आने पर वन विभाग ने इसको वन क्षेत्र में देखने के लिए पर्यटकों को छूट दी है लेकिन कोई भी इन पक्षियों की फोटो या वीडियोग्राफी नहीं कर सकता बिना वन वित्राग के इजाजत के इन पक्षियों को कोई तकलीफ न हो उसे भी पूरा ध्यान रखा गया है अगर इनको पर्यटकों से कोई तकलीफ हुई तो उन पर वन कायदा अंतर्गत कार्रवाई की जाने की बात कहीं गई है।
यह सर्वाहारी पक्षी है, इसकी खाद्य आदतों में गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों का भक्षण करना शामिल है। किंतु इसका प्रमुख खाद्य टिड्डे आदि कीट है। यह सांप, छिपकली, बिच्छू आदि भी खाता है, यह पक्षी बेर के फल भी पसंद करता है।
'मालढोक' गोडावण की "ग्रेट इंडियन बस्टर्ड"
यह पक्षी भारत और पाकिस्तान के शुष्क एवं अर्ध-शुष्क घास के मैदानों में पाया जाता है। पहले यह पक्षी भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा एवं तमिलनाडु राज्यों के घास के मैदानों में व्यापक रूप से पाया जाता था। किंतु अब यह पक्षी कम जनसंख्या के साथ राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और संभवतः मध्य प्रदेश राज्यों में पाया जाता है। IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों पर प्रकाशित होने वाली लाल डाटा पुस्तक में इसे 'गंभीर रूप से संकटग्रस्त' श्रेणी में तथा भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में रखा गया है। इस विशाल पक्षी को बचाने के लिए राजस्थान सरकार ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया था। इस प्रोजेक्ट का विज्ञापन "मेरी उड़ान न रोकें" जैसे मार्मिक वाक्यांश से किया गया है। भारत सरकार के वन्यजीव निवास के समन्वित विकास के तहत किये जा रहे 'प्रजाति रिकवरी कार्यक्रम (Species Recovery Programme)' के अंतर्गत चयनित 17 प्रजातियों में गोडावण भी सम्मिलित है।
यह जैसलमेर के मरू उद्यान, सोरसन (बारां) व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र में पाया जाता है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। यह पक्षी 'सोन चिरैया', 'सोन चिड़िया' तथा 'शर्मिला पक्षी' के उपनामों से भी प्रसिद्ध है। गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इसकी बहुत ही कम संख्या बची हुई है अर्थात यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है। राजस्थान में अवस्थित राष्ट्रीय मरू उद्यान में गोडावण की घटती संख्या को बढ़ाने के लिये आगामी प्रजनन काल में सुरक्षा के समुचित प्रबंध किए गए हैं। राष्ट्रीय मरू उद्यान (डेजर्ट नेशनल पार्क) 3162 वर्ग किमी. में फैले इस पार्क में बाड़मेर के 53 और जैसलमेर के 35 गांव शामिल हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे बड़ा अभयारण्य है। इसकी स्थापना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अन्तर्गत वर्ष 1980-81 में की गई थी। राजस्थान में सर्वाधिक संख्या में गोडावण पक्षी इसी उद्यान में पाए जाते हैं। इसलिये इस अभयारण्य क्षेत्र को गोडावण की शरणस्थली भी कहा जाता है।