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यह कैसी झल्लाहट? …पहले इन सवालों का जवाब दो!

शिवसेना मे अपने मुखपत्र सामना के जरिए पुणे और बारामती अपने दौरे पर आई वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयानों के बाद उनसे कई सवालों पूछा है। निर्मला सीतारमण ने कई योजनाओं को महारा,्ट्र से जाने के लेकर और रोकने का विरोध करने पर महाविकास आघाडी सरकार पर जमकर पुणे बारामती में अपने भाषणों में उल्लेख किया था। सामना के जरिए तंज कसते हुए शिवसेना ने संपादकीय में उनके जरिए जवाब मांगा है।

यह कैसी झल्लाहट? …पहले इन सवालों का जवाब दो!
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केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इस बीच पुणे-बारामती का दौरा करके गईं। जाते हुए हमेशा की तरह उन्होंने राज्य की पूर्व महाविकास आघाड़ी सरकार पर उद्योगों के मुद्दों को लेकर निशाना साधा। खासकर वेदांता-फॉक्सकॉन परियोजना महाराष्ट्र से गुजरात जाने से निर्माण हुए पेच से इन सभी मंडली के नाक-मुंह में ज्यादा ही पानी चला गया है। इसलिए वेदांता को लेकर सामने से सवाल आते ही वे तिलमिला जाते हैं। वेदांता परियोजना का गुजरात जाना उनके लिए मुंह दबाकर मुक्का मारना साबित हो रहा है। मुंह खोलते नहीं बन रहा और खोलें तो अपनी ही पोल खुल जाएगी। इस पेच में वर्तमान में भाजपा और 'मिंधे' गुट के लोग फंसे हुए हैं। इसलिए अलग मुद्दा निकालकर विपक्षियों और आलोचकों के नाम पर उंगलियां फोड़ने का काम शुरू है। अब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वेदांता-फॉक्सकॉन परियोजना के महाराष्ट्र से बाहर जाने पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए वही किया। 'वेदांता' राज्य के बाहर चली गई, यह मुद्दा एक तरफ रह गया, उन्होंने अन्य कुछ परियोजनाएं महाराष्ट्र में क्यों नहीं स्थापित हो सकीं, इसका जवाब विपक्ष दे, ऐसा फिजूल सवाल पूछा।


नाणार रिफायनरी परियोजना, वाढवण बंदरगाह, मुंबई-अमदाबाद बुलेट ट्रेन, आरे मेट्रो कारशेड जैसी कुछ परियोजनाओं की ओर वित्तमंत्री ने उंगली दिखाई। ये परियोजनाएं किसने रोकी और उससे देश के हजारों करोड़ रुपए का नुकसान वैâसे हुआ, हजारों रोजगार वैâसे डूब गए वगैरह-वगैरह सवालों का जवाब पहले महाविकास आघाड़ी दे, फिर वेदांता के मामले में पूछे, ऐसा सीतारमण ने कहा। दरअसल, नाणार, वाढवण, बुलेट ट्रेन अथवा मेट्रो कारशेड का विरोध और वेदांता परियोजना को लेकर हो रही आलोचना, ये दोनों बातें अलग-अलग हैं। नाणार रिफायनरी परियोजना का कड़ा विरोध स्थानीय लोगों ने इस वजह से किया क्योंकि उससे जहरीला प्रदूषण, परंपरागत मत्स्य व्यवसाय पर चलनेवाली कुल्हाड़ी और कोकण जैसे प्रकृति-समृद्ध प्रदेश पर पर्यावरण असंतुलन का संकट निर्माण होगा। स्थानीय लोगों की यह बेचैनी तब प्रखर जनआंदोलन के जरिए लावे की तरह उफनकर बाहर आई थी। यही वाढवण बंदरगाह के मामले में भी हुआ। वहां स्थानीय लोगों ने इस परियोजना का प्रखर विरोध किया।


