अगर सभी राज्य ऐसे किए तो हमारी राष्ट्रीयता खतरे में पड़ जाएगी?
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कुछ ही दिनों पहले हरियाणा की सरकार ने प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में हरियाणा के लोगों के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण दिया है। इसकी वजह से निजी क्षेत्र की नौकरियां स्थानीय युवाओं को मिलेंगी। झारखंड सहित कई राज्यों में भी इस प्रकार की बातें सामने आई है। ये सभी घटनाएं क्षेत्रवाद को बढ़ावा देती हैं, परंतु हमें यहां विचार करना होगा कि क्या राजनीतिक फायदे या फिर किसी भी अन्य कारणों से क्षेत्रवाद की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना हमारी राष्ट्रीयता को नुकसान तो नहीं हो रहा? भारत क्षेत्रफल एवं जनसंख्या दोनों ही दृष्टि से एक विशाल राष्ट्र है।
प्रथमदृष्टया तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि हरियाणा सरकार द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुरूप तैयार नहीं किया गया है, क्योंकि प्रथम तो यह कि संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत भारतीयों को समानता का अधिकार दिया गया है। दूसरा, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य अपने किसी भी नागरिक के साथ जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है। वहीं अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता के अधिकार) के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह भारत में कहीं भी आजीविका पा सकता है, काम-धंधा कर सकता है। प्रत्येक नागरिक को इस बात की स्वतंत्रता है कि वह भारत में किसी भी राज्य में जाकर काम कर सकता है।
अगर देश के सभी राज्य अगर इसी राह पर चले तो देश की राष्ट्रीयता ही खतरे में पड़ जाएगी। चूंकि भारत में कुशल श्रमिकों की उपलब्धता एवं मांग में काफी विषमताएं हैं। यदि अपने ही राज्य में व्यवसाय की बाध्यता होगी तो रोजगार के अवसर के क्षेत्र भी बहुत सीमित हो जाएंगे। एक ओर तो हम सुगम कारोबारी वातावरण का निर्माण करना चाहते हैं तो दूसरी ओर ऐसे अनुचित कानून बनाकर विदेशी निवेशकों को हतोत्साहित भी कर रहे हैं। एक ओर वैश्वीकरण की प्रक्रिया के चलते पूरा विश्व एक हो रहा है तो दूसरी ओर हम अपने देश को क्षेत्रों में बांट रहे हैं। हमें समझना होगा कि हम सबसे पहले भारतीय हैं, उसके उपरांत हम किसी राज्य के निवासी हैं।