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अर्नब गोस्वामी मामले पर विधायिका और न्यायपालिका आमने-सामने
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मुंबई। रिपब्लिक टीवी ग्रुप के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी के खिलाफ लाए गए विशेषाधिकार उल्लंघन प्रस्ताव पर विधायिका और न्यायपालिका आमने-सामने आ गई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ विधानसभा और विधान परिषद में एक प्रस्ताव पास हुआ है, जिसमें कहा गया है कि अर्नब मामले में सदन हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी नोटिस का न तो संज्ञान लेगा और न ही इसका जवाब देगा। महाराष्ट्र में दो दिन का शीतकालीन सत्र चल रहा था, इसके आखिरी दिन दोनों सदनों में यह प्रस्ताव बहुमत से पाश हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया है।
विधानसभा स्पीकर नाना पटोले ने इसके एकमत से पास होने का ऐलान करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किसी नोटिस और समन का स्पीकर और डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल कोई जवाब नहीं देंगे। सदन में पेश प्रस्ताव में कहा गया है कि कोर्ट के किसी नोटिस का जवाब देने का मतलब होगा कि न्यायपालिका आगे विधायिका की निगरानी कर सकती है और यह संविधान के आधारभूत ढांचे के खिलाफ होगा। विधानसभा में स्पीकर नाना पटोले ने कहा कि संविधान ने सरकार के तीनों अंग- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित की हैं। हर अंग को इन सीमाओं का सम्मान करना चाहिए।
किसी को भी एक-दूसरे की सीमाओं में हस्तक्षेप की कोशिश नहीं करनी चाहिए। विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति के बिना सदन की कार्यवाही की प्रति उच्चतम न्यायालय में जमा करने के मामले में महाराष्ट्र विधानसभा सचिवालय ने रिपब्लिक टेलीविजन के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी को विशेषाधिकार हनन का नोटिस जारी किया है। अर्नब को 13 अक्टूबर को नोटिस जारी किया गया था और इसके बाद उन्हें चार बार अपना स्पष्टीकरण दर्ज करवाने का नोटिस भेजा गया, लेकिन वे एक भी बार उपस्थित नहीं हुए।