एक देश-एक चुनाव क्या संभव है? कब टूटी थी इसकी परंपरा
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पीएम मोदी कई बार वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं। एक बार फिर से उन्होंने इसे दोहराया है। हालांकि इस बारे में एल.के.आडवाणी भी कह चुके हैं। संविधान दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'आज एक देश-एक चुनाव सिर्फ बहस का मुद्दा नहीं रहा। ये भारत की जरूरत है। वन नेशन-वन इलेक्शन या एक देश-एक चुनाव का मतलब हुआ कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।
दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए। लॉ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं। पहले फेज में लोकसभा चुनाव के साथ ही कुछ राज्यों के चुनाव भी करा दिए जाएं और दूसरे फेज में बाकी बचे राज्यों के चुनाव साथ में करवा दें।
इसके लिए कुछ राज्यों का कार्यकाल बढ़ाना पड़ेगा, तो किसी को समय से पहले ही भंग करना होगा। जुलाई 2018 में लॉ कमीशन ने एक साथ चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों की एक मीटिंग बुलाई थी। सिर्फ 4 पार्टियों ने ही इसका समर्थन किया, जबकि 9 विरोध में थीं। भाजपा और कांग्रेस ने इस पर कोई राय नहीं दी थी। विरोध करने वाली पार्टियों की कई चिंताएं भी थीं। उनका कहना था कि अगर साथ चुनाव कराने के कारण समय से पहले विधानसभा भंग कर दी गई और चुनाव में रूलिंग पार्टी या गठबंधन हार गई तो? पार्टियों का ये भी कहना था कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होने से वोटर स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट डालेगा।
राजनीतिक पार्टियों को तो इसकी चिंता है, लेकिन ऐसा कहा भी नहीं जा सकता। क्योंकि हमारे देश का वोटर अलग सोच रखता है। अगर वो लोकसभा में किसी पार्टी को जिता रहा है, तो इसका मतलब ये नहीं कि विधानसभा में भी उसे ही जिताए। वोटर लोकसभा में और विधानसभा में अलग मुद्दों को ध्यान में रखकर वोट करता है। फिलहाल तो एक साथ चुनाव होने की गुंजाइश नहीं दिख रही है। अभी लॉ कमीशन एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का ढांचा तैयार कर रही है। ये अभी इसलिए भी मुमकिन नहीं है क्योंकि हमारे देश में हर साल औसतन 5 राज्यों के चुनाव होते हैं। 2021 में ही कुछ राज्यों के चुनाव होने हैं।