मुंबई-अमदाबाद प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री मोदी की 'ड्रीम' या महत्वाकांक्षी परियोजना होगी लेकिन इस बुलेट ट्रेन से महाराष्ट्र की सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि, आदिवासियों के घर-द्वार पर बुलडोजर घूमने जैसा लगने के कारण हजारों परियोजनाग्रस्त इसके विरोध में सड़कों पर उतरे थे। फिर भी अब महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद बुलेट ट्रेन के घोड़े दोगुनी रफ्तार से दौड़ाए जा रहे हैं। वैसे आपकी उस जापानी बुलेट ट्रेन से स्वदेशी 'वंदे भारत एक्सप्रेस' अधिक रफ्तारवाली है, ऐसा सरकार के परीक्षण में अब सामने आया है। बुलेट ट्रेन को १०० किमी की रफ्तार पकड़ने में ५५ सेकेंड लगते हैं तो 'वंदे भारत एक्सप्रेस' यही गति ५३ सेकेंड में पकड़ती है, ऐसा संज्ञान में आया है। इसलिए एक लाख करोड़ रुपए के कर्ज का बोझ देश के सिर पर मढ़ने की जरूरत ही क्या है? उसके बदले स्वदेश निर्मित 'वंदे भारत एक्सप्रेस' गाड़ियों का अधिक संख्या में निर्माण करना क्या सुविधाजनक साबित नहीं होगा, ऐसा सवाल जनता के मन में आया तो वह दोष किसका? आरे मेट्रो कारशेड का विरोध होने के पीछे भी पर्यावरण हानि ही वजह है। वहां के हजारों वृक्षों का कत्ल उसके लिए किया गया। इसलिए वृक्ष प्रेमियों, पर्यावरण प्रेमियों और प्रकृति प्रेमियों ने उसका विरोध किया। नाणार-वाढवण हो या बुलेट ट्रेन या फिर आरे मेट्रो कारशेड, इन सभी परियोजनाओं का विरोध 'पब्लिक क्राय' था इसलिए शिवसेना ने उसका समर्थन किया। विकास होना ही चाहिए लेकिन इसके लिए जनता कितनी कीमत चुकाए, इस पर भी विचार होना चाहिए। वेदांता जैसी बड़ी परियोजना गुजरात चली गई, इसका पेट दर्द शिवसेना को कभी नहीं होगा।


शिवसेना गुजरात को हमेशा से जुड़वां भाई मानती आई है, लेकिन सवाल महाराष्ट्र के न्याय और अधिकार का भी है। वेदांता जैसी महाराष्ट्र के अधिकारवाली परियोजना और उससे निर्माण होनेवाले एक लाख जनता के रोजगार को एक झटके में छीन लिया गया, यह दु:खद और वेदनादायक है। यह दु:ख भी महाराष्ट्र व्यक्त न करे? इस वेदना की हुंकार भी मराठी जनता न भरे? इसका जवाब भी केंद्र सरकार से न पूछा जाए? यह पूछें तो उस पर भी केंद्रीय वित्त मंत्री झल्ला जाएं, यह क्या तरीका? सीतारमण मैडम, वेदांता को लेकर विपक्ष से पूछने की बजाय पहले आप ही कुछ सवालों का जवाब दें। वेदांता परियोजना नहीं चाहिए, ऐसा कोई आंदोलन महाराष्ट्र में हुआ क्या? यह परियोजना गुजरात में लगे, ऐसी मांग गुजरात की जनता ने कहां और कब की? केवल केंद्र सरकार की ही मंजूरी बाकी थी, ऐसे में परियोजना महाराष्ट्र से गायब वैâसे हो गई? महाराष्ट्र के मन में उफन रहे ऐसे अनगिनत सवाल हैं। पहले इसका जवाब दो और फिर विपक्ष पर झल्लाओ।

Updated : 30 Sep 2022 4:47 AM GMT
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