Maratha reservation:क्या 50% से अधिक दे सकते हैं आरक्षण,15 तक जवाब दें राज्य:SC
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मुंबई। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने आज से मराठा आरक्षण को लेकर वर्चुअल सुनवाई शुरू की है। जो 18 मार्च तक जारी रहेगी। संवैधानिक बेंच ने आज सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। कई राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट इसके पीछे राज्य सरकारों का तर्क जानना चाह रहा है। बेंच ने कहा कि हम सहमत हैं कि मामले का असर सभी राज्यों पर पड़ेगा। उन्हें भी सुनना जरूरी है। बेंच इस मामले में अब अगली सुनवाई 15 मार्च को करेगी।
15 मार्च से मराठा आरक्षण और इससे जुड़े संवैधानिक प्रश्नों पर सुनवाई शुरू होगी। सुनवाई के दौरान पूछा गया है कि क्या आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाया जा सकता है? सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा, 'अलग-अलग राज्यों के मिलते-जुलते कानूनों को चुनौती SC में लंबित है। इस मामले में Article 342A की व्याख्या भी शामिल है। जो सभी राज्यों को प्रभावित करेगा। इसलिए इस मामले में सभी राज्यों को सुनना चाहिए।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में एक दशक से मांग हो रही थी कि मराठा को आरक्षण मिले। 2018 में इसके लिए राज्य सरकार ने कानून बनाया और मराठा समाज को नौकरियों और शिक्षा में 16% आरक्षण दे दिया। जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे कम करते हुए शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% आरक्षण फिक्स किया। हाईकोर्ट ने कहा कि अपवाद के तौर पर राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो इंदिरा साहनी केस या मंडल कमीशन केस का हवाला देते हुए तीन जजों की बैंच ने इस पर रोक लगा दी। क्या है इंदिरा साहनी केस, जिससे तय होता है कोटा?
1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10% आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। इस पर इंदिरा साहनी ने उसे चुनौती दी थी।
इस केस में नौ जजों की बैंच ने कहा था कि आरक्षित सीटों, स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50% से अधिक नहीं होना चाहिए। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया है। तब से यह कानून ही बन गया। राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है।