क्या अब शरद पवार राजनीति के चाणक्य नहीं रहे! क्या वाकई चूक गए पवार !
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मुंबई : देश की राजनीति के अगर राजनीतिक चाणक्य की बात की जाए तो सबसे पहले शरद पवार का नाम आता है क्योंकि शरद पवार राजनीति मे मंझे हुए वो खिलाड़ी है जिसे कोई मात नहीं दे सकता। जब जब देश की राजनीति मे कोई हलचल होती है तो उसमे शरद पवार का रोल जरूर होता है और महाराष्ट्र की राजनीति मे भी अगर कोई हलचल होती है या हुई है तो बिना शरद पवार के कुछ भी संभव नहीं जिसका ताजा उदाहरण हम महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद देख चुके है कि किस तरह बीजेपी के हाथ से सत्ता छिन कर शिवसेना के हाथ मे पकड़ा दी। अगर शरद पवार नहीं साथ देते तो शिवसेना सत्ता से कोसों दूर होती।
शरद पवार सर्जरी से बरी होते ही फिर से राजनीती में सक्रिय हो गए लगातार महाराष्ट्र की राजनीती के साथ साथ केंद्र की राजनीती में सपर्क बनाये हुए है लेकिन उनकी प्रशांत किशोर से हुई मुलाकात को लेकर राजनितिक गलियारों में चर्चा हो रही है कि शरद पवार को प्रशांत किशोर की जरूरत भला क्यों पड़ने लगी? राजनीती के चाणक्य तो शरद पवार खुद है तो प्रशांत किशोर से भला वो क्यों सलाह लेंगे? क्या अब पवार दुसरो का सुनकर निर्णय लेंगे अगर ऐसा है तो इसका मतलब अब पवार राजनीती के चाणक्य नहीं रहे?
लेकिन इतने साल से शरद पवार की राजनीती और चाणक्य नीति को जो लोग करीब से जानते है उन्हें पता है कि शरद पवार का प्रशांत किशोर से मिलना ये एक औपचारिकता मुलाकात भी हो सकती है और दूसरी मुलाकात कर देश में मोदी सरकार के विरोधियो में नयी जान फूंकने के लिए हो सकती है यही वजह है की पवार सरकार विरोधी पार्टियो से मुलाकात कर रहे है.
हो सकता है शरद पवार तीसरे फ्रंट के मोर्चे को सँभालने की तैयारी कर रहे हो ( जो फिलहाल दिखाई दे रहा है )
या फिर सभी का ध्यान केंद्र में लगा कर महाराष्ट्र की राजनीती में हलचल करना हो.
केंद्र की राजनीती में ऊँचा स्थान चाहते हो.
राष्ट्रपति का चुनाव भी आ रहा है.
अब शरद पवार ने इतने सारे प्रश्न चिन्ह निर्माण कर दिए है कि वो क्या कदम उठाएंगे कोई समझ ही नहीं पायेगा अगर वही पुराने चाणक्यनीति वाले शरद पवार है तो उन्हें समझना काफी मुश्किल है.क्योंकि ये वही शरद पवार है जिन्हे देश में राज कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना राजनितिक गुरु मान चुके है.