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महाराष्ट्र की मदर टेरेसा सिंधुताई को मिला पद्मश्री,ट्रेन में मांगी थी भीख,श्मशान में खाई चिता की रोटी

महाराष्ट्र की मदर टेरेसा सिंधुताई को मिला पद्मश्री,ट्रेन में मांगी थी भीख,श्मशान में खाई चिता की रोटी
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मुंबई। सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार यानी पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई। इसमें सामाजिक कार्यकर्ता सिंधुताई सपकाल भी शामिल हैं। बेघर बच्चों की देखरेख करने वाली सिंधुताई के पास 1500 बच्चे, 150 से ज्यादा बहुएं और 300 से ज्यादा दामाद हैं। सिंधु ताई ने अपनी जिंदगी अनाथ बच्चों की सेवा में गुजारी और और बन गईं महाराष्ट्र की 'मदर टेरेसा'। अनाथ बच्चों का पेट भरने के लिए उन्होंने सड़कों पर भीख तक मांगी। पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर सिंधुताई ने कहा कि यह पुरस्कार मेरे सहयोगियों और मेरे बच्चों का है। उन्होंने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की है। मुझे ऐसा लगता है कि आज मेरा जीवन अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया है। मेरे बच्चे बहुत खुश हैं। पर अतीत को भुलाया नहीं जा सकता।

मेरी प्रेरणा, मेरी भूख और मेरी रोटी है। मैं इस रोटी का धन्यवाद करती हूं क्योंकि इसी के लिए लोगों ने मेरा उस समय साथ दिया, जब मेरी जेब में खाने के भी पैसे नहीं थे। यह पुरस्कार मेरे उन बच्चों के लिए हैं जिन्होंने मुझे जीने की ताकत दी।' वर्धा जिले 10 साल की उम्र में 20 साल के व्यक्ति से शादी हुई। कुछ साल बाद वह गर्भवती हो गई। पति ने 9वें महीने में पेट में लात मारी और उन्हें घर से निकाल दिया। उन्होंने बेहोशी की हालत में गायों के बीच एक बेटी को जन्म दिया फिर अपने हाथ से नाल भी काटी। बेघर होने के चलते उन्होंने बेटी को स्टेशन पर छोड़ दिया। इन सब बातों ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने आत्महत्या करने की भी सोची। बाद में अपना पेट भरने के लिए ट्रेन में भीख भी मांगी।


श्मशान घाट में चिता की रोटी भी खाई। एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक बच्चा मिला। यहीं से उन्हें बेसहारा बच्चों की सहायता करने की प्रेरणा मिली। आज महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। इन संस्थाओं में 1500 से ज्यादा बेसहारा बच्चे एक परिवार की तरह रहते हैं। सिंधुताई की संस्था में 'अनाथ' शब्द का इस्तेमाल वर्जित है। बच्चे उन्हें ताई (मां) कहकर बुलाते हैं। इन आश्रमों में विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है। पद्मश्री सिंधुताई को अब तक 700 से ज्यादा सम्मान से नवाजा जा चुका है। उन्हें अब तक मिले सम्मान से जो भी रकम मिली, वह भी उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण में खर्च कर दी। सिंधुताई के जीवन पर बनी एक मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकाल' भी रिलीज हुई थी।

Updated : 26 Jan 2021 8:47 AM GMT
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