कोरोना महामारी का विकराल रूप

Update: 2020-07-23 13:46 GMT

कोरोना महामारी के चपेट में वैसे तो सभी लोग आए हैं, मगर आगे जाकर सबसे ज्यादा इसका असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, य़ूएनएफपीए समेत कई सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं की रिपोर्ट्स चेतावनी दे रही हैं कि महामारी का मौजूदा दौर तो डैंजर है ही, आगामी समय महिलाओं व बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है। यही लोग गरीबी, भूख, अशिक्षा, असुरक्षा और लैंगिक असमानता के शिकार होंगे. इसलिए सरकारें सजग हो जाएं और इन्हें अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शुमार करें, जो अभी नहीं हैं. किसी भी घर का रास्ता पेट से होकर गुजरता है, जब गरीब की जेब में पैसा नहीं होगा, तो वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे मुहैया कराएगा।

कैसे वह अच्छा भोजन देकर कुपोषण से मुक्त रखेगा, कैसे अपने बच्चों, घर की मां, बीवी, बहन, बेटियों को सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन दे पाएगा, कोरोना महामारी से 4 महीनों में सैकड़ों गरीब, किसान, महिलाएं, बच्चे, बेरोजगार हुए लोग आत्महत्याएं कर चुके हैं, इस प्रवृति का तो हम समर्थन नहीं कर सकते हैं, लेकिन सरकार में बैठे नुमांइदो, समूचे तंत्र को इस बारे में गंभीरता से सोचना और कदम उठाना होगा, ताकि लोगों में जीवन के प्रति भरोसा पैदा हो सके. यूनिसेफ और सेव दि चिल्ड्रेन की रिपोर्ट बताती है "कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से इस साल के अंत तक गरीब होने वाले बच्चों की संख्या 8.6 करोड़ और बढ़ जाएगी और कुल 67.2 करोड़ बच्चे गरीबी के दलदल में फंस चुके होंगे. आर्थिक संकट की सबसे ज्यादा मार कम और मध्य आय वर्ग के लोगों पर पड़ रही है। भूख व कुपोषण का ज्यादा असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ेगा. इन दोनों संगठनों ने महामारी से पैदा इन भयावह हालातों में बाल विवाह, हिंसा, शोषण और दुरुपयोग के खतरों की चेतावनी देते हुए भारत समेत सभी देशों की सरकारों से कहा है कि वह अपनी सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का विस्तार करें। स्कूलों में बच्चों को खाना उपलब्ध कराने के काम में तेजी लाएं, जिससे महामारी के असर को कम किया जा सके.

माना जा रहा है कि कोरोना संकट खत्म होने के बाद कई बच्चों को बाल मजदूरी के दलदल में धकेला जा सकता है. घरों से चल रहे कामकाज, कृषि, और जोखिम वाले पेशों में बाल श्रम और बाल तस्करी बढ़ सकती है. भारत में सरकार डिस्टेंस लर्निंग के माध्यम से बच्चों को शिक्षा के कार्यक्रम संचालित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन जरा सोचिए जब गरीब बच्चों के पास इसके लिए जरूरी मोबाइल या इंटरनेट सुविधा ही नहीं है, तो डिस्टेंस लर्निंग कितनी फलीभूत होगी, विदेशों में संभव है लेकिन हमारे यहां संभव नहीं है. वैसे भी बमुश्किल 35 फीसदी तक बच्चों तक ही इसकी पहुंच हो पा रही है. भारत सहित दुनिया के एक तिहाई बच्चे डिजिटल वर्ल्ड से वाकिफ ही नहीं है. सेव दि चिल्ड्रेन की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी की वजह से विश्व के कुछ सबसे गरीब देशों में अगले 18 महीनों के दौरान शिक्षा खर्च में 77 अरब अमेरिकी डॉलर की कमी देखने को मिलेगी. भारत सहित तमाम देशों में सरकारें शिक्षा के लिए ऱखे गए पैसों का कोरोना से निपटने के लिए कर रही हैं. वहां वर्ष 2021 के अंत तक शिक्षा खर्च में 192 अरब डॉलर तक की कटौती कर सकती हैं।

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