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14 लाख खर्च करने के बावजूद बीएमसी का सार्वजनिक लघुशंका (पेशाब घर) क्यों बंद है?

सार्वजनिक लघुशंका (पेशाब घर) तीन लोगों के लिए के निर्माण के लिए 14 लाख, खर्च करने के बावजूद मुंबई महानगरपालिका का पब्लिक लघुशंका (पेशाब घर) बंद है क्यों कारण क्या है बीएमसी के अधिकारी इस पर कुछ कहने से कतराते नजर आ रहे है। जनवरी में इसके निर्माण की राशि बीएमसी से पास हुई मार्च में एक दिन के लिए उद्घाटन हुआ फिर (पेशाब घर) बंद हो गया। लोगों का कहना है कि वो लघुशंका के लिए जाए तो जाए कहां सडक पर खडे होकर तो नहीं कर सकते लोगों की तकलीफो को दूर करने के लिए इसका निर्माण हुआ लेकिन लोगों निमार्ण के बाद से ज्यादा तकलीफ हो रही है। क्या इसके पीछे की सच्चाई बता रहे है हमारे संवाददाता प्रसन्नजीत जाधव अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में ....

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मुंबई में हमने कई जगहों पर मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के तहत सार्वजनिक लघुशंका (पेशाब घर) देखी है। इन्हें बनाने में मुंबई महानगरपालिका की ओर से करीब दो से तीन लाख का खर्च आता है। लेकिन कुर्ला के काजुपाड़ा में वार्ड नंबर 163 के वर्तमान विधायक और पूर्व पार्षद दिलीप मामा लांडे के कार्यकाल में उनके वार्ड में सार्वजनिक (पेशाब घर) निर्माण पर 14 लाख 79 हजार 457 रुपये खर्च किए गया है। उनका काम मार्च के महीने में पूरा हो गया उनका उद्घाटन पूर्व परिवहन मंत्री अनिल परब के हाथों किया गया। उद्घाटन के बाद यह लघुशंका (पेशाब घर) करीब छह महीने से बंद पड़ा है। क्या इसलिए बीएमसी ने 14 लाख 79 हजार 457 रुपये खर्च किया था। नागरिकों को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, खासकर स्थानीय लोगों के मन में सवाल है कि इन छोटे-छोटे (मुतारी केंद्र) को बनाने में इतनी बड़ी राशि कैसे खर्च की गई। लोगों की राय कुछ और है लेकिन हम भ्रष्टाचार ने नहीं इसको लोगों की सुविधा से जोड़ने का प्रयास कर रहे है लोगों की सुविधा में दुविधा क्यों?


हाईलाइट खर्च और उनके पीछे बजट पर लोगों की राय और आरोप बहुत है बहुत है। हम सिर्फ यही मुद्दा उठा रहे है कि लोगों की सुविधा के लिए बना यह (पेशाब घर) आखिर क्यों दुविधा पैदा कर रहा है।


यह है लघुशंका (पेशाब घर) के निर्माण का ठेका बीएमसी ने जे.एन. कॉर्पोरेशन को दिया गया। इस छोटे से सार्वजनिक (पेशाब घर) को बनाने में नगर निगम के तहत 3 लाख रुपये खर्च होने की उम्मीद थी। इस आश्रय को पूरी तरह से तोड़कर नया बनाने का नियम है। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पूर्व पार्षद दिलीप लांडे ने ऐसा करने के बजाय पुराने लघुशंका को बाहर से प्लास्टर और स्टाइल करने और स्वीकृत धन को हड़पने का काम किया। इसलिए नगर निगम के सतर्कता विभाग द्वारा इसका निरीक्षण करना आवश्यक है। लेकिन बीएमसी के किसी अधिकारी द्वारा इसका निरीक्षण नहीं किया गया। इसलिए स्थानीय लोग सोच रहे हैं कि सार्वजनिक (पेशाब घर) बनाने के लिए 14 लाख रुपये कैसे खर्च किया गया हैं। इसलिए, स्थानीय लोगों के लिए बनाया गया यह सार्वजनिक तीन लोगों का (पेशाब घर) कब शुरू होगा। इस सवाल का जवाब अनुत्तरित रहेगा या लोगों को मिलेगा इस ओर सबका ध्यान केंद्रित है।





