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राज्यों के सहयोग से भारत ने कोरोना के समय कौन सा तीर मारा था, क्या भूलने का तीर चला था? -रवीश कुमार

राज्यों के सहयोग से भारत ने कोरोना के समय कौन सा तीर मारा था, क्या भूलने का तीर चला था? -रवीश कुमार
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प्रधानमंत्री किस ज़माने की बात करते हैं पता नहीं। आप पिछले साल के अखबार उठा कर देख लें। जब कोरोना की दूसरी लहर ने दस्तक दी तो हाहाकार मच गया। जो सरकार कहती थी कि सबको टीका देने की ज़रूरत नहीं है वह एक्सपोज़ हो गई। लोग पूछने लगे कि टीका कहा हैं। टीके का आर्डर कहां है। कोर्ट से लेकर विपक्ष तक। कोई जवाब नहीं। फरवरी से ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने पत्र लिखना शुरू कर दिया था कि टीका कम मिल रहा है। जितना चाहिए उससे काफी कम है। आगे का खेप कब मिलेगा, पता नहीं। केरल, तमिलनाडु आंध्र प्रदेश,झारखंड, बंगाल,मिज़ोरम जैसे कई राज्यों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखना शुरू कर दिया।

राज्यों ने कहा कि केंद्र भारत बायोटेक और सीरम से पचास परसेंट टीका खरीद रहा है, उसे राज्यों में बांट रहा है। बाकी पचास परसेंट टीका ये दोनों कंपनियां राज्यों और प्राइवेट प्लेयर को बेच रही हैं। प्राइवेट मार्केट में टीका एक हज़ार प्रति डोज़ बिक रहा था तो केंद्र दो सौ रुपये प्रति डोज़ में खरीद रहा था। राज्य इस धंधे पर सवाल उठाने लगे। तब केंद्र ने कहा कि राज्य खुद से निर्यात कर लें। कई हफ्ते इसी में निकल गए। बीजेपी समर्थक राज्य चुप रहे इसका मतलब यह नहीं था कि वे टीम में खेल रहे थे बल्कि अपने नेता के खिलाफ पत्र लिख सकते थे न आवाज़ उठा सकते थे। सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, पी विजयन, हेमंत सोरेन, एम के स्टालिन ने बोलना शुरू कर दिया कि टीका नहीं है। कोई भी कंपनी राज्यों को सीधे टीका नहीं बेच रही है। केंद्र सरकार की गारंटी मांग रही है।



जब काफी समय बर्बाद हो गया तो सरकार टीके के लक्ष्य को लेकर दावा करने लगी। सितंबर में इतना टीका होगा, तो दिसंबर में इतना टीका होगा। कितना टीका है, कितने का आर्डर दिया है, कैसे-कैसे आर्डर पूरा होगा, इसकी कोई जानकारी नहीं थी। विपक्ष पूछ रहा था, जवाब कुछ और आ रहा था। इस तरह फरवरी से मार्च, अप्रैल से मई और जून आ गया। प्रधानमंत्री टीवी पर आते हैं और कहते हैं कि राज्यों को टीका खरीदने की जरूरत नहीं है। केंद्र ही सारा खरीद कर देगा और टीका मुफ्त होगा।



यही हाल ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर था। कायदे से इसका काम गृह मंत्रालय की आपदा समिति को करना था लेकिन आप पुरानी खबरों को निकाल कर देखें, प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन इस काम को ले लिया गया था। अगस्त सितंबर 2020 में ऑक्सीजन की कमी हुई थी। कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र से ऑक्सीजन की कमी से अंदाज़ा हो गया था कि अगर बड़ी तबाही आई तो ऑक्सीजन की सप्लाई पर असर पड़ेगा। इन मामलों में भी उस समय कई तथ्य उजागर हुए थे जिससे साफ पता चलता है कि केंद्र सरकार लापरवाह थी। सुप्रीम कोर्ट चीख रहा था, पूछ रहा था कि ऑक्सीजन कहां है, कोर्ट को ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए खुद कमेटी बनानी पड़ी थी।



इन तमाम सवालों और हंगामे से पता चल रहा था कि कोरोना को आए डेढ़ साल से ज़्यादा हो गए हैं, केंद्र और सरकार की कोई टीम नहीं थी। लोग बेतहाशा मरे जा रहे थे। लाशें बिछ रही थीं। केंद्र का राज्यों पर भरोसा नहीं था और राज्य केंद्र पर आरोप लगा रहे थे कि भरोसे को लेकर काम नहीं हो रहा है। प्रधानमंत्री कई बार से यही बात कहे जा रहे हैं कि राज्यों के सहयोग से भारत वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरा।



किस राज्य के सहयोग की बात कर रहे हैं, ये कब हुआ, क्या उन्हें यही लगता है कि जनता को कुछ याद नहीं, वे जो कहेंगे वही हेडलाइन है और वही सच है। चारों तरफ लाशें बहने लगीं, कोई चालीस लाख के मारे जाने का आंकड़ा बता रहा था तो कोई साठ लाख के। ऑक्सीजन के बिना लोग तड़प कर मर रहे थे। यह सब ठीक इसी समय पिछले साल हो रहा था। पता नहीं प्रधानमंत्री किस समय की बात कर रहे हैं, किस सहयोग की बात कर रहे हैं, और किस मामले में भारत के वैश्विक नेतृत्व की बात कर रहे हैं?

Updated : 11 Aug 2022 5:16 AM GMT
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