Bank Pension पर बैंक रिटायर्ड का बेबाक जवाब !
“हम पेंशन अपडेशन नहीं, पेंशन में समानता चाहते हैं।”
X
यह आवाज़ है उन लाखों बैंक पेंशनभोगियों की, जिन्होंने मैक्स महाराष्ट्र हिंदी की नई सीरीज में अपनी पीड़ा साझा की। उनका कहना है कि पेंशन को सिर्फ "अपडेट" करना समस्या का हल नहीं है – असली जरूरत पेंशन में न्याय और समानता की है।
पेंशन में भेदभाव – एक ही पद, दो तरह की ज़िंदगी
भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में दशकों तक सेवा देने वाले कई रिटायर्ड अधिकारी आज अपनी बेसिक पेंशन को लेकर गहरे असंतोष में हैं। सबसे बड़ा सवाल – अगर दो कर्मचारी एक ही पद पर, एक जैसी जिम्मेदारियों के साथ रिटायर होते हैं, तो उनकी पेंशन में इतना बड़ा अंतर क्यों?
उदाहरण:
एक अधिकारी जो 2005 में मैनेजर पद से रिटायर हुआ, उसकी बेसिक पेंशन आज लगभग ₹15,000 है।
वहीं एक अधिकारी जो 2025 में उसी पद से रिटायर हुआ, उसकी पेंशन ₹40,000 या उससे अधिक है।
“हमने भी वही काम किया, उतने ही घंटे दिए, उतनी ही जिम्मेदारियां निभाईं – लेकिन अब हमें आधी पेंशन मिल रही है। ये अन्याय नहीं तो और क्या है?”
— एक बैंक रिटायरी की मैक्स महाराष्ट्र हिंदी से बातचीत में भावनात्मक प्रतिक्रिया।
पेंशन अपडेशन बनाम पेंशन इक्वैलिटी
बैंक पेंशनभोगी यूनियनों और संगठनों का कहना है कि सरकार और बैंकिंग संस्थाएं केवल “पेंशन अपडेशन” की बात करती हैं, लेकिन वह भी सीमित और चयनित तरीके से। अपडेशन का मतलब केवल पुरानी पेंशन में थोड़ी-बहुत बढ़ोतरी करना, जबकि मांग यह है कि पेंशन में समयानुसार समता लाई जाए, जिससे पुराने और नए रिटायरीज के बीच फर्क न रहे।
क्या कहती है RBI और सरकार?
RBI और केंद्र सरकार ने समय-समय पर कई सुझाव दिए हैं, लेकिन पब्लिक सेक्टर बैंक रिटायरीज के मामले में कोई ठोस और सार्वभौमिक नीति सामने नहीं आई है। LIC और सरकारी कर्मचारियों की तरह बैंक रिटायरीज को पेंशन में समानता का अधिकार नहीं मिल पाया है।
“LIC के रिटायरीज को समय पर पेंशन रिवीजन मिलता है। फिर बैंक कर्मचारियों के साथ यह दोहरा रवैया क्यों?”
— पेंशनर्स यूनियन नेता
न्यायपालिका की ओर उम्मीद
इस मामले पर कई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं चल रही हैं। पेंशनर्स को उम्मीद है कि न्यायपालिका उनके पक्ष में निर्णय देगी और समान पेंशन का रास्ता साफ़ होगा। लेकिन न्याय प्रक्रिया धीमी है, और तब तक हजारों पेंशनर बूढ़े हो रहे हैं, बीमार हो रहे हैं – कुछ तो इंसाफ़ का इंतज़ार करते हुए दुनिया छोड़ चुके हैं।