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क्या है 55 करोड का मुद्दा ?

क्या  है  55  करोड  का  मुद्दा ?
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मुंबई : गांधीजी अखंड भारत चाहते थे , वे दुनिया के सामने ऐसी मिसाल पेश करना चाहते थे की भारत में सभी वर्ण जाती के लोग शांति से रहते है। इसलिए गांधीजी बटवारे के सख्त खिलाफ थे। उनकी नामर्जी के बावजुद बटवारा हुआ । बटवारा होने के बाद गांधीजीने पाकीस्तान पद यात्रा करके पाकिस्तान को भारत में विलय करने की घोषणा करदी थी ।

जब देश का विभाजन हुआ तब भारत और पाकिस्तान की ओर से पूंजी का हिसाब लगाने बडी बडी समितिया बैठी थी । हर चीज़ का बटवारा हुआ । घोडे पाकीस्तान गए बग्गीया भारत में रही , टेबल खुर्ची , पुस्तकालय वगेरा वगेरा सब चीजो़ का बटवारा हुआ ।

अंत में पैसो का हिसाब हुआ , हिसाब में पाकीस्तान के हिस्से 75 करोड देने निकलते थे , भारत सरकारने कामचलाने हेतु 20 करोड पाकिस्तान को एडवांस दिए । अब रहे बाकी के 55 करोड ।

इतने में पाकिस्तान की ओर से दंगे होने लगे , कशमीर में हिंदु शरणार्थीयो की तादाद बढने लगी । भारत सरकारने एलान कीया की जबतक पाकीस्तान से सारे विषयो पर बात न हो जाए तबतक भारत सरकार पाकिस्तान के 55 करोड रोक कर रखेंगी।

दुसरी ओर पाकिस्तान भारत पर वचनभंग का आरोप लगाते हुए इन्टरनेशनल कोर्ट में भारत को घसीटने की धमकी दे रहा था ।

12 जनवरी 1948 के दीन माउन्ट बेटनने महात्मा गांधी को पाकिस्तान कि धमकी वाली ये बात बताइ । उस दीन गांधीजी का मौन था , गांधीजीने अपना सिर हीलाते हुए बात समझने का ईशारा कीया ।

वैसे भी गांधीजी 13 जनवरी के दिन दंगा शांत करने हेतु अनशन करनेवाले थे , तब संयोग से गांधीजी के मंच से एग्रीमेंट के अनुसार पाकिस्तान को उनके हिस्से के 55 करोड लौटाने की बात उठी । ( यहाँ पर गौर करनेवाली बात यह है कि 13 जनवरी के दिन गांधीजीने 55 करोड लौटाने कि बात कही , और कोर्ट में पुलिसने सबूत रखते हुए ये साबित किया कि गांधी हत्या का षड्यंत्र 1 जनवरी 1948 को रचा गया था ! इसका मतलब गोडसे का 55 करोड का बहाना सरासर झूठा था ! )

गांधीजी जानते थे की ये आज़ाद भारत का पहला करार है , अगर पहले करार में ही भारत को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का सामना करना पडा तो आने वाले दिनो में कौनसा देश भारत पर भरोसा करेंगा❓ कौनसा देश भारत से व्यवहार करेंगा❓ वैसे भी भारत देश अपने वचन पालन के लिए जाना जाता है , प्राण जाए पर वचन ना जाए वैसे भी गांधीजी को यह भय भी सता रहा था की पाकिस्तान को उनके 55 करोड लौटाने में विलंब होगा तो वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओ पर पाकिस्तान अधीक हिंसा कर सकता है . . . .

गांधीजी की बात मानकर भारत सरकार ने 14 जनवरी 1948 के दिन नैतिक मुल्यो के आधार पर पाकिस्तान को 55 करोड दिए ।

फिर भी गांधीजीने अपना अनशन नही तोडा , दंगा शांत होने के बाद दंगाईयोने अपने अपने हथियार बापु के सामने रखे तब जाकर 18 जनवरी 1948 के दिन गांधीजीने अपना अनशन समाप्त कीया ।

दिल्ली देश की राजधानी है , दिल्ली देश की नाक है , जब दिल्ली ही दंगे में हम हार जाते तो हम दुनिया के सामने क्या मुंह दिखाते ? गांधीजीने जो अनशन किया था वो दिल्ली बचाने हेतु किया था , दंगा शांत करने हेतु किया था ना कि पाकिस्तान को 55 करोड दिलवाने . . . . !

वैसे भी नैतिक आधार पर पाकिस्तान को 55 करोड लौटाने के पक्ष में अकेले गांधीजी नही थे । 55 करोड लौटाने के पक्ष में RBI गवर्नर एच. वी. देशमुख , सी. डी. कामत , राजेन्द्र प्रसाद , राजगोपालाचारी भी सहमत थे ।

गांधीजी का दुष्प्रचार करनेवालो को यह बात अच्छी तरह जान लेनी चाहिए की अंग्रेज राज में जितनी यातना हिंदुओने जेली थी उतनी ही यातना मुसलमानों ने भी जेली थी । गांधीजीने पाकिस्तान के बच्चे , बुड्ढे , महिलाओं की लाचारी को ध्यान में रखकर , जिन्हें राजनीति से कोई लेनादेना नही उन लोगो को ध्यान में रखकर मानवता के आधार पर , नैतिकता के आधार पर पाकिस्तान के 55 करोड लौटाने की बात कही थी । आजकल के नेताओ कि तरह भ्रष्टाचार करके खाये नही थे ! ! !

गांधी पर कीचड़ उछालने वालो ने क्या कभी सोचा है की , अगर करारनामे के मुताबिक भारत सरकार ने पाकिस्तान को उनके हिस्से के 55 करोड नही लौटाये होते तो आज पाकिस्तान जैसा कंगाल और बेआबरु देश 55 करोड के लिए भारत की कितनी बदनामी करता ?

गांधी की गलतियां निकालना आसान है परंतु गांधी जैसा संघर्षमय , व्यवहारिक , ज़िम्मेदारी निभाने वाला जीवन जो जीता है वही गांधी को जान सकता है समझ सकता है । उदाहरण अपने माता पिता का ही संघर्षमय , धैर्यवान , व्यवहारिक जीवन देख लीजिए . . . . .

25 जून 1934 से लेकर लगातार 30 जनवरी 1948 तक गांधी हत्या का प्रयास करनेवाले चाहे कितना भी झूठ फैलाए किंतु गांधी नामक सत्य के सुर्य को कभी अस्त (समाप्त) नही कर पाएंगे ।

Updated : 25 July 2021 7:05 PM IST
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