(पेशाब घर) का उद्घाटन हुआ लेकिन अंदर के हालात क्या बता रहे है देखें पूरा वीडियो एक दिन के बाद से बंद है (पेशाब घर) लोगों के पेशाब करने के लिए लगे तीनों शीट हाथ धोने वाले हैंड वॉशिंग शीट को किस तरह से नीचे उतार कर रखा गया है। हमारे पास वो बीएमसी के ठेके की लिस्ट है जिसमें 14 लाख रुपये इसे बनाने के लिए पास हुए है जो मार्च महीने में ही बनाकर ठेकेदार ने बीएमसी को हैंडओवर कर दिया है जिसमें खर्च का उल्लेख किया गया है। उद्घाटन हुआ लोगों को सुविधा मिले लेकिन बंद होने से लोग तरह तरह की बात कर रहे है।

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हमने महानगरपालिका के सहायक आयुक्त महादेव शिंदे से मिल कर इस पर जानकारी लेने की कोशिश की के तहत बने सार्वजनिक (पेशाब घर) को चार महीने बाद भी सार्वजनिक उपयोग के लिए क्यों नहीं खोला जा रहा है। जो उद्घाटन के बाद से बंद है, शहर में शौचालयों और मुतारी केंद्रों की संख्या बढाकर लोगों को बीएमसी ने काफी सहूलियत दी है लेकिन पिछले कुछ महीनों से यहां की समस्याओं के समाधान के लिए कुछ नहीं किया जा है। बीएमसी से अतिरिक्त धनराशि स्वीकृत करने के बाद भी पूर्व पार्षद दिलीप लांडे ने काम क्यों नहीं किया? बीएमसी ने क्या एक (पेशाब घर) के लिए इतना पैसा खर्च किया, क्या बीएमसी ने इसका निरीक्षण किया? इसकी रिपोर्ट तैयार की? इन सब सवालों का जवाब देने से सहायक आयुक्त महादेव शिंदे ने इनकार कर दिया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि महानगरपालिका लोगों के लिए कितनी कुशलता से काम कर रहा है।



1) मुंबई में सार्वजनिक लघुशंका (पेशाब घर) के निर्माण पर 14 लाख रुपये खर्च किए गए हैं। लेकिन वहां की स्थिति बिल्कुल भयावह है। हालांकि, छोटे शंकुओं (मटर) के सार्वजनिक निर्माण बंद रूप में देखे जा सकते हैं। इसलिए स्थानीय लोगों का सवाल है कि एक छोटा सा लघुशंका (पेशाब घर) बनाने में 14 लाख की लागत कैसे आ सकती है।

2) एक शौचालय बनवाने में करीब 800 ईंट, सात वर्गफुट गिट्टी, तीन बोरी सीमेंट, छत की सीमेंट शीट, नल, टंकी, दो गड्ढों की खुदाई, रेत, दरवाजा, टॉयलेट सीट की जरूरत होती है। मजदूरी लगभग 1500 रुपए तय है, लागत 22 से 25 हजार रुपए आ रही है। ऐसे में सरकार सिर्फ 12 हजार रुपए लोगों को देती थी तक लोगों ने दिया था यह बजट बहुत कम है। वहीं प्रधानमंत्री योजना के तहत लोगों को हर घर शौचालय की योजना के तहत किया गया आकलन है।

3) बीएमसी के कई सार्वजनिक शौचालयों (पेशाब घर) को अलग से बनाया गया है जिसका इस्तेमाल करने पर 1 रुपया वसूल किया जाता है। क्योंकि बीएमसी किसी को ठेका देती है वो ठेकेदार किसी और को भांडे पर देकर उससे लाखों रुपये भाडा कमाता है। उसकी साफ सफाई रखरखाव पर होने के लिए खर्च होने के लिए उनका लोगों से पैसे वसूलना क्या स्वाभाविक है?

4) मुंबई महानगरपालिका द्वारा सैकड़ों जगहों पर बीएमसी फंड से सार्वजनिक शौचालयों को बनाया गया है। किसी एक को यह टेंडर मिलता है उसको बनाने के बाद शौचालय की देखरेख करने वाले उसके ऊपर अपना रैन बसेरा बनाकर उस पर रहने लग जाते हैं, मुंबई में अधिकतर शौचालयों का यही हाल है। क्या बीएमसी अधिकारियों ने यह पता नहीं?

Updated : 3 Aug 2022 3:58 AM GMT
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