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क्या गांधीजी और कांग्रेस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर अन्याय किया?

क्या गांधीजी और कांग्रेस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर अन्याय किया?
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस! - एक ऐसा नाम जो सुनते ही साहस की अनगिनत कहानियां मन के पटल पर आने लगती हैं। देशप्रेम और बलिदान के वो किस्से आज भी शरीर पर रोंगटे खड़े कर देते है, लेकिन कहा जाता है कि गांधीजी और कांग्रेस के नेताओं ने इस सच्चे देशभक्त पर बड़ा अन्याय किया। क्या यह सच है? गांधीजी, सरदार पटेल और कांग्रेस के अन्य नेताओं से 1939 में हुए विवाद के बाद नेताजी सुभाष बाबू ने अपना अलग रास्ता चुना। अंग्रेजों को चकमा देकर वे विदेश चले गए और वहाँ से भारत की स्वतंत्रता के लिए उनके अखंड प्रयास आखिर तक चलते रहे यह तो हम जानते हैं। अब देखते हैं गांधीजी के साथ मतभेदों के बाद 1939 से 1945 के दौरान सुभाष बाबू ने जो कार्य किया उसमें से कुछ तथ्य जो अक्सर हमें बताए नहीं जाते।

• सुभाष बाबू ने जिस आजाद हिन्द रेडियो का विदेश में निर्माण किया उस रेडियो द्वारा वे भारत के लोगों को आखिर तक संबोधित करते रहे और उनको गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन में शरीक होने के लिए प्रेरित करते रहे। उनके वह सभी भाषण आजभी इंटरनेट पे लिखित रूप में मौजूद हैं।

• आजाद हिन्द रेडियो पर बैंकाक से उन्होंने 2 अक्तूबर 1943 को गांधीजी के सम्मान में विशेष भाषण दिया। इस भाषण में वह कहते है, "आज हमारे सर्वोच्च नेता का जन्मदिन है। गांधीजी ने हम भारतवासियों को आत्म-सम्मान से अवगत कराया। हमारे अस्तित्व को आत्मविश्वास से भर दिया। हिंदुस्तान और हिंदोस्तान की आजादी के लिए महात्माजी ने जो कार्य किया है वह अद्वितीय है। उनका नाम इतिहास में सदा के लिए सुवर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। "

• सुभाष चंद्र बोस ही वो शख्स थे जिन्होंने गांधीजी को प्रथमतः भारत के "राष्ट्र-पिता" कहा।

• आजाद हिन्द सेना का नेतृत्व सुभाष बाबू को जब सौंपा गया तब उन्होंने उसके तीन बटालियनों का नामकरण गांधी बटालियन, नेहरू बटालियन, और आजाद बटालियन किया।

• जापानी सेना द्वारा जब अंदमान पर कब्जा कर लिया गया और नेताजी को स्वतंत्र भारत का झण्डा फहराना था तो उन्होंने वही तिरंगा फहराया जिस पे गांधीजी का चरखा बना हुआ था। अगर गांधीजी और कांग्रेस ने नेताजी पर अन्याय किया होता तो क्या यह मुमकिन था? तो फिर सच क्या है?

1921 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से आय सी एस परीक्षा में ऊँची सफलता हासिल करने वाला यह बंगाली युवा, सुभाष, सरकारी नौकरी ठुकरा कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये। अगले दस सालों में सुभाष बाबू कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में गिने जाने लगे थे। बंगाल क्षेत्र में तो वह जैसे एक मिथक बन गए थे। 1938 में सुभाष बाबू राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने, लेकिन उसी दौरान कांग्रेस के अन्य नेताओं से उनका मतभेद बढ़ता जा रहा था।

• 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर सुभाष कांग्रेस को अपनी उग्रवादी समाजवाद की सोच में ढालना चाह रहे थे। लेकिन उनकी यह सोच कांग्रेस के बुनियादी सोच से पूरी तरह से भिन्न थी।

• कांग्रेस ने संगठन के रूप में कई सालों से अहिंसक कार्रवाई की शांतिपूर्ण तकनीक को अपनाया था। गांधी जी ने 20 सालों से उस अहिंसक संघर्ष का विकास किया था। उसे अनुशासित और सुव्यवस्थित शक्ति का रूप दिया था। जब कि

• सुभाष बाबू ने सरदार पटेल और कांग्रेस के सभी पुराने नेताओं को दक्षिण पंथी और खुद को वामपंथी घोषित किया। उन्हे इस बात पर ऐतराज था कि कांग्रेस पार्टी हिटलर को फाँसीवादी मानती है।

• 1939 में दूसरी बार बोस के कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर कांग्रेस वर्किंग कमिटी के 15 सदस्यों में से 12 सदस्यों ने सरदार पटेल के नेतृत्व में इस्तीफा दे दिया।

• कांग्रेस और स्वतंत्रता संग्राम आंतरिक गृहयुद्ध की तरफ जाते हुये दिखाई पड रहे थे। दोनों पक्षों में सुलह करने की कोशिश जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे। उन्होंने गाँधीजी तथा सुभाष बाबू को दर्जनों पत्र लिखे, कइयों बार मुलाकातें की। नेहरू ने उन्हे समझाया की अध्यक्ष की व्यक्तिगत नीतियाँ कांग्रेस की नीतियाँ नहीं होती। उन्होंने कहा की वह खुद समाजवादी हैं और कांग्रेस का समाजवादी खेमा कांग्रेस को समाजवादी बना देना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस कुछ बुनियादी उसूलों और महात्मा गांधी के सिद्धान्तो से बंधी है। लेकिन उन्हे समझाने के नेहरू के सारे प्रयास नाकाम रहे।

• गोविंद वल्लभ पंत, राजेन्द्र प्रसाद आदि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना था कि सुभाष बाबू , गाँधीजी के मार्गदर्शन के साथ नई कमिटी का गठन करे।

• गाँधीजी ने इस पर साफ इनकार कर दिया। उन्होंने सुभाष बाबू को लिखा, 'मैं कांग्रेस वर्किंग कमिटी लिए नामों का सुझाव आपको दूँ। आपके विचारों को जानते हुए और यह जानते हुए की आप और अधिकांश सदस्य बुनियादी बातों में भी मतभेद रखते है तो ऐसे में मेरा सुझाव देना आप पर विचार थोपना होगा"। गांधीजी का कहना था कि सुभाष, कांग्रेस कमिटी के सदस्य खुद चुने, अपने नीतियों के साथ नए कार्यक्रम को रूप दें और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मत कराए। सुभाष बाबू को यह अहसास हो गया की राष्ट्रीय स्तर पर उनके विचारों को समर्थन मिलना मुमकिन नहीं हो सकता । इससे कांग्रेस पार्टी और स्वतंत्रता संग्राम दोनों की एकजुट खतरे में आ सकती थी। और इस लिए उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से खुद इस्तीफा दिया।

• इस्तीफा देने के बाद उन्होंने कांग्रेस अंतर्गत 'फॉरवर्ड ब्लॉक' नामक गुट की स्थापना की जो आगे चलकर अलग राजनीतिक पक्ष बना। इतिहास बताता है कि मत-भिन्नता के बावजूद नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गांधीजी और कांग्रेस के प्रति आदर भाव कायम रहा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, नेहरू और गांधीजी में गहरे मतभेद जरूर थे। लेकिन एक दूसरे के देश-प्रेम और ध्येय-निष्ठा के प्रति आदर और सम्मान था। विचारों से वो अलग थे मगर भारत की स्वतंत्रता के महान ध्येय ने उन्हे जोड़े रक्खा। सुभाष बाबू के इतिहास को तोड़- मरोड़ कर आज हमारे सामने पेश करने वाले क्या अपने विरोधियों के विचारों का सम्मान करते हैं? सोचिए क्यूँ उन्हे झूठ का सहारा लेना पड रहा है?

- आशुतोष शिर्के

Updated : 23 Jan 2021 1:29 PM IST
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