BSF 18वां अलंकरण समारोह: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किया जवानों को सम्मानित, कहा- तकनीक के जरिए सीमा सुरक्षा को बनाएं और सशक्त
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मुंबई : सीमा सुरक्षा बल (BSF) के 18वें अलंकरण समारोह (Investiture Ceremony) में आज केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बतौर मुख्य अतिथि भाग लिया और वीर जवानों को सम्मानित किया।18वें अलंकरण समारोह में भाग लेते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पड़ोसी देश जिस तरह से ड्रोन हमले कर रहा है वो भारत के लिए एक चुनौती है। लेकिन भारत सरकार जल्द ही स्वदेशी तकनीक से इस चुनौती से ना केवल निपट लेगी बल्कि हम इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर भी हो जाएंगे। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सीमा सुरक्षा बल के निर्माण में श्री रूस्तम जी का योगदान अविस्मरणीय है। इन्होंने दूरदृष्टि और नेतृत्व एवं संगठन निर्माण की अतुलनीय क्षमता से सीमा प्रबंधन के क्षेत्र में व्यावसायिक रूप से दक्ष बल की नींव रखी। आज सीमा सुरक्षा बल अपनी विभिन्न खूबियों के कारण भारत की सीमाओं की रक्षा करनें वाले एक विशिष्ट अर्द्धसैनिक बल के रूप में खड़ा है। मात्र 25 बटालियनों के साथ 1 दिसम्बर 1965 को स्थापित यह बल आज 192 बटालियनों (तीन आपदा राहत एवं प्रबंधन बटालियनों – NDRF Bns सहित) और 2.65 लाख से भी ज्यादा अनुशासित और कर्तव्यनिष्ठ सीमा प्रहरियों के बल पर विश्व के सबसे बडे़ सीमा रक्षक बल के रूप में प्रतिष्ठित है। यह बल अपनी पूरी क्षमता से भारत-पाक और भारत- बांग्लादेश सीमाओं की सुरक्षा कर रहा है। समारोह में अपना सर्वोच्च योगदान देने वाले योद्धाओं को सम्मानित करने के साथ गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सीमाओं की मजबूत सुरक्षा करना हमारी प्राथमिकता है। सीमाओं की मजबूती के लिए आधारभूत ढांचे पर मोदी सरकार जोर दे रही है। पहले जहां एक ही सुरंग थी लेकिन आज 6 सुरंग हमने बना ली है और 19 सुरंगों पर काम चल रहा है। दुर्गम से दुर्गम सीमा इलाकों में मजबूत सड़कों का जाल मोदी सरकार बिछा रही है। बीएसएफ पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ कई हजार किलोमीटर लंबी सीमाओं की रक्षा करती है। ज्यादातर पड़ोसी देशों की सीमाओं पर हमने फेंसिंग कर दी है लेकिन कहीं कहीं दुर्गम इलाकों और दूसरी दिक्कतों के चलते गैप रह गया है जिसे हर हाल में 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा। क्योंकि ये गैप ही घुसपैठ के सबसे बड़े कारण है। लेकिन अब गैप को बंद कर लिया जाएगा। अपनी स्थापना से लेकर अब तक बीएसएफ ने राष्ट्र सेवा में 924 जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है, हजारों की संख्या में लोग हमेशा के लिए दिव्यांग हो गए। लेकिन ये भी एक सच्चाई है कि तमाम मुश्किलें और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी इस बल ने सीमाओं की रक्षा में हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है वो भी पूरी मुस्तैदी के साथ।