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बाप चला गया.. पार्टी चली गई.. निशान भी चला गया.. फिर क्या किया?

महाराष्ट्र में शिवसेना पार्टी इस समय संकट के दौर से गुजर रही है। पार्टी का नियंत्रण खोने दो, चुनाव चिन्ह को जाने दो, विपक्ष को शक्तिशाली होने दो। लोग आपके साथ रहेंगे और अगर आप एक तूफान बनाएंगे, तो कोई भी ताकद आपको रोक नहीं सकती! 'लोकमत' के संपादक संजय आवटे का सटीक राजनीतिक विश्लेशण

बाप चला गया.. पार्टी चली गई.. निशान भी चला गया.. फिर क्या किया?
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मुंबई: वाईएसआर रेड्डी के बाद सवाल उठा कि आंध्र प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन? वाईएसआर की अपनी कोई पार्टी नहीं थी। वह कांग्रेस के नेता थे। खैर, असाधारण रूप से लोकप्रिय। पार्टी से भी बड़ा। अपार लोकप्रियता और उतनी ही अपार संपत्ती। जब 2009 में एक विमान दुर्घटना में वायएसआर की मौत हुई, तो आंध्र प्रदेश में कई लोग सदमे से मर गए। असली कमाल की लोकप्रियता! जब उनकी मृत्यु हुई, तब उनकी पत्नी विधायक थीं। और, बेटा जगनमोहन सांसद थे। अधिकांश विधायकों की राय थी कि अगर वाईएसआर सहानुभूति की लहर पर सवार होना है तो जगनमोहन को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। उस समय केंद्र और राज्य में भी कांग्रेस सत्ता में थी। इस शक्तिशाली पार्टी ने जगनमोहन को मुख्यमंत्री नहीं बनाने का फैसला किया। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का पद आम लोगों को दिया। लेकिन, जगनमोहन को नहीं दिया।

युवा जगनमोहन ने कुछ नहीं कहा, उन्होंने आंध्र प्रदेश के लगातार तूफानी दौरे की शुरुआत की। लोग सचमुच पागल होकर उनके कायल हो गए। दौरे को भारी प्रतिसाद मिलने लगा। पिता की मृत्यु हो गई और उनको सत्ता से बेदखल कर दिया, इससे जनता के समर्थन से सहानुभूति की लहर ने रौद्र रूप ले लिया। जगनमोहन राज्य भर में घूमते रहे। उस समय वह केवल 38 वर्ष के थे। भयभीत कांग्रेस ने उन्हें अपने दौरे को रोकने का आदेश दिया। उन्होंने कोई बात नहीं मानी। वह लगातार तूफानी दौरा करते रहे। लोगों के समर्थन मिलने लगे। जहा जाते वो घर-घर लोगों ने उन्हें गले लगाया, उनके चरणों में गिरे, उन्हें गले लगाया और रो पड़े। लोगों का समर्थन और मीडिया की ताकत ने उन्हें बुलंद नेता बना दिया। धीरे-धीरे पूरे देश में कांग्रेस विरोधी भावना पैदा हो रही थी। उन शक्ती ने भी उसकी मदद की। जगनमोहन ने कांग्रेस सांसद पद से दिया इस्तीफा और मां ने भी विधायक पद का परित्याग कर दिया।


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यह इतिहास का प्रमाण है, इससे कौन सिखता, है यह एक मुद्दा है — संजय आवटे


पार्टी छोड़ने के बाद में 2011 में, जगनमोहन ने "वाईएसआर कांग्रेस" नामक एक नई क्षेत्रीय पार्टी का गठन किया। बाद के उप चुनावों में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। माँ जीत गई। वह खुद जीते। कांग्रेस ने जगनमोहन के पीछे केंद्रीय ऐजेंसियों को लगा दिया, जगनमोहन को गिरफ्तार कर लिया गया। वह जेल गये इसके बाद तो वह हीरो बन गए। तेलंगाना के निर्माण के विरोध में उन्होंने जेल में भूख हड़ताल की। इससे उनकी हालत खराब हो गई अस्पताल में भर्ती होने की बारी आ गई, इसके बाद उन्होंने राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया, माहौल गरमा गया। मां ने कांग्रेस के विधायक पद से दिया इस्तीफा और जगनमोहन ने भी पार्टी के विधायक सहित सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। वह आंध्र प्रदेश के हितों के लिए लड़ने वाले एकमात्र नायक बन गए। जो तेलुगु अस्मिता की आवाज बन गए।






2014 के विधानसभा चुनाव में उनके तूफान ने तस्वीर बदल कर रख दी। सभी को उनकी ही जीत की उम्मीद थी। लेकिन उम्मीद करवट खा गई, वह यह चुनाव नहीं जीत पाए। हालांकि उनके प्रभाव से कांग्रेस ने राज्य की सत्ता गंवा दी। वहां पर तेलुगु देशम सत्ता में आया, चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री बने। जगनमोहन विपक्ष के नेता बने। एक विरोधी पक्ष नेता की सही भूमिका निभाई वह और भी आक्रामक हो गये। सदन के अंदर और बाहर आंध्र प्रदेश के लोगों की आवाज बनकर यह मुद्दे को आगे रखा। जगनमोहन पर जान लेवा हमला भी किया गया लेकिन उनका दौरा कही थमा नही। हालांकि राज्य में 2019 के विधानसभा चुनाव में जगनमोहन की वो लहर पैदा हो गई जिसको आज तक आंध्र प्रदेश के इतिहास में रिकॉर्ड संख्या में सीट हासिल की जीत हासिल है। 175 में से 157 सीटें पर उनके विधायक चुनकर विधानसभा नें आए। लोगों का अपार समर्सथन जगनमोहन का तूफानी दौरा परित्याग और मेहनत ने सबको धूल चटा दी। सत्ता केंद्रीय नेतृत्व सब धरा का धरा रह गया यह लोगों का समर्थन था।


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Updated : 8 July 2022 4:51 PM GMT